रविवार, 2 नवंबर 2014

नागरिक पत्रिका = सितम्बर 2014

*अब यह परिभाषा मान ली जानी चाहिए, जो स्पष्ट हैं और धर्मों के अन्तर को साफ़ भी करता है |
हिन्दू वह जो मुर्तिवादी है और मुसलमान वह जो अमूर्तवादी है | यही परिभाषा हिन्दुत्व और इस्लाम पर लागू होती है / होनी चाहिए | यद्यपि एतराज़ हो सकता है कि मुसलमान भी क्या अमूर्त पूजक हैं जब उनके प्रतीक 786 या काबे का चित्र मूर्ति सामान ही समादृत है  | और कुरआन पुस्तक एवं मस्जिदें भी तो साक्षात भौतिक आकृतियाँ हैं ? लेकिन इससे कोई बात नहीं बनती | इससे वह मुर्तिवादी नहीं हो जाते, क्योंकि ईश्वर को वह अमूर्त ही मानते हैं | मूर्ति तो हिन्दू के भी तमाम पंथ नहीं पूजते , पर उससे क्या ? उन्हें मुर्तिवादी तो माना जा सकता है, क्योंकि वे मूर्ति के विरोध में नहीं हैं | कुछ मुस्लिम भी भले अमूर्त पूजक न हों और वे हिन्दू मूर्तियों का बराबर सम्मान करते हों , तब भी उन्हें अमुर्त्वादी मन जा सकता है , सिद्धांततः |
सचेत होकर हमने इस विभाजन को मूर्ति पूजक / अमूर्त पूजक न रखकर हमने दर्शन के आधार पर मुर्तिवादी / अमूर्त वादी रखा है |

 अब लीजिये , लव पर तो एतराज़ था ही | अब लव जेहाद पर भी आपत्ति है कि उस यैसा क्यों कहा जा रहा है | खगाले जा रहे हैं मूल अरबी के text | कहते हैं अनुवाद भ्रामक होता है | अब बताइए अभी तो बड़ी मुश्किल से संस्कृत से छुटकारा मिला है और टेढ़ - बाकुल अनुवाद से काम चला रहे हैं , अब और अरबी पढ़ें | आप पढ़िये , हम सहज बुद्धि , Common sense डाल कर देखते हैं | हम तो यह जानते हैं कि जो जो आप धत्कर्म इस धरती पर करते हैं वाही आपका धर्म है | हम का जानी तोहरे किताबिन में काव लिखा है ? और तुमहूँ कुल पढ़े हौ का ? पता है इस मुलुक का नाम है हिन्दुस्तान | बड़ा सनातनी ज्ञानी है इउ | कुल चीज़ के अर्थ निकाल लेत है , और अपने काम के लिए शब्दों को विशेष मतलब में ढाल लेता है | आप " आरोपित " को आरोपी लिखते हो , वह मान लेता है | बलात्कार एक ख़ास अपराध के लिए प्रयुक्त होता है , न कि हर प्रकार के जोर ज़बरदस्ती के लिए | आप संधि - समास जोड़ा घटाया करो , जन संवाद अपने हिसाब से चलेगा | जिस जाति के लक्षण आप के व्यवहार से प्रकट होगा वह आपको उसी जाति से सम्मानित करेगा , क्या करेगी सरकार , क्या करेगा संविधान ? वह अपना संविधान अपनी काँखों में दबा कर चलता है | आप कोई अच्छा काम करेंगे उसका कोई श्रेय आपको मिले न मिले , आपके किंचित भी दुष्कर्म पर वह आपकी जाति धर्म सिवान जिला प्रदेश खानदान , महतारी बाप सबकी खबर ले लेगा , यह इसका चरित्र है | और यह तो होता ही है कि एक मनई कि गलती से राष्ट्र का अपमान हो जाता है और होता है | 
तो लव जिहाद में मुसलमान को घसीट लिया गया तो किमाश्चर्यम ? जिहाद ( का जद्दोजहद ) उनके शब्दकोष में है और उसके लिए संघर्ष उनके कर्म क्षेत्र में ( इससे उन्हें भी एतराज़ नहीं ) | तो जब अभी तक प्रेमरहित जिहाद को जेहाद कहा जाता रहा रहा है , उसी काम को जब वह " प्रेम " से कर रहे हैं तो जनता ने लव जिहाद कह दिया | कौन सा अपराध कर दिया ? अलबत्ता यह बात तो है कि भारत में मुसलामानों को उनके इतने संरक्षकों के होते हुए कुछ " कहा " क्यों जाय ? यह बात मैं मानता हूँ , गलती स्वीकार करता हूँ | देखिये रांची में एक प्रेमी को कितना कष्ट उठाना पड़ रहा है ! इसीलिए मैंने तो खुलकर मार्क्सवाद जैसे महान अंतरराष्ट्रीय विचार को खारिज करते हुए घोषणा कर दी कि धर्म अफीम तो है , सिख बीडी सिगरेट नहीं पीते वह भी , जैन शुद्ध अहिंसक हैं वह भी अफीमची कहे जा सकते हैं | लेकिन हे दुनिया के लोगो इस्लाम को इस परिभाषा से पृथक रखो | अपवाद है इस्लाम इस मार्क्स कथन का | मार्क्सवाद तो दुनिया से विदा हो गया , तो एक इस्लाम को तो बचा रहने दो | यही उद्धारक है , और होगा, संसार का | इसे कुछ भ न कहो |

* भारतीय राजनीति के समक्ष महती समस्या यह है कि हर पार्टी की सरकार बनते ही वह व्यक्तिगत सरकार हो जाती है | कुछ लोगों की महत्वाकांक्षाओं का वर्कशॉप , उनके सपनों का रंगमहल | चाहे वह इमरजेंसी हो, समाजवाद - सेक्युलरवाद, बैंक राष्ट्रीयकरण, ज़मींदारी उन्मूलन, प्रिवी पर्स की समाप्ति हो या जन धन योजना , टॉयलेट या बुलेट ट्रेन ! सब या ज्यादातर निजी उपलब्धि या लोकप्रियता बटोरने की खातिर, नैतिक - सैद्धांतिक कम ! क्या कहीं कोई सलाह मशविरा होता है , जो इन्हें जनता पर लाद दिया जाता है और जिसका सुफल कम, कुफल ज्यादा जनता को भुगतना होता है ! इससे अच्छा कम्युनिस्टों के पास कम से कम पोलित ( Polite न सही ) Bureau तो होता है ! इधर इनके पास होता है " गेरुआ संतों " की " मिली जुली " सलाहकार समिति | जब कि देश को चाहिए Sane ( सम्बुद्ध ) सहमति !

* अच्छा , एक बात बताइए | मौलिक प्रश्न है यह | अलबत्ता इसे मैं " वाहियात ग्रुप - Absolute Nonsense " में पोस्ट करूँगा | क्योंकि मेरी बातें वाहियात ही होती हैं |
हाँ तो आप जिस लड़की से प्यार करते हैं , चलिए वह किसी भी धर्म जाति की हो | आप ज़रूर चाहेंगे उसकी ख़ुशी | उसे हर तरह से सुखी ही रखना चाहेंगे | इसमें तो कोई शक नहीं है , भले आपको जान ही देनी पड़े , क्योंकि वह आपको आपकी जान से भी ज्यादा प्यारी है | अब वह तो जानती है कि वह आपसे शादी करेगी तो उसके माँ बाप देर सवेर अपने घर में प्रवेश दे ही देंगे , इसलिए वह आपके साथ भागने को तैयार हो जाती है | लेकिन प्रेमी महोदय, मजनू की औलाद, जब तुम्हे पता है कि तुमसे शादी के लिए तुम्हारी चहेती को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर क्या बल्कि उसे मुसलमान बनाया ही जायगा , चाहे उसके लिए उसकी रजामंदी हो, न हो | तो तुम बच्चू उसका सुख चैन छीनने , जीवन  तबाह करने के लिए उसे क्यों अपने घर ले आये ? क्या यही है तुम्हारा प्यार या प्यार का नाटक ? या सिर्फ उसके तन - मन से खेलने की तुम्हारी चाहत ? प्रेम करते थे तो त्याग करते अपनी वासना और तृष्णा का ? करते रहते प्रेम | प्रेम के लिए शादी ही क्या एकमात्र रास्ता है ? तुम्हारा क्या गया ? तुमने तो अपना धर्म छोड़ा नहीं ? प्यार का जज्बा था तो छोड़ते इस्लाम और अपनी प्रियतमा का धर्म अपनाते न अपनाते , उसकी बाहों में रहते !

* यह पोस्ट धर्मयोद्धाओं, युद्धप्रेमियों के लिए है | नास्तिक अधर्मी इसे न पढ़ें |--
युद्ध एक अनैतिक कर्म है | ईश्वर की इच्छा के विरुद्ध मनुष्य की धृष्टता |    समझा जाना चाहिए , जो हो रहा है , नफा या नुक्सान , वह ईश्वर की इच्छा, सहमति , बल्कि उसी के करने से हो रहा है | फिर किस बात के लिए युद्ध ? किस उद्देश्य के लिए लड़ाई ?

* वह ईश्वर ही क्या जिसे अपने को मनवाने की परवाह करनी पड़े ? जिसके न मानने का भी विकल्प खुला हो वह सर्वशक्तिमान कैसे ?

* मानते हैं जी , बिल्कुल मानते हैं हम ईश्वर को | अब आपको हमारा मानना समझ में न आये तो हम क्या करें , जैसे हमें आपका ईश्वर को मानना पल्ले नहीं पड़ता | अब यह कोई ज़रूरी थोड़े ही है कि जिसे माना जाय वह सच ही हो , या जब वह सच हो तभी माना जाय ? हम तो प्राइमरी / मिडिल स्कूल से ही व्याज / चक्रवृद्धि ब्याज के सवाल लगाते समय मानकर चलते रहे हैं कि " माना वह धन 100 है " | और फिर उल्टी दिशा से हल करते गए , उत्तर निकालते गये | और यह हमेशा हुआ है कि उत्तर 100 कभी नही निकला | 100 के बहाने हम गणित सुलझाते रहे और उत्तर 100 के अलावा कुछ और ही निकला , जो कि सही उत्तर थे | अब फर्क महसूस कीजिये | हमारे और आपके मानने में यही अंतर है | आप 100 मान कर चले और उसी को अंतिम उत्तर बता दिया जो कि गलत था , परीक्षक ने आपको शून्य अंक देना ही है | इधर हम 100 को मान कर चले , सही जवाब पर पहुँचे , उसे पकड़ा और माने गये 100 की संख्या को पीछे छोड़ दिया | हमारा उत्तर सही निकला | हम 100 / 100 नम्बर पाते हैं | तो चलिए हम आप फिर से मान कर चलते हैं कि " वह धन 100 है " ! :-)

* वैसे बात सही है | मैं सेक्युलर हूँ नहीं | मैं कभी कभी मुसलमानों की भी आलोचना कर देता हूँ |

* धर्म यदि राजनीति है, तो राजनीति भी धर्म हो सकता है | तो राजनीति हमारा धर्म हुआ !

* अब, बदले हुए समय में, धर्म की परिभाषा भी वही मान ली जानी चाहिए जो religion की है , मज़हब की है | सब एक दूसरे के पर्यायवाची | का करि तर्क बढ़ावे शाखा ?

* राम का एक अर्थ " अपना आप " भी है | अपने ' राम ' तो यही समझते हैं | अतः, धार्मिक जन अपने धर्म के स्थान पर 'राम ' भी लिख सकते हैं , हिन्दू मुसलमान के स्थान पर | सेक्युलरवाद की एक प्रमुख परिभाषा के अनुसार धर्म आपका निजी मामला है |

इतना सीधा नहीं हूँ मैं , कि कुत्ते मुँह चाटें | 
हाँ , कुतियों की बात दीगर है |

कोई भी सुख 
सुखान्त नहीं होता 
सर्वदा ,
कोई दुःख भी 
सदैव 
दुखान्त नहीं होगा !