शुक्रवार, 28 जून 2013

नागरिक लेखन 27 - 28 जून 2013

* दलितों के लिए मैं चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में भी आरक्षण का पूर्ण समर्थन करता हूँ | बशर्ते उन्हें उनकी खुद की पत्नी और बच्चों एवं परिवार के सदस्यों का इलाज न करने दिया जाय |

* अरे  वह सब मैंने कहा था
की तुम्हारे बिना जी नहीं पाउँगा ,
तुम्हारे बगैर मर जाऊंगा ,
लकिन वह मानी ही नहीं |
तभी तो वह सुखी है
और मै भी आनंद से !

* लेकिन यदि वह "राज्य" है [राज धर्म की धरना के साथ] तो वह धर्म या पंथों से निरपेक्ष रह ही नहीं सकता | वह [यहाँ नामशः] या तो हिन्दू की और झुकेगा या मुसलमान की तरफ | इसलिए यहाँ राज्य सेक्युलर नहीं है | जो दल मुस्लिम वोटों के मुन्तजिर हैं वे अपने को सेक्युलर [ इसीलिये छद्म ] कहते हुए भी साम्प्रदायिक हैं | और जो हिन्दू के पक्ष में खड़े हैं वे तो साम्प्रदायिक कहे ही जा रहे हैं | विषय थोडा विषद है और मेरा विमर्श किंचित भिन्न, इसलिए भारत में इस या यूँ कहें विस्तृत न्याय की व्यावहारिकता पर कुछ आगे लिखूंगा | शायद आज ही कहीं |
वह लेख ज़रा लम्बा है | इसलिए एक पंक्ति में सारांशतः उसका उपसंहार बता देना अपन फ़र्ज़ समझता हूँ |                                                          दुनिया में secularism वैसी चलेगी कि अमेरिका ब्रिटेन में हिन्दू मुस्लिम सिख अपनी दादागिरी न करें, अरब देशों में हिन्दू ईसाई अपना धर्म न फैलाएं और हिंदुस्तान को कोई ईसाई - दारुल इस्लाम बनाने की कोशिश न करे | इस अनुशासन से कुछ लोग निबद्ध नहीं होना चाहते इसलिए विश्व में अशांति है और secularism का क्षरण | यूरोप का secularism वहां के Church [ ध्यान दें - केवल ईसाई धर्म ] v/s State के तनाव का उपचार था | भारत तमाम धर्मों, मजहबों,पंथों का आगार है | यहाँ वह नहीं चलेगा | मानना होगा हर मुल्क का एक मूल होता है - मूल प्रकृति और प्रवृत्ति | अमेरिका के सिक्के पर In God we trust चलेगा | ब्रिटेन में ईसाई महारानी से किसी को परेशानी नहीं होनी चाहिए | पाकिस्तान / बंगला देश में इस्लाम कायम है, उचित ही है | तो फिर भारत में हिन्दू राज्य का औचित्य स्वयंसिद्ध है | हिन्दू राष्ट्र तो यह है ही | सुराज कुराज का प्रश्न है ही नहीं | हो सकता है यह अफगानिस्तान की नक़ल करे, संभव है रामराज की, तो असंभव नहीं हिन्दू राज्य किसी कमाल पाशा के हाथ आ जाय !        

* सरकार क्यों पूछती है अवयस्क बच्चों से उनका धर्म ? सेक्युलर राज्य से क्या मतलब नागरिक के धर्म से ? उसे क्या लेना देना ? इंतजाम के मकसद से वह यह पूछे कि किसे क्या कितना खाना अच्छा लगता है ? उन्हें क्या बीमारियाँ हैं ? तो फिर बाप भी नहीं लिखायेगा धर्म का कालम स्कूल एडमिशन के फार्म में |

* बरबाद गुलिस्ताँ करने  को बस एक किताब ही काफी है | कुछ ज्ञान प्राप्त करने के लिए अट्ठारह किताबें कुछ भी नहीं |

* कविता पाठ - शाहजहांपुर , दिनांक - 16 जून 2013
आधे घंटे में 25 कविताएँ सुनायीं | ज्यादा पसंद नहीं की गयीं |
11 कवि श्रोता उपस्थित | तथापि , समाचार चार अख़बारों - स्वतंत्र भारत / अमर उजाला / दैनिक जागरण और हिंदुस्तान (दैनिक) में प्रकाशित | मेज़बान - श्री शशि भूषण जोहरी + श्रीमती (डा) रीता जौहरी | धन्यवाद !

* स्टेशन पर जब दो गाड़ियों की क्रासिंग होती है , तो पहले आई हुई ट्रेन रुकी रहती है और बाद में आने वाली गाडी पहले चली जाती है | क्या इस अनुभव और तर्क के आधार पर यह निष्कर्ष जा सकता है कि बाद के धर्म पहले चले जायेंगे और प्राचीन हिन्दू या सनातन धर्म सबसे बाद तक टिका रहेगा ? Remember = " हर ट्रेन को शहर से गुज़रना है, हर गीदड़ की मौत आनी है| "
मैं स्टेशन पर खड़ा हूँ |

* भारत में एक धर्म है हिन्दू | बहुत पुराना, सडा गला, दकियानूसी, प्रगति विरोधी, अवैज्ञानिक | उसकी सभी लोग फजीहत करते हैं | बहुत अच्छा करते हैं | है ही वह इसी योग्य | लेकिन सवाल यह है कि इस्लाम क्या अति आधुनिक, नया, तारो ताज़ा, प्रगतिशील, और वैज्ञानिक धर्म है जिसकी प्रशंसा और तरफदारी करते लोग थकते नहींहैं ?

कविता         - -  [ रहिमन निज मन की व्यथा ]

* जानता हूँ लोग हँसेंगे
सुनकर मेरी पीड़ा ,
उसका मज़ाक बनायेंगे ,
तिस पर भी मैं अपना दुःख
अपने दोस्तों को
तार तार करके सुनाता हूँ ,
आखर दोस्त हैं मेरे
थोडा हंस लें ,
इसी बहाने
कुछ प्रसन्न हो लें
वरना उन्हें ही ज़िन्दगी में
कहाँ ख़ुशी नसीब ?
#  #

* सरिता [ हिंदी मासिक ] के संपादक विश्वनाथ जी पर यह खब्त स्वर थी कि अस्पताल को हस्पताल लिखते थे | जनसत्ता [ हिंदी दैनिक ] के संपादक प्रभाष जोशी जी की जिद थी - वह अहमदाबाद को अमदाबाद छापते थे |

* जो भगवान् का श्रेय है उसे उसको दो , यदि उसे मानते समझते हो | लेकिन फ़ौरन बाद जहाँ से विज्ञानं का क्षेत्र शुरू होता है , विज्ञानं का हक विज्ञानं को दो |
[संकेत - आप का फ़र्ज़ क्या है यह आपका आध्यात्मिक विषय  है | दुनिया कैसे बनी, यह विज्ञानं का विषय है  ]

* विश्वास करो ईश्वर पर यदि करना ही चाहते हो | आप की मर्ज़ी है | हम कर ही क्या सकते हैं ?लेकिन कह तो सकते हैं कि दख लेना - यह तुम्हे तोड़कर , खंड खंड टुकड़ों में बाँट कर रख देगा और तब तुम्हारे पास हाथ मलने तक की ताक़त नहीं रह जायगी | वह तुम्हारे ह्रदय का प्रेम, तुम्हारे बुद्धि की तार्किकता को तार तार करके रख देगा तुम्हारी समग्र मनुष्यता को | तब तुम देवता तो क्या, जैसा यह दावा  करता है , ठीक से अपने मन के दानव भी नहीं बन पाओगे | अभी ये जो हिन्दू मुसलमान, ठाकुर ब्राह्मण हैं , ये क्या हैं ? फिर भी हमें क्या ? जब तुम्हे नहीं दिखाई पद रहा है तो मानो ईश्वर को , गिरो धर्मों के चरणों में ! जैसा तुम्हारा मन हो | हमें क्या है ?

* झूठ की ताक़त के बारे में मैं जब तब  लिखता रहता हूँ | कि उसकी ताकत को पहचाना नहीं जा रहा है | कुछ उदाहरण हैं :--
- सारे जहां से अच्छा -- -
- हम होंगे कामयाब - - -
-  खुदा हमारा मरा नहीं है जिंदा है आसमानों में.
- etc   etc
- और एक नया जोड़ लीजिये - सत्ता बन्दूक की नाली से निकलती हैं |
और देखिये कितने लोग मरे जारहे हैं , अपनी जान दिए पड़े हैं इन झूठों के सहारे ?

* योग [योगा न सही ] , से सारे मर्ज़ [रोग ] ठीक हो जाने का वायदा था | फिर उन्ही के बनाये दवाओं के डिब्बे , टिकिया और केप्सूल क्यों ?

* गरज पड़ने पर तो मैं गधे के भी पैर पड  जाता हूँ | ये तो ब्राह्मण , अफसर , मंत्री - मुख्य मंत्री , मायावती हैं !

* कोई कितनी भी गलती पर हो , उसे अपनी गलती स्वीकार करने में दिक्कत होती है | देर तो लगती ही है |

* समाजवाद समाजवाद चिल्लाते रह गए डा राम मनोहर लोहिया , लेकिन लोहिया [के निजी नाम] को तो रौशन किया मुलायम सिह ने , उनके नाम की तख्तियां पार्कों - अस्पतालों वगैरह पर टांग कर !                          भले लोहिया जी होते तो उन्हें ऐसे व्यक्तिवादी कर्म काण्ड पसंद आते या नहीं ?

आगे मैं कुछ सोच रहा था - क्या लोहिया को उनके जाति नाम से पहचाना जा सकता है , जैसा कुछ मित्र जिद करते हैं ? कल्पना चावला , सुनीता विलियम्स , हरगोविंद खुराना , मेघनाद साहा, होमी जहाँगीर भाभा के जाति नाम को क्या उनकी जाति से जोड़ा जा सकता है ?
मुझे विश्वास है कि एक दिन ये जाति नाम सिर्फ नाम रह जायेंगे ,  जाति नहीं बताएँगे | इसलिए अपनाम उपनाम से न लड़ें, जातिगत  आचरण , कु व्यवहार से बचें , उसे मिटायें | नाम गैर महत्वपूर्ण है, काम का महत्त्व है |

* इस बात का तो रंज मुझे है , और यह वाजिब शोक है कि मुझे बहुत निम्न सोच के लोगों के साथ रहना  पड़ रहा है | मजबूरी है , कुछ किया भी नहीं जा सकता |

* No employer, no institution, no government can pay you your equivalence for your work or service, if you really put in your heart and mind [ i.e. your real self] in your job .

* धर्म की बातें
बहुत मुश्किल है
आम करना |

* क्यों देश बचे ?
लूट खाने के लिए
तुम लोगों के ?

* राज्य मिला है
तो शासन चलाओ
खेल न करो
मजाक नहीं होता
पूरा देश देखना !

* अब अकेला,
बिल्कुल ही अकेला
हो गया हूँ मैं |

* पहाड़ टूटा
जीवन नष्ट हुए
कहाँ ईश्वर ?

* खरीदना था
सस्ता हो या मंहगा
खरीद लिया |

बुधवार, 26 जून 2013

नागरिक लेखन 24 - 26 June 2013

* चलो मेरे देवता शिव जी महाराज , कहीं और चलें इस दुनिया को छोड़ | यहाँ तो भांग - धतूरा कौन कहे, सार्वजानिक स्थलों पर सिगरेट तक नहीं पीने दिया जाता | और हमारे पास कोई व्यक्तिगत स्थान है नहीं !

* नारी मुक्ति आन्दोलन का मतलब है - औरतों और मर्दों के बीच झगडा फ़ैलाने का कार्यक्रम ?

* कपडे यदि साफ़ सुथरे और बेदाग़ हों, तो भी उन्हें बिना प्रेस [इस्तरी ] कराये पहनने से इज्ज़त पर कुछ दाग लग जाता है ? ?

* Lesbian Marriage -
Gay शादियाँ तो समाचारों में आ गयी हैं |कुछ देशों में यह वैध भी हो गया है | लेकिन Lesbian शादियों का समाचार अभी कहीं से नहीं आया | संभव है मेरे ही संज्ञान में न आया हो !

* अल्पसंख्यकों के [वोट खिसकने के ] डर से रूह कांपती है इनकी | चले हैं सेक्युलर बनने !  

* सेक्युलर का मतलब होता है -
" देवता ज़मीन पर  "
वरना इतनी महानता साधारण मनुष्यों में तो आने से रही !

1 - बिना पार्टी ( राजनीति )
[ Without Party]
2 - निंदक दल
[ Reprover Party ]

* If you have anything about Atheism anywhere, anyway , please enlighten us must .

* शारीरिक अस्वस्थता के प्रति मैं अधिक चिंतित नहीं हूँ | चिंता इस बात की है कि यह कहीं मानसिक अस्वस्थता में न तब्दील हो जाये ?

* हिन्दू हो , चलेगा |
मोदी से भी कट्टर हो , चलेगा |
लेकिन मोदी ?
नहीं चलेंगे  |
इनकी तो आज़माइश हो चुकी है |

* केदारनाथ मंदिर को इस त्रासदी के आरोप में स्थाई रूप से बंद ही क्यों न कर दिया जाय ? ठीक है यह कहर उन्होंने नहीं ढाया , लेकिन उन्होंने इस दुर्घटना  को बचाया या रोका भी तो नहीं ?

some notes -
* पास ही तो था तुम्हारा दर [ घर ] , तुम्हारा वास ,
फेकू कभी काबा गया , कभी अमरनाथ |
[ काबा तो कभी अमरनाथ जाते तुम्हारे दास ]

* जिसको देखना है वह तरोई की एक बेल, छुई मुई के एक पौधे से ईश्वर को जान सकते हैं | नहीं देखना , तो क्या काबा क्या अमरनाथ ?

* आस्था - विश्वास के मामले में आत्मनिर्भर बने तो कई समस्याएं हल हो जाती हैं | मुल्ला पंडित पर भरोसा करो तो वे हमारी बुद्धि को बिगाड़ देते हैं , मन को बरगला लेते हैं | हमारे विचार   एवं विश्वास तब हमारे नहीं रह जाते |

* न वे ईश्वर का कुछ बिगाड़ पाएंगे उसे गाली देकर | न हम ईश्वर का कुछ बना पाएंगे उनसे लड़ -झगड़ कर , यदि ईश्वर को सर्व नहीं , कुछ भी शक्तिमान मानते हो तो |
ईश्वर को लेकर कोई कैसा भी मज़ाक करे या चुटकुला बनाये , उनका बिल्कुल बुरा न मानें | ईश्वर यदि है तो वह आपका ही नहीं उनका भी है | या हमारी तरह यह समझिये कि उसका कोई वास्तविक अस्तित्व नहीं है |

* मान लीजिये हम ईश्वर की प्रार्थना भी करें अपने कुछ काम बनाने के लिए , तो हम इतने छोटे आदमी हैं कि वह हमारी बात सुनेगा ही नहीं / सुन ही नहीं पायेगा | करोडपतियों के चढ़ावे के बदले उनका काम करते करते ही उसका इतना समय और शक्ति लग जाता है कि हमारा नम्बर आते आते वह थक कर चूर हो जाता है या तब तक उसका फरियादी काउन्टर बंद हो जाता है | ऐसा रोज़ ही होता है , ऐसा रोज़ ही होगा | यह पक्का जानिए | इसलिए कोई फायदा नहीं है हमारे आप के लिए उसका पूजा पाठ करने से | वैसे मन का भ्रम मिटाने के लिए चाहें तो करके देख लें | कुछ होगा नहीं | होगा तो कुछ अपने ही प्रयासों से दोस्तों और सभा समाजों की मदद से या कुछ संयोग से | अब संयोग को कहीं ईश्वर की कृपा न समझ लीजियेगा |

* [ कविता ]
मुझसे
प्रार्थना करने के लिए
कहा गया था ,
लेकिन मैं तो
प्रयास करने लगा !
#  #
[ थक गया | अभी बस इतना ]    

* अपने आस्थागत रिवाज़ पर सब टिकें | टीका न लगवाने से सेक्युलरिज्म की कोई हानि नहीं है | मैं मुसलमान नहीं, नास्तिक हूँ और मुझे खुद पसंद नहीं यह | साम्बंधिक अवसरों पर कहीं साली - सरहज को खुश करने के लिए लगवा भी लिया तो मैं उसे रुमाल से फ़ौरन पोंछ लेता हूँ | उमर के लिए ऐसा दिखावा करना कोई मजबूरी नहीं है | तो इसमें सेकुलरवाद कहाँ से आ गया | आप दुम हिलाते पगड़ी, तलवार, सरोपा, तो कभी इफ्तार पार्टी करते हैं तो टोपी क्यों नही पह्नेनेगे ? और अपनी इस कमजोरी को अपना सेकुलर होना मान लें तो यह आपकी गलतफहमी है | इसमें किसी का क्या दोष | यद्यपि टोपी सांस्कृतिक मसला था , टीका धार्मिक है | अब कल को आप खतना करा लें , फिर कहें की उमर ने जनेऊ क्यों नहीं पहनी ?  ? ? - - -
 उलटे भाजपा के सारे नेता खुले आम सार्वजानिक रूप से बड़ा बड़ा टीका { अरे नहीं तिलक }लगाये घुमते हैं | तो विलोम्तः क्यों न मान लिया जाय कि वे सेकुलर नहीं हैं | टीका हिन्दू का सांस्कृतिक वेश नहीं है, धार्मिकता के दिखावे का प्रतीक है | यह ब्राह्मणों का टोटका है , जिसने पुरे देश को तबाह कर रखा है अपने अन्धविश्वासी व्यापर से | किसी दलित - किसान - मजदूर को कभी टीका लगाये देखा क्या ?

* यह भला मानववाद क्या होता है ? मनमानो वाद कहते तो हम भी समझते !

* मानव को मानो | यही है मानववाद |

* भारत में दलित आन्दोलन ही " मनु ,- मार्क्स और मोहम्मद " की खबर लेने में समर्थ है |"

* सच पूछिए तो मुसलमान होना ही आस्तिक होना है | - मुसल्लम [पूर्ण ] ईमान [ ईश्वर पर विश्वास ] हो जिसका | और कोई क्या खाकर आस्तिक होगा ? कभी इधर , कभी उधर | जिस लोटे का कोई पेंदी न हो वह हिन्दू धर्म है | निश्चय ही वह बर्तनों का भण्डार है | पर यह t आस्तिकता नहीं ? इसीलिये नेता लोग भी कहते हैं हिन्दू कोई धर्म नहीं, मज़हब नहीं, जीवन शैली है | इसके तमाम दर्शन नास्तिक हैं | फिर भी यह आस्तिक होने का छद्म करता है जो इससे करते नहीं बनता और बार बार इस्लाम से मात कहता है | नास्तिकता, जो इसकी अनमोल पूंजी है और जिसके बल पर बहरह विश्व विजेता  हो सकता था, उसकी यह खिल्ली उडाता है | तो इसे कमज़ोर तो होना ही है क्योंकि आस्था के मामले में यह इस्लाम का मुकाबला नहीं कर सकता |  

* प्रबुद्ध साथियों ! मुझे नहीं पता किसने लाशों पर ठिठोली की, लेकिन यह भी जानिए कि उन पर आंसू बहाना भी बस तात्कालिक ही है | उससे कुछ हासिल नही होता | सेवा कार्य हर इन्दिविदुअल्स के लिए संभव नहीं होता, सीमा पर लड़ने जाने की तरह | यह जवानों और सरकारी / गैरसरकारी संस्थाओं के ही वश का होता है | व्यक्ति के वश का जो होता है वह तो उन्होंने १००० रु प्रति बोतल पानी बेच कर कर दिखाया |क्या आप समझते हैं हमें शर्म नहीं आयी / आणि चाहिए अपने देशभक्ति के नारों और दिखावे पर ? तो ऐसे मौको पर शोक के साथ क्रोध भी आता है कई कारणों से | और यही अवसर होता हिया जब दीर्घकालिक उपाय सोचे सुझाये जाते हैं | उसमे पर्यावरण की रक्षा भी शामिल है, और धर्म तथा ईश्वर के प्रति अंधविश्वास निर्मूलन भी | क्या इसे भी कोई लाशों पर ठिठोली कहेगा ?

* कराहता हूँ
मगर अकेले में
कोई न सुने |

* अध्यात्म है
तो वह आप  का है
पराया नहीं |

* अपनी  मिट्टी
प्यारी पर बर्तन
चीनी मिट्टी के |

* वह गुज़रा
इतने करीब से
तूफ़ान आया |

* अब  पाता  हूँ
कितना छोटा था मैं
अभी कल ही !

* एक दुःख हो
तो आपको बताऊँ
क्या क्या बताऊँ ?

* अवसर की
ताक में तो रहिये
कूद जाइये |

* नया नौ दिन
पुराना सब दिन
कहावत है |

* हम सब तो
कीड़े हैं, मकोड़े हैं
जी सर आप ?

* कुछ तो कमी
रक्त के प्रवाह में
ज़रूर रही |

* जिद की जाये
क्यों टोपी लगाने की ?
टीका देने की ?

* अभी तो और  
बुरे दिन आयेंगे
अभी क्या देखा !

* जैसे वे  वाद
वैसे, उसी तरह
है राष्ट्रवाद |

* तमाम वाद !
उसी तरह एक
है  राष्ट्रवाद |

* सारी किताबें
किस्से कहानियाँ हैं
असरदार |

* कुछ बदलो
ज़माने के हिसाब
दुनिया देखो |

* मुझे आज़ादी
तुझे गुलामी मिले
सब चाहते |

* सारी दुनिया
लेफ्ट के गिरफ्त में
यदि आ जाये ?

* भरा पड़ा है
हिंसा का इतिहास
हमारे हाथ |

* दुःख ही दुःख
चारो और समाया
पीड़ा ही पीड़ा |

* अब क्या कहूँ
आप की बात पर
सुन तो लिया |

* न ज्यादा दूरी
किसी से भी हमारी
न नजदीकी |

[ All posted by Divya Ranjan Pathak]
सांस्कृतिक संध्या आयोजित
लखनऊ से पधारे साहित्यकार उग्रनाथ नागरिक के सम्मान में हुआ आयोजन
शाहजहाँपुर। बाल विहार खलीलशर्की में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन लखनऊ से
पधारे साहित्यिक क्षेत्र के पत्रकारिता से जुड़े उग्रनाथ नागरिक के
सम्मान में किया गया।
        श्री नागरिक 2004 में सिंचाई विभाग के सहायक अभियन्ता पद से रिटायर होने
के बाद साहित्य क्षेत्र में हैं। वह बस्ती के निवासी हैं। उनकी मूल विधा
डायरी लेखन,लघु कवितास चिंतन, सरल व्यवहार है। उनके विचार समतावादी
मानवतावादी हैं। 1984 से मासिक पत्रिका का प्रकाशन चल रहा है। फ़ेसबुक पर
उनके चाहने वाले काफ़ी संख्या में हैं। उग्रनाथ ने अपनी रचनाएं सुना कर
उपस्थित लोगों को भावविभोर कर दिया। ओम् प्रकाश अडिग, चन्द्र प्रकाश
वाजपेयी, प्रशान्त अग्निहोत्री, सत्य प्रकाश मिश्र, बृजेश सिंह, सुशील
चन्द्र श्रीवास्तव, कीर्ति सिंह, अखिलेश साहनी, शशि भूषण जौहरी,
राजेन्द्र यादव, राम मोहन सक्सेना आदि मौजूद रहे। आभार रीता जौहरी  ने
जताया। (स्वतन्त्र भारत मंगलवार 18 जून 2013, पृ0 4.)

काव्य गोष्ठी में पढ़ी रचनाएं
शाहजहाँपुर। बाल विहार में काव्य गोष्ठी और सम्मान समारोह का आयोजन किया
गया। कार्यक्रम में लखनऊ से आए साहित्यकार उग्रनाथ नागरिक का सम्मान किया
गया।  प्रकाश जनकल्याण समिति के अध्यक्ष चन्द्र प्रकाश वाजपेयी ने
साहित्यकार का परिचय प्रस्तुत किया।
उन्होने बताया कि उग्रनाथ 2004 में सरकारी नौकरी से सेवा निवृत्त होने के
बाद से पूर्णकालिक रूपसे साहित्य सेवा कर रहे हैं। मूल रूप से बस्ती के
रहने वाले उग्रनाथ की मूल विधा डायरी लेखन, लघु कविता आदि रही हैं। इस
मौके पर उग्रनाथ ने अपनी चुनिन्दा रचनाएं सुनाईं। इसके साथ ही वरिष्ठ कवि
ओम् प्रकाश अडिग, बृजेश सिंह, डॉ0 प्रशान्त अग्निहोत्री, सुशील चन्द्र
आदि ने भी अपनी रचनाएं प्रस्तुत कीं। आभार शशि भूषण जौहरी ने व्यक्त
किया। (हिन्दुस्तान बरेली बुधवार 19 जून 2013, पृ0 7)।

साहित्यकार उग्रनाथ को किया सम्मानित
शाहजहाँपुर। नगर के साहित्यकार  ने लखनऊ के साहित्यकार उग्रनाथ नागरिक के
सम्मान में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस मौके पर अतिथि कवि की
रचनाओं का पाठ भी किया गया। मोहल्ला खलीलशर्की में हुई साहित्यिक संध्या
में कार्यक्रम में चन्द्र प्रकाश वाजपेयी ने उग्रनाथ नागरिक का परिचय
दिया। इसके पश्चात् वरिष्ठ कवि ओम् प्रकाश अडिग, डॉ0 प्रशान्त
अग्निहोत्री, डॉ0 सत्य प्रकाश मिश्र, बृजेश सिंह,  सुशील चन्द्र
श्रीवास्तव, कीर्ति सिंह, अखिलेश साहनी, राजन यादव, शशि भूषण जौहरी, राम
मोहन सक्सेना आदि ने उग्रनाथ के अभिनन्दन  पर हर्ष जताया। (अमर उजाला,
बरेली मंगलवार 18 जून जून 2013, पृ0 7)।

सांस्कृतिक संध्या का आयोजन
शाहजहाँपुर। बाल विहार खलीलशर्की में लखनऊ से पधारे उग्रनाथ के सम्मान
में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया। बस्ती जिले के मूल निवासी व
सिंचाई विभाग के रिटायर्ड सहायक अभियन्ता उग्रनाथ की मूल विधा डायरी लेखन
व चुटकुली लघु कविता आदि के लिए प्रसिद्ध हैं। ओम् प्रकाश अडिग, चन्द्र
प्रकाश वाजपेयी, डॉ0 प्रशान्त अग्निहोत्री, डॉ0 सत्य प्रकाश मिश्र,
ब्रजेश सिंह व सुशील चन्द्र ने कविता पाठ किया। (दैनिक जागरण, बरेली
बुधवार 19 जून 2013, पृ0 6)।
[ All posted by Divya Ranjan Pathak]

रविवार, 23 जून 2013

Nagrik Posts 21 to 23 June 2013

शशि भूषण जोहरी , शाहजहांपुर
मुझसे एकदम अपरिचित अपने मित्र डी के के घर अलीगंज आये थे | वहां उन्हें मेरी हस्तलिखित किताब - बुद्धि विहीना [ Nonstop Nonsense ] मिल गयी | कुछ अच्छा लगा होगा, यह ज़रूरी नहीं है , बल्कि इनके मिलनसार स्वभाव ने इनसे मेरे पास फोन कराया | मिलने की इच्छा जताई | ये बैंक से निवृत्त अधिकारी हैं | मेरा आवास इतना छोटा और अव्यवस्थित है की मुझे किसी सर्वहारा Prolitariat को भी घर बुलाने में संकोच होता है | मैं इनसे मिलने DK के घर चला गया | श्री मान जी इतने सहज सरल मनमौजी निकले कि अपने घर  शाहजहांपुर चलने का प्रस्ताव कर बैठे | वहां ये और इनकी पत्नी भर रहते है | एक बेटे ने मारीशस में घर बसा लिया है |
फिर तो हम दोनों 15 जून को शाहजहांपुर चले गए | मैं 20 को वापस आया | इस बीच इन्होने कई कवियों से मिलाया , हमारी कवि गोष्ठी करायी और खूब खिलाया पिलाया | ये अति लोकप्रिय समाजसेवी भी हैं | ' आम आदमी ' पार्टी में भी हैं | अपने घर में ही पहले स्कूल चलाते थे | फिलहाल गेस्ट हॉउस के रूप में इस्तेमाल हो रहा है और आगे वृद्धाश्रम कि योजना है | इनसे और श्रीमती डॉ रीता जोहरी से मिलकर प्रसन्नता हुई | चार पांच दिन मेरे सुख से बीते | इन्हें धन्यवाद |

* चलिए, अगर बकौल अल्लामा इकबाल, प्रजातंत्र में सर ही गिने जाते हैं , तो फिर अल्पसंख्यकों का 20 - 25 परसेंट शेष आबादी पर भारी कैसे पड जाती है कि इस वोट को कोई भी पार्टी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाती ? बल्कि इनकी चाटुकारिता में लग जाती है ?  
[हाँ मगर यह संख्या भी भारी होती है | मैं अपनी बात वापस ले सकता हूँ |]

* ब्राह्मणवाद is not a normal or good life, no doubt . But undoubtedly, it is a life saving device . Way to - " Live with differences between every one and all " . Like snakes and men and women on one tree at the time of flood . And lo ! here is a bad news . This worldly life is always under the days of flood , one or the other calamity . That is why this '' ism '' is not going to 'go' .

" गतिविधि " = गति + विधि = " How to Move "
कुछ लोग मिले हैं | बात बन रही है | शायद कुछ " गतिविधि " शुरू हो | संभवतः इसी नाम से |  इस नाम के अन्दर एक और अर्थ छिपा है | गति + विधि = " How to Move " | कोई रणनीति , strategies बनानी हैं - मानुषिक असभ्यता के खिलाफ |

* दियासलाई के एक ब्राण्ड की तीली को दूसरे ब्राण्ड की माचिस पर रगड़ने से क्या वह जलेगी नहीं ? फिर आंतर विवाहों में क्या परेशानी है ?

* हम उनकी मजबूरी समझें ,
वह भी तो कुछ कोशिश करें !
मजबूरी की ही कुछ बातें
आपस में तो साझा करें !

* मिलना तो दूर, मिलने वह आये ही नहीं ,
फिर भी कहूँगा - आप से मिलकर ख़ुशी हुई  |

* मुझे उस व्यक्ति पर अत्यंत क्रोध आता है जो कहता है - यह काम मैं नहीं कर सकता  |
[करूँगा नहीं, आप कह सकते हैं | लेकिन कर नहीं सकते / लिख नहीं सकते ऐसा नहीं है | या यह हो सकता है जो आप कर या लिख रहे हों वह भिन्न विशिष्ट हो |वह भी तो करना /लिखना हुआ  ?]

* इन्सान = आदमी | मैं इसे अपनी संस्था का नाम रखना चाहता हूँ |  Individual Human Being

* मान लीजिये ईश्वर असमर्थ या कुछ खफा था, तो अल्लाह को तो कुछ करना चाहिए था तबाही से मनुष्यों को बचाने के लिए ! आखिर देश की पर्याप्त जनसँख्या उनकी पूजा इबादत करती है ?

* पाखण्डी , The Hypocrite  
समाज में अतिशय पाखण्ड व्याप्त है और हम उनका तिरस्कार - बहिष्कार नहीं कर पा रहे हैं | इसलिए हम स्वीकार करते हैं कि हम वस्तुतः पाखण्डी ही हैं | =
पाखंडी समाज { Society for Hypocrisy } ? Hypocrite India / Indian Hypocrisy / ?  ?

* शादी करो तो यह तो मुमकिन, या कहें अवश्य है कि अपनी संतानों से उपेक्षा और प्रताड़ना मिले | लेकिन शादी न करो तो वृद्धावस्था में आपकी थोड़ी सी भी संपत्ति के लिए सेवा के नाम पर ऐसे दुष्ट लोग मिलेंगे कि आपको मार ही डालेंगें | इस मामले में मैं इस्लाम का पक्षधर हूँ [वैसे भी बहुत मुतास्सिर रहा हूँ मैं इससे] | व्यक्ति को विवाह अवश्य करना चाहिए | देखिये वहाँ कोई भी मौलाना मौलवी अविवाहित नहीं रहते | जब सारे हिन्दू साधु संत ब्रह्मचारी (?) होते हैं | इस पर आप हंस क्यों रहे हैं ?

* मुझे कतई विश्वास नहीं कि "राम शलाका प्रश्नावली " भी गोस्वामी तुलसी दास ने बनाई होगी |

* हो न हो तीर्थयात्रियों ने मार्ग में कहीं समोसे ज़रूर लाल चटनी के साथ खाए होंगे | सब के सब ने | तो इसमें भला निर्मल बाबा का क्या दोष ? उन्होंने तो पहले ही बता दिया था |

* आयुर्वेद भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली है | कोई तीर्थयात्री एवं अन्य जन इसे नहीं अपनाते | सब अंग्रेजी दावा खाते हैं | वही काम सरकार भी कर रही है - दुर्घटना के बाद बचाव | आपद स्थिति में रहत कार्य तो ठीक ही है | लेकिन ऐसी स्थिति आने ही क्यों पाए इस पर कोई काम नहीं हो रहा है | जिस शांत वातावरण को प्रकृति के अनुसार लगभग  निर्जन रहना चाहिए वहां इतने आदमियों की भीड़ क्यों गयी, क्यों जाती है ? किसी कुम्भ मेले से कोई सबक क्यों नहीं लिया जाता | तो Imbalance तो होगा ही और उसका भयावह परिणाम भुगतना पड़ेगा | यह सेक्युलरवाद की कमजोरी है जिसके नाम पर तमाम पार्टियाँ राजनीति कर रही हैं, और स्वयं इसका ABCD नहीं जानतीं | हम बताते हैं तो हमें अधार्मिक - अनैतिक कहकर हटा दिया जाता है | तो चलो आस्था चैनेल ! यह चैनेल किसका है, शायद वह भी राजनीति में है | शेष अशुभ |  

* [ हाइकु- टांका ]
हे अखबारों !
धार्मिक लेख छापो
अध्यात्म और
भक्तिभाव जगाओ
राशिफल बताओ |

* इस दुःख की घडी में, तिस पर भी, मैं एक निवेदन मित्रों से करना चाहूँगा | किंवा मैं उन्हें स्वतंत्र करना चाहता हूँ | जिनके भी ह्रदय में अब भी ईश्वर के प्रति भक्ति भावना हिलोरें मारता हो और उस पर जिनके मन में किंचित भी प्रश्नचिन्ह या संदेह न उभरता हो वे मेरी मित्र सूची से कृपा करके अलग हो जाएँ | क्योंकि मैं किसी को यूँ तो जानता नहीं हूँ कि उन्हें हटाऊँ | स्वीकार करता हूँ कि मैं उतना उदार और शालीन नहीं हूँ कि उनके पाखण्ड और लन्तरानियाँ बर्दाश्त कर सकूँ | मैं देवता नहीं, साधारण आदमी हूँ | मेरे प्रस्ताव पर कृपया ब्रह्माण्ड और सृजन पर प्रवचन न प्रारंभ करें | इस चेतावनी के बाद भी यदि वे हमारे साथ रहते हैं तो स्वागत है उनका | बस अपनी धार्मिक भावना को चोट खाने से बचाने की ज़िम्मेदारी उनकी होगी | हमारा तो काम ही होगा ईश्वर [ अल्लाह समेत ] और धर्म [ मज़हब सहित ] पर लगातार चोट करना | हम जैसे भी करें | फिर न कहियेगा कि पहले बताया नहीं था |
 दर असल हुआ यह कि मैं अपने स्वभाव की विनम्रतावश लोगो का मुंह ताकते थक गया हूँ | कि कहीं कोई बुरा न मान जाय, किसी के दिल को चोट न पहुंचे | पर मुझे यह भावना त्रस्त करती है कि मैं अपने साथ छल कर रहा हूँ , एक छद्म - पाखंडी जीवन जी रहा हूँ | अब जीवन की मात्रा कम है तो कम ही मित्रो से गुज़ारा करूँ | थोड़ी अपनी जिंदगी जी लूँ [ जिसकी सम्भावना अब भी कम है, क्योंकि मुझे अपना जीवन कभी नसीब नहीं हुआ | बस सबको खुश ही करता रहा ] | फिर मुझे अपने सोच की कोई दुकान तो चलानी नहीं है, न सामाजिक कार्य करनी है न राजनीतिक दल ही बनाना है | फिर भीड़ क्यों इकठ्ठा करूँ | आप महसूस नहीं कर सकते की किस तरह के कमेंट्स होते हैं , कैसी धमकियां मिलती हैं | अब मैं उनका क्या करूँगा | मेरा जीवन युद्ध तो अब समाप्त है | या समेट रहा हूँ जीवन के हर - हथियार | यह तो बुझते दिए की लौ है जो भभक रही है |  


* नास्तिकता की बातें हिन्दुओं के लिए हैं | मुस्लिम मित्र इन पर ध्यान न दें | वैसे भी उन्हें इससे क्या मतलब, सिवा इसकी मुखालिफत के ? इसीलिये हम सब और वे केवल हिन्दू आस्तिकों की आलोचना करते हैं | गौर से देखिये, वर्तमान त्रासदी के हाहाकार में भी किसी हिन्दू आस्तिक ने भी यह तथ्य अपने पक्ष में नहीं उठाया कि ऐसी दुर्घटनाएँ तो हज यात्रा के दौरान भी भगदड़ में हो जाया करती हैं |  

* बिल्कुल अन्यथा न लिया जाय | ईश्वर पर आस्था और मज़हबी समर्पण में इस्लाम का कोई सानी नहीं है | लेकिन मैं मित्रतावश सोचता हूँ इसका क्या फल मिला मुसलमानों को ? वैश्विक दुश्मनी, सार्वजानिक द्वेष, घृणा, दूरी और अलगाव ? और ऊपर से मज़हब की बदनामी ? आखिर कुछ तो हासिल होना चाहिए था उन्हें उनकी भक्ति के परिणाम/ पुरस्कार स्वरुप ? कहाँ है ईश्वर ?      

* खरीदार हैं बाज़ार में, यह सच तो है ,
बेचने वाले भी बाज़ार में  कुछ कम नहीं |

* यह उठा सभ्य नागरिकता का मुद्दा | धन्यवाद नीलाक्षी जी, आन्दोलन में शामिल होने के लिए |
[ बहुत प्रारंभिक कविता है यह ]
* हमने अपने घर का कूड़ा
छत से बहार फेंक कर,
यह नहीं देखा कि वह  
उड़कर कहाँ गिरा |

* मन में पापी ख्याल आता है | कहीं प्रकृति [आस्तिकों के ईश्वर ] को, देश के 'संतरी' हिमालय को नरेन्द्र  मोदी अस्वीकार तो नहीं हैं ? जो इसने उनके आते ही इतना क्रोध दर्शाया ?

" पैदल पार्टी "              
क्या यह नाम ठीक नहीं रहेगा | सब अकेले अकेले भी अपने दो पांओं से चल सकते हैं | और -
अकेले ही चले थे जानिब - ए - मंजिल मगर ,
आदमी मिलते गए और कारवाँ बनता गया |
भी हो सकता है |
अंग्रेजी में " ON FOOT " और राजनीति को गरियाने के लिए " My Foot"  भी हो सकता है |
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दस हज़ार से ज्यादा मौतें
कैसे सब्र करें ?
कितने कब्र भरें ?
* वह तो अलग बात है की ईश्वर पर विश्वास [अंधविश्वास] न करें, लेकिन मसअला यह है कि किस पर विश्वास करें ? और विश्वास करें न करें, हम करें तो क्या करें ? कर्तव्य विमूढ़ता की स्थिति है जैसे |
वैसे इसका कुछ न कुछ दोष तो भगवान् केदार नाथ पर जाता ही है , निर्विवाद | मेरा प्रस्ताव है, जैसे मंदिरों ऑस उसके देवी देवताओं के गुणगान, प्रशंसा में सच्ची झूठी कथाएँ अंकित की जाती हैं, तो उसके नकारात्मक तथ्यात्मक सूचनाएँ भी उसके प्राचीरों पर पत्थरों पर अंकित किये जाएँ जिससे पीढ़ियाँ उनसे अवगत हो सके | जैसे यहाँ दर्ज होना चाहिए कि वर्ष २०१३ में इसी स्थान पर इतने श्रद्धालु तीर्थयात्रियों ने अपना जीवन गँवाया |
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* प्यार बस प्यार और कुछ भी नहीं ,
इसका आकार और कुछ भी नहीं |

तुम जो अच्छे हो अच्छे लगते हो ,
इसका आधार और कुछ भी नहीं |

तुमसे मिलने की तमन्ना भर है ,
वरना इस पार और कुछ भी नहीं
[ लक्ष्मी चंद 'दद्दा ' , गोंडा ]

* सब मानता
कुछ नहीं मानता
वक़्त की बात |

* थोडा सह लो
गुम जायगा दर्द
थोड़ी देर में |

* कुछ न कुछ
हुआ, ज़रूर हुआ
मुस्कराने से |

* भला बताओ
पैर के दर्द पर
क्या प्रवचन ?

* मंजिलें होतीं
एक के आगे एक
राहें छूटतीं |

* हमारे बीच
इतनी दूरी ठीक
या कुछ और ?

* और नहीं तो
आपके जीवन का
कथन और
कर्म का अंतर ही
खोलेगा सारा छद्म !

* हंसाती तो हैं
बचपन की यादें
रुलाती भी हैं |

* कैसे मुक्ति हो
ब्राह्मणी पाखंडों से
चिंता की बात |


* ईश्वर नहीं
अस्तित्व को मानता
क्या परेशानी ?

* भक्ति भावना
जोर मारे तो चलो
अमरनाथ !

* बच निकलो
बहाने बहुत हैं
कोई बना लो !
* हम ठीक हैं
कोई जो हाल पूछे
यही बताएँ |
* मैं तुम्हारा था
मेरा कुछ था नहीं
सब तुम्हारा |
* जल जंगल
ज़मीन की लडाई
मार करायी |
* विषमता का
भण्डार है संसार
इसी में जीना |
* यह दुनिया
वह दुनिया भी है
सब यही है |
* मुसलमान
हमारे मेहमान
तवज्जो योग्य |
* सब सत्य हैं
शास्त्र सम्मत बातें
सिद्ध क्या करें ?
* करते तो हैं
पूजा पाठ, ईश्वर
सुने तब न ?
* किसी प्रकार
ज़िन्दगी काटनी है
कट जायगी |
* सिद्धांततः तो
ठीक कहते आप
हम कर्म से |
* सरस्वती की
सवारी हम लोग
उलूक बुद्धि |
* ऐसे ही नहीं
धन फर्नीचर से
भरा है घर !
* हैं तो ज़रूर
आप लोग समृद्ध
जैसे भी हुए !
* कोई आदमी
कितने दिन रहे
पत्नी के घर ?
* बूढ़ा ज़माना
निगोड़ा है पुराना
इसे बदलो !
* सारे ही लोग
बड़े होशियार है
मैं ही दुर्बुद्धि !
* कटु वचन
निकाला नहीं जाता
निज मुख से |  
* राम रहीम,
ईश्वर अल्ला नहीं
शब्द है ब्रह्म |
* मैं नास्तिक हूँ
नास्तिकता प्रचार
मेरा धर्म है |

* बिलावजह के आदमी तमाम
मेरे मित्र हैं |
* कैसे बनता
नेताओं का संकल्प
जन संघर्ष ?
* मेरा स्वार्थ
कुछ और, तुम्हारा
उद्देश्य और |
* नइखे तोडलीं
कौनो लक्ष्मण रेखा
तबहूँ जेल !    
* जिस वस्तु की  
प्रासंगिकता न हो
हटाओ उसे,
दूर भगाओ जाति
धर्म जनित भेद |
* विश्वास करो  
ईश्वर पर, करो
टूटते जाओ
हमें क्या ऐतराज़
जैसी आपकी इच्छा |
* इतना बुरा
तो नहीं लिखा मैंने
आप यूँ चिढ़े ?  

* शारीरिक है
बड़ी ही शरीर है
मेरी जो वह |

* सत्ताईस को
मिलने जा रहे हो
मिल ? पाओगे ?

* चलो , मेरे ही शब्द चुराओ
मेरी ही पंक्ति नक़ल करो |
जैसे मैं कहता हूँ -
मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
तुम इसे ही सौ बार कहो
इसे दुनिया में फैलाओ !    

* हाँ ऐसा ही | मन नहीं मानता | ऐसा ही कहता है जब कोई अपना संकट में होता है | माँ कहती है - हाय मैंने उसे भेजा ही क्यों बाग़ में लकडियाँ, सूखी पत्तियाँ बटोरने ? न मैं भेजती न साँप उसे डसता | जब की सत्य तो बरनवाल की ही बात है | लड़के की मौत तो कहीं भी हो सकती थी | कहीं भी उसे वही साँप डस सकता था |

गुरुवार, 20 जून 2013

UGRA Blog 15 to 20 June 2013

* मैं ज़िन्दगी भर
सत्य का दामन छुए रहा ,
इतना नहीं कि
फाँस में लपेट ले मुझे |

-- " मैं यू पी को बदल कर ही दम लूँगा " - राहुल गाँधी |
== तो इसका नाम "राहुलगाँधी लैंड" या सबसे अच्छा "सोनिया लैंड" रख दो न ?
स्विटज़र लैंड से मिलता जुलता ?

* इस मंजन का प्रयोग करो | इसमें नमक है | और जानते ही हो भारत में नमक
का कितना अभाव है ?

* मैं जातिवादी नहीं हूँ पर आप मुझे मेरी जाति से पहचानते हैं | या आप
जातिवादी नहीं हैं किन्तु मैं आप की जाति से आपको जोड़ कर देखता हूँ | तो
फिर जातिवाद गयी कहाँ ? जा कैसे सकती है ? जातिवाद पारस्परिक पहचान के
आधार पर जिंदा है | यह सामजिक संस्था है | व्यक्ति कितना कुछ कर सकता है,
वह इसे बढ़ाने में हो या इसे मिटाने में ?

ऐसे समय में यह टिप्पणी करना कहीं गलत, या उनकी आस्था के लिए अपमानजनक तो
नहीं हो जायगा कि - " अच्छा होता वे लोग तीर्थ यात्रा पर न गए होते ! " ?
[ Ref - Badri / Kedar Nath par Kahar ]
* इसे Adventure कहना तो मुझे ' साहस ' का अपमान करना जैसा लगता है |
साहसी होते तो भगवान की शरण में क्यों जाते ? विपरीत्तः वे तो निरीह,
अशक्त, [आत्म] बल विहीन जन ही लगते हैं | [ To Navneet Tewari ]

एक पुराना जज्बा याद आ गया =
ज़िन्दगी से जुड़े हुए मसलो ,
सामने आ, मैं देखता हूँ तुझे |

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Abhilekh Singh
Sir Nilakshi ne to Mera jabab sun ke mujhe block hi kar diya
Sayad use Lagta hai ki wahi gyani hai par use nahi pata ki aap jaise
log Bhi to hain .
Ugra Nath
Gyani hon bhi to bhi , gyan nahi uddeshya [ Purpose of life and
thinking ] mahatvpoorn hota hai . Thanks for your love to me .
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० - चाकू तेज़ था
और वज़नदार
एक ही वार !
१ - सब झूठ है
सच निकालना है
इनके बीच |
२ - सब झूठ है
झूठ को जानना ही
ज्ञानवत्ता है |
३ - जानने और
नहीं जानने में है
यही तो फर्क !
४ - तेरा नाम ही
तेरे धर्म का नाम
बना है तो क्यों ?
५ - मिल गया न
फिट हो गयी गोटी
पुरस्कार की ?
६ - होंगे तो नहीं
सारे अफसर ही
मातहत भी !
७ - दया कर दी
दे दिया तो ले लिया
बोला- शुक्रिया !
८ - अच्छा नहीं है
सबसे सब कुछ
उगल देना |
९ - ख़राब ही तो
सबकी ही जिंदगी
किसकी अच्छी ?
१० - किया न किया
नौकरी बचायी तो
पेट तो पाला !
११- यह सत्य है ?
तो बाहर निकालो
इसे यहाँ से |
१२ - व्यंग्य ही कसूँ
और करेंगे ही क्या
इन वक्तों में ?
१३ - यह सड़क
दूर तक जाती है
सँकरी भी है |
१४ - सोचना तो है
पर ज़रूरी नहीं
सर खपाना |
१५ - होगा सो होगा
ज्यादा सोचते नहीं
हम फ़िज़ूल |
१६ - जो होना है सो
होने भी तो दीजिये
देखा जायगा |
१७ - कोई नियम
नहीं है प्रकृति का
मनुष्य का है |
१८ - ढूँढ लेता है
पानी अपना तल
कहीं गिराओ |
१९ - किस विज्ञान
की पुस्तक में लिखा
नमस्ते करो ?
२० - कौन डॉक्टर
यह नुस्खा बताता
प्रणाम करो ?
२१ - आँख मारना
एक आँख से होना
दृष्टि बाधित !
२२ - मन फटा हो
अच्छी नहीं लगती
साथ सुन्दरी |
२३ - उनकी ख़ुशी
किनारा कर लिया
जानो मैंने ही |
२४ - दूर हो गयी
ग़लतफ़हमी थी
हिन्दू मुस्लिम
सिख ईसाई सब
आपस में भाई हैं |
२५ - मैं चुप हुआ
बहुत गुस्सा आया
जब जब भी |
२६ - आपने कहा,
किया प्यार से बात
यही बहुत
शुक्रगुजार हूँ मैं
याद रखूँगा सदा |
२७ - पाया न पिज़्ज़ा
फेल हो गया बच्चा
किसका दोष ?
२८ - आपत्ति ही है
धर्म जिस कौम का
तो करेगा ही !
२९ - बेमज़ा होता
भेद का खुल जाना
दिल में रखो |
३० - मैंने हमेशा
दिमाग दौड़ाने की
वकालत की
लिखने पढ़ने की
कुछ खेल क्रीड़ा की |
३१ - कीजिये मेरी
ख़ुशी ख़ुशी विदाई
मैं भी खुश हूँ |
३२ - विज्ञ का नहीं
युग विज्ञापन का,
प्रचार का है,
न विज्ञानं का ही है
संज्ञान का भी नहीं |
३३ - दिल तो रहे
बुद्धि की ऐसी तैसी
तर्क की क्षय ?
३४ - सारी संपत्ति
है तो पापा के नाम
सब मेंरी है |
३५ - समझिये कि
विषम है दुनिया
चैन पाइए |
३६ - कुछ न सोचो
यह भी एक ध्यान
एक विधान |
३७ - थैंक्स भी घूस
उनका कहना है
मानेंगे आप ?
३८ - किस भी सेक्स
उनका कहना है
अजीब बात !
३९ - जाने दीजिये
बुज़ुर्ग आदमी हूँ
गलती हुई |
४० - पसंद आना
और बात है शादी
करना और |
४१ - भूल चुकेंगे
जब हम तुमको
तब आओगे ?
४२ - सबकी किया
अब अपनी सोचूँ
थोडा तो बुरा ?
४३ - अब तो मेंरा
काम निकल गया
फूटो यहाँ से |
४४ - Do be kind [ डू बी काइंड = 5 ]
Not most kind [ नाट मोस्ट काइंड =7 ]
To anyone . [ टु एनी वन = 5 ]
४५ - मैं छूटे तब ,
पद, धन, दौलत,
का मय छूटे !
४६ - काम से काम
बाकी, प्रेम इत्यादि
सब दिखावा |
४७ - धन बढ़ना
सारे कष्ट का मूल
मन का बढ़ना |
४८ - माँ पालती है
वह जानती गुर
कैसे पालना ?
४९ - अब चलेंगे
हम तुम्हारे साथ
कुत्ते की भाँति |
५० - प्रेम नाम की
कोई चिड़िया कहीं
नहीं रहती
सब सेक्स विमर्श
प्रेम एक भ्रम है |
५१ - मिल गया था
विनम्र रहना था
ऐंठ ले डूबी |
५२ - कुछ भी नहीं
बिना भेदभाव के
होता कहीं भी |
५३ - यही नर्क है
यह दुनिया स्वर्ग
बस तो यही |
५४ - बंधना भाया
बंधता चला गया
छूट न पाया |
५५ - उनको बड़ा
बनने की ख्वाहिश
ले गई नीचे |
५६ - ऐसी जुगुप्सा ?
क्या करोगे ज्ञान की
अट्टालिका का ?
५७ - हम करेंगे
उनकी बराबरी
मार डाला रे !
५८ - सबने लादा
मेरे ऊपर भार
मैं हूँ संसार |
59 - न इस पार
कोई आग लगी है
न उस पार |

* मुझे ख़ुशी है कि मैं हाइकु के विषय वस्तु [ Content ] पर कमेन्ट
प्राप्त कर सका, न कि सिर्फ 5 - 7 - 5 पर वाहवाही |

शुक्रवार, 14 जून 2013

Nagrik Blog 10 to 14 June 2013

रुला तो दिया तुमने इन हवालों से हम जैसे लोगों को | लेकिन क्या समझते हो कोई फायदा है ऐसे पोस्ट्स से ? किस्से हैं किस्सों का क्या ? अब उत्पादन, उत्पादक शक्तियों, उत्पादन के मूल्य के बंटवारे वगैरह के बारे में सोचो दिवाकर जी | खूनो क्रांति का स्वागत करो | स्वर्ग उसी रास्ते आएगा |

नक्सलवादी हमलों के तर्ज़ और तर्क पर तो मोदी यात्रा का औचित्य भी निकाला जा सकता है, यदि तार्किक ईमानदार हो तो | वही रति - प्रति वाला ! वही मोदी ने किया था, उसी लाइन पर ये भी अपनी कार्यवाही उचित सिद्ध कर रहे हैं | उन्होंने हिन्दुओं पर हुए अत्याचार का बदला लिया, तो ये आदिवासियों पर अन्याय का प्रतिशोध | अब या तो दोनों उचित हैं या दोनों अनुचित |

नक्सलवाद समर्थकों के दिल दिमाग से वह स्वानुभूत - सहानुभूति वाला दलित तर्क कहाँ गायब हो गया ? क्या ये विश्वसनीय हैं ?

आतंकवाद है तो आतंकवाद का कारण है
कारण है तो निवारण है
नक्सलवाद है तो नक्सलवाद  का कारण है
कारण है तो निवारण है
लेकिन निवारण भी तो आतंक है, नक्सलवाद है
राज्य का, राज्य के लिए, राज्य के द्वारा
इसलिए आतंकवाद और नक्सलवाद का
कोई निवारण नहीं, क्योंकि
आतंकवाद और नक्सलवाद का
कोई कारण ही नहीं |
#  # # #

हम बच गए रे साम्भा
हम फिर बच गए
चला फिर से गोलियाँ
कितनी हैं रे तेरे बन्दूक में
हम तो तीन ही हैं, तीन के तीन
तब भी थे अब भी हैं,
तीन तेरह करोड़ या अरब ;
चिंता मत कर रे  
हैं न तेरे पास इतनी गोलियाँ
नहीं हैं तो आ जायेंगी
तू चला, चलाता जा गोलियाँ
और मारता जा
बड़ा मज़ा आता है रे
जब तू मारता है
और हम मरते हैं
हमें भी मज़ा आता है  
खूब मज़ा आता है रे !
#    $

हे अर्जुन ! न कोई मारता है
न कोई मरता है
केवल असत्य और अन्याय ही मरता है हर बार
और जीत होती है सत्य की
तेरी जीत होती है इसलिए तू सत्य है
शेष सभी झूठे हैं
देख इस बार भी तू ही जीता
इसलिए तू सत्य है
सत्य की जय हो |
#   #

होने दो समर
आप तो नहीं मरेंगें
क्योंकि आप हैं अमर ,
क्योंकि आप आदिवासी
नहीं अनंतवासी हैं,
और आपका का कोई रिश्तेदार
नहीं है यहाँ मरने के लिए |
#  #  

There are so many deaths occurring or made to occur everyday . So , very logically , I request my friends to please not mourn for a single second on my natural or unnatural  death .

मैं नास्तिक हूँ | कहता तो हूँ ऐसा |  ईश्वर भगवान को नहीं मानता | इनके बगैर मेरा काम चल जाता है | चाहे नैतिकता का अथवा अनैतिकता का | लेकिन अल्लाह नहीं है और मै अल्लाह को नहीं मानता ऐसा कहने की हिम्मत नहीं है मुझमे | वह तो ज़रूर है , मुझे उससे डरना पड़ता है जब कि हिन्दू देवी देवताओं का मज़ाक - खिल्ली उड़ाकर भी मैं निर्भय रह सकता हूँ | इतने लोग तो अल्लाह के पक्ष में हैं जब कि उससे अधिक भगवान के विरोध में हैं | तो मेरी नास्तिकता मेरी गलतबयानी ही तो हुई ? मैं अवतारवाद भी नहीं मानता | पर पैगम्बर आते हैं, यह मानना पड़ता है | तमाम बुद्धिजीवियों को सशरीर देखता हूँ जो मुसलमान ही नहीं, उनके बहाने इस्लाम की रक्षा के लिए सीधे परलोक से पधारे हैं, जब कि उनका कहना है कि वे इहलौकिक [यानी सेक्युलर हैं ] | इस्लामी किताब और देवदूत की रक्षा में संघर्षशील मुस्लिम ऋषि - मुनियों का ताप - यज्ञ निर्बाध संपन्न कराने इन्होने भगवान् राम की तरह ही मनुज अवतार लिया है ! तो क्यों न मानूँ अल्लाह को ? क्यों न मानूँ अवतारवाद को ? और तब क्यों न मानूँ श्री राम के भी देवत्व को ?                

"नागरिक" कहो, "नागरिक" कहाओ |
रोटेरियन की तरह, कामरेड की तरह,
आप जो भी हो
" नागरिक " तो अवश्य ही हो |
सबको हमारा संबोधन " नागरिक " है |
यह खुराफात हमारा मिशन है |

Neel ji , Go on writing without thinking merits and demerits of the posts | खलबली मचाये रहिये बेमकसद, कुछ न कुछ मतलब निकल ही आएगा | जैसे इसी पोस्ट से हमने यह निष्कर्ष निकाला कि सब कुछ ठीक हो जाय, सारी समस्या समाप्त हो जाय, बस इस्लामी शासन आने भर की देर है | यही तो कहना चाहती हैं आप ? भाड़ में जाय बुद्धिवाद, चूल्हे में नास्तिकता जिनकी भी पैरोकार हैं आप ! और नहीं तो क्या मतलब आपका ? क्या इतिहास पढ़ाना ? कुछ भूगोल पर भी ध्यान दीजिये | क्या बनाना चाहती हैं और फिर उसी पर नज़र रखिये उसी पर निशाना | कह दूँ तो औरत विरोधी कहलाऊँ लेकिन जो आप कर रही हैं वह औरतों की पंचायत के लिए ही उपयुक्त होता है | कुछ नवीन गढ़िये |

अजेंडा २०१४
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि कोई पार्टी या गठबंधन मोर्चा २०१४ चुनाव के लिए मात्र एक अजेंडा घोषित कर दे कि देश से नक्सलवादियों का सफाया करेगी और उनके समर्थक सफेदपोशों को मीसा वगैरह में बंद कर उनका सत्यानाश कर देगी ? क्योंकि न इन्हें इंसानी जिंदगियों से कुछ लेना देना है न देश से कोई प्रेम | दलित भी आखिर सदियों से दलित अवस्था में हैं पर उन्होंने तो कोई नर संहार नहीं किया | ये नर नारी विनश्यते द्वारा मनुष्यों का हित कर रहे हैं तो ऐसा हित नहीं चाहिए |
ऐसा भी तो हो सकता है कि जनता ही यह तय कर ले कि केवल इसी अजेंडे वाली पार्टी को वोट देंगे | न  धर्म न निरपेक्षता , न धार्मिकता न साम्प्रदायिकता | देश के सामने केवल एक समस्या है - अपनी रियाया की रक्षा | ऐसी की तैसी विकास की | पहले आदमी तो बचें | पोस्ट तो कर रहा हूँ पर दर रहा हूँ  | अभी दो दिन पहले ही तो उसी रस्ते कोल्कता से सपरिवार लौटा हूँ और मधुपुर में भात का पैकट खाया था |      

Vsy जी , आज पोस्ट देखा और आप का आदेश भी | मैं बहसों में बहुत कम पड़ता हूँ विशेषकर प्रस्तुत विषय पर | अधिकतर यह बहस नहीं विश्वास का विषय है, मेरे लिए आध्यात्मिक मंथन का | कोई ज़रूरी Nही सब कुछ कोई बता कर हलुआ पूड़ी की तरह दे दे, तभी हम उसे माने या समझें ? यही से फर्क शुरू हो जाता है आस्था और बुद्धिवाद में | तब भी नजीर भाई, उमा जी ने सारा कुछ तो बता दिया - समझने वाले  के लिए | लेकिन आशु की [कथित] जिज्ञासा का उद्देश्य जानना है ही नहीं | वह सब जानते हैं | उनका एक मकसद तो मज़ा लेना है[जो इस स्थल पर वर्जित है ] और दूसरा यह सिद्ध करना कि मुस्लिम नामधारी तो अनीश्वरवादी हो ही नहीं सकता | तो भाई नाम तो कुछ न कुछ किसी न किसी भाषा में होंगे ही व्यक्तियों के विभिन्न संस्कृतियों से उपजे, भले उनके विश्वास / अविश्वास एक से हों | और भाषा किसी ईश्वर की नहीं, आदमी की बनायीं हुई है, और संस्कृतियाँ भी | अलबत्ता वे धार्मिक तीज त्यौहार जैसे लगते हैं |[इसीलिये मैं अपने आन्दोलन में इस बात को शामिल करता हूँ कि संस्कृतियों से माथा मत टकराओं वर्ना टूट जाओगे]| संस्कृति और धर्म को अलग करके देखना होगा, नजीर साहेब ने बताया तो | ठीक है वह बदलाव भी आना चाहिए, और आएगा भी जिस पर आशु जी घिसे जा रहे हैं | लेकिन पहले दिमाग तो बदले प्रिय बन्धु ? उसकी तैयारी और आपके आदेश - पालन में अपनी जो थोड़ी जानकारी है बता दूँ [वैसे तो मैं तो "पोथी पढ़ि- पढ़ि जग मुआ" वाला ज्ञानी ? हूँ ] - इस क्षेत्र में कई शब्द झीने अन्तरो से ख्यात है | Humanism, Secularism, Rationalism के अलावा आस्थावादी Theist के विपरीत को Non - theist, Non - believer, Atheist, Godless , Mystics , Agnostics etc तमाम | लेकिन इनमे इतने थोड़े अंतर हैं [उसमे मैं जाऊंगा ही नहीं ] जो दर्शन के अध्येताओं के लिए है, फेसबुक के लिए नहीं | यहीं फेसबुक पर हैं वह लेकिन कम वाचाल, कभी अपने मित्र Dr Ramendra Prof & Head , Philosophy -Patna से मिलाऊँ | उन्हें जानकारी भी है और शल्यक्रिया में पटुता भी  | उनकी संस्था " बुद्धिवादी समाज " है और एक किताब भी " आस्तिक - नास्तिक संवाद " नाम से | दर असल होता यह है की हम सरसरे तौर पर ज्ञानी बनना चाहते हैं और आनन् फानन में कमेंटेटर  | न तत्संबंधी पुस्तकें पढ़ते हैं, न ऐसे लोगों और संस्थाओं से संपर्क | [ उलटे इन्हें हंसी मज़ाक का पात्र, चिढ़ाने के लिए इस्तेमाल ज़रूर किया जाता है ] | जिसका जो मन हो करे किन्तु ये चीज़ें थोड़ी गंभीरता और गहराई से डूबने की तो होती ही हैं, लो उम्र गुज़ार देते हैं | यह हार जीत का कुरुक्षेत्र नहीं आध्यात्मिक कर्मस्थली है | आशु जी से निवेदन कीजिये कि खुद कुछ झाँकें हमारे क्षेत्र में कोई गुरु / ग्रन्थ वगैरह नहीं होता | सब खुद जानना होता है, खुद पकाना खुद खाना होता है | एक ही दर्शन के मानने वाले भी भिन्न मत के होते हैं | इसीलिये हमारा कोई संगठन - मठ नहीं बनता | फिर भी एक आसान रास्ता सूझता है - ईश्वरवाद/ आस्थावाद को पहले जान लो फिर उसी को उलट दो या औना पौन्ना कुछ टेढ़ा मेढ़ा करके देखो | शायद कुछ मिल जाए | मिल जाये तो हमें भी बताएँ | न मिले तो एक घंटा मौन रहकर देखें |    
"अनीश्वरवाद जानना चाहता हूँ "
आप अनीश्वरवाद क्यों जानना चाहते है ? पहले यह स्पष्ट कीजिये | फिर बताइए आप किस्से जानना चाहते है - ईश्वरवादियों से या अनीश्वरवादियों से ? इस जानकारी का आपके लिए क्या उपयोग ? क्या इस्तेमाल करेंगे उसका ? राजनीतिक या आध्यात्मिक या ठिठोलिक ? आप कहाँ खड़े हैं, क्या हैं ? आस्तिक नास्तिक या केवल बाहसिक ? ? ? Question mark is the base of Reasoning .  
बहुत जन हैं संवाद के लिए | मं असमर्थ हूँ, या मेरी एक सीमा है | मैंने तो महज़ VSY के आदेश पर फ़र्ज़ अदायगी की | अन्य कोई भी संवादी कृपया एक आँख से पढ़कर दूसरे से निकाल दें |          
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* तब नयी संस्कृति का विकास होगा | बिना धार्मिक आदेश के हम ज़िम्मेदार और कर्तव्यनिष्ठ होंगे | बिना विज्ञानं के बताये हम प्रणाम - नमस्कार करेंगे ; एक दूसरे को गले लगायेंगे - चूमेंगे |
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Shraddhanshu Shekhar
Out beyond ideas of wrongdoing
and rightdoing there is a field.
I'll meet you there.
Pata hai ? Yaha se bohot door... ghalat or sahi ke paar, ..ek maidaan hai, main waha milunga tujhe.
- Rumi

* जनाब हिनुस्तान [ भारत ] में रहते भी तो नहीं | तब भी आश्चर्य कि विश्व इस्लामी जगत को भी नहीं देख पाते ! बस इनका इतना समर्थन तो उन्ही का उतना विरोध | उनका उतना विरोध तो उन्ही का इतना समर्थन | मकसद विहीन | हमारे मित्र ऐसी Pottery को मज़ाकन BPL , " बे पेंदी के लोटे " कहते हैं |   ujjwal bhattacharya

* मैं उस घर में सुकून से रह कैसे सकता हूँ जिसमें पूजा पाठ होते हों | रोज़े नमाज़ रखे जाते हों ?
[ to Niranjan Sharma - मैं महान नहीं, साधारण आदमी हूँ | अपना भी सुख - सुकून तलाश करता हूँ | हर आदमी हर माहौल में नहीं रह सकता | हिन्दू मुस्लिम माहौल में / जैन सिख माहौल में / मुस्लिम भी हिन्दू घर में बेटी नहीं ब्याहेगा [ बिना उसे मुस्लिम बनाये ] | सो , नास्तिक/ ईश्वरद्रोही भी - - - मतलब चैन से तो नहीं | वैसे तो सबमे दबा कुचला रहता ही है | एक कान में अजान दुसरे में घंटा घड़ियाल !  ]

* मुसलमान का मतलब मुसलमान | हिन्दू का मतलब कुछ नहीं | [ अब कुछ होने लगे है ]

* उनसे मेरी रुष्टि एक बात को लेकर है | उनका चिर - परम - अति अमरीका विरोध और इस्लाम - मुसलमान प्रेम | तुलना करें [ अमरीका की ] आर्थिक दादागिरी या साम्राज्यवाद [ जो कि कभी भी धूल में मिल सकता है ] , ज्यादा खतरनाक है या या इस्लाम की शाश्वत - स्थायी धार्मिक - सांप्रदायिक मुक्केबाजी वाला साम्राज्यवाद | जो एक बार जीत गयी, स्थापित हो गयी तो सदियों न जायगी ? बाक़ी सब कम से कम कहने सुनने में तो ठीक ही लगता है | अच्छा विचार है |

* आसमान में कुछ बदली है ,
क्या दुनिया भी कुछ बदली है ?

* तुम जो अच्छे हो अच्छे लगते हो ,
वरना कुछ बात और कुछ भी नहीं |
[ गोंडा के शायर हैरत साहेब या लक्ष्मी दद्दा ]

* तुम नहीं आओगे तो
मर नहीं जाऊँगा,
पर आ जाते तो
जिंदा हो जाता |

* सास खाती है
पतोहू बनाती है ,
काल (टेन्स ) बताओ ?

* सामने आओ
 बिना  रंग रोगन
विश्व सुन्दरी |

* काम ही प्यार
उपजाता है यार
समझा करो |
OR =
* सेक्स से प्यार
उपजता है यार
समझा करो |

* तिल का ताड़
बनाने में माहिर
साहित्यकार |

* बनना होगा
सबको मजदूर
जग सवाँर |

* स्वार्थी मनुष्य
अपना ही सोचता
निस्स्वार्थी नहीं |

* रमई काका !
बड़ा ध्वाखा ह्वै गा
लखनऊ में |  

* मानना होगा
घृणा बटोरी तो है
मुस्लमानों ने  |

* अकेले रहो
कुछ भी खाओ
कोई न जाने |

* हम न होंगे
कोई पूछेगा नहीं
तब की सोचो |

* धर्मग्रंथ को
किताब कहता है
नास्तिक होगा !

* मरहूम तो
जिंदगी से हो गया
महरूम है |

* आदर्श स्थिति
नारी नारी न रहे
नर न नर |

* तुम अपने
नसीब पर रोये
हम अपने |

* प्रेम का रोग
लगा जो रे जोगी को  
भोगी न हुआ |

* रजनीगंधा
एक फूल का नाम
मेरी बेटी का |

* नवनीत है
मेरे बेटे का नाम
बेटी से छोटा |

* अनुपमा है
बहू मेरी, हँसती
खिलखिलाती |

* दिनमान है
मेरे पोते का नाम
एक वर्षीय |

* पारिजात है
अब बड़ा हो गया
नाती का नाम |

* पारिवारिक
नहीं होनी थीं बातें
बस हो गयीं |    

* चित तुम्हारी
पट भी तुम्हारी हो
ज़रूरी नहीं |

* सुख साधन
अच्छे लगते हैं
सह - आपत्ति |

* भूखी दुनिया
मैंने, तुमने देखी
प्यासी दुनिया |

* गंगा जमना
संगम जो हो गया
तो सरस्वती ?

* दुर्भाग्य ही है
चिकन पैदा होना
कटते जाना |

* मैं बिल्कुल ही  
विचलित नहीं हूँ
दुर्दशा पर |

* एक दुनिया
छोड़कर मै आया
तेरी दुनिया |

* किसी के पीछे
चाहता या चाहेगा
कौन रहना ?

--------------------

* मैं सिर्फ आदमी हूँ
बल्कि आदमी से भी गया बीता,
आदमी तो फिर भी
धर्मों के प्रभाव में
प्रेम जैसा कुछ करते हैं ,
पर मैं घृणा भी करता हूँ
बल्कि घृणा ही घृणा
करता हूँ मैं ;
मैं घृणित मनुष्य हूँ |
#  #  #

* मैं शाकाहारी  नहीं हूँ | कभी कभी मांसाहारी भी हो जाता हूँ | सिगरेट भी पीता हूँ | लेकिन अन्य लोगों की भाँति मैं मांसाहार और धूम्रपान के पक्ष में कुतर्क पेश करने की धृष्टता नहीं करता

* सरस्वती गुप्त नदी हैं संगम की | साहित्यकार को गुप्त ही रहना चाहिए | अपना काम चुपचाप करना चाहिए |

रविवार, 9 जून 2013

Nagrik Posts 8 & 9 June 2013

* प्रमोद जोशी जी एक अनुभवी पत्रकार हैं | यदि हम यह बात कहतें तो भले टाल दिया जाता | लेकिन उन्होंने बड़ी गहरी और महत्वपूर्ण बात कही है -  " देश में राजनीति से सबसे ज्यादा विमुख वे लोग हैं जो किसी राजनीतिक दल का झंडा उठाकर चलते हैं। " दलीय राजनीति वाले हम पर आरोप लगाते हैं कि हम राजनीति में नहीं आते इसलिए राजनीति गंदी और भ्रष्ट हुयी है | जब कि स्थिति पलट है | एक तो हम बाकायदा राजनीति में हैं, ऐसा समझा जाना चाहिए | और हमारी वजह से ही राजनीति में कुछ श्रेय अवशेष है | जब कि दलीय लोग तो राजनीति का व्यापार करते हैं, राज्य की नीति को बेचते - बर्बाद करते हैं | यह अध्याय हमारे Political Training Program के लिए भी उपयुक्त है |  

* सोचना होगा मुस्लिम कौम हिन्दू कुप्रथाओं से क्यों बचा रही ? या इन अर्थों में कोई भी अन्य हिन्दुएतर धर्म ? क्योंकि उन्होंने उन रिवाजों से खाली होने वाली जगह { VOID } को खाली नहीं छोड़ा, या कहें void रहने ही नहीं दिया | बल्कि अपनी नकारात्मक या सकारात्मक नीतियों से भर कर उसका मुँह बंद कर दिया | जैसे उन्हें छुआछूत से मुक्त होना था जो उसे दृढ़ता पूर्वक इन्कार किया | मूर्तियों को हटाया , तो एक अल्लाह से उसकी पूर्ति कर दी | इस प्रकार वे समान्तर से उसके सामने खड़े हो गए |यहाँ हिन्दू कि जगह पर किसी अन्य मज़हब का नाम replace कर सकते हैं | मैं तो इसके पाखंडों, छुआछूत, जात पांत, जैसे बुराइयों को उदहारण बना कर सोच रहा था | और यह भी चिंता थी कि नास्तिक विचारधारा के लोग धर्म कि बुराइयाँ, या धर्म को ही त्याग तो दें पर उस Cavity को भरेगे किससे ? या क्या बिना भरे, नई संस्कृति, रीति रिवाज़ लाये बिना इस जगन्मिथ्या में सच्चाई से जी पायेंगे ?

* On FB, अंग्रेजी में एक पेज है - Militant Atheism . यह मेरी LIKE में तो है पर अंग्रेजी मैं कहाँ लिखता हूँ | लिखता होता तो लिखने का मन था :-- Secular Demand List
 जो अल्लाह पर विश्वास करे सरकार उनकी कोई बात न सुने , हज यात्रा की परेशानियों के अलावा | कहे की नौकरी, सब्सिडी और आरक्षण ? उन्हें वस्तुतः इनकी ज़रुरत भी नहीं है | ईश्वर है न इनके पास ?     [Unna  - cantankerous atheist ]          

{ कविता }     =  " धारयति इति ईश्वरः "
धारण तो करता है ईश्वर
मनुष्य की धारणा को ,
मनुष्य जैसा सोच ले
वह वैसे कपडे पहन लेता है,
मनुष्य जैसा भी चाहे
वैसा ही वस्त्र धारण कर लेता है ईश्वर |
कभी राम के कपडे
तीर धनुष के साथ
तो कभी कृष्ण का पीताम्बर
बाँसुरी ले हाथ,
कभी काली, कभी दुर्गा
कभी शिव, कभी कुछ,
कभी तो हनुमान भी गदाधारी
यहाँ तक कि अदृश्य शून्य      
पहन लेता है वह, और हो जाता है
निराकार, अमूर्त कोई ब्रह्म ,
और भी कभी गॉड पार्टिकल
कभी एटम बम भी हो सकता है |
लेकिन पहनता है, पहने रहता है
आदमी के ही पहनाये कपडे |
कैसे भी, उसका अपना कोई वस्त्र  नहीं |
अब वह कोई सचेतन, जीवंत
संवेदन- स्पंदन युक्त
जीवधारी तो है नहीं
मनुष्य की भाँति, जो
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
की तरह अपने पुराने कपडे
उतार कर नए धारण करे ?
इसलिए वह जड़, जडवत
अपना कोई वस्त्र नहीं उतारता
और मनुष्य अपनी धारणा
उस पर लादे चला जाता है  
सड़े गले - जीर्ण शीर्ण वस्त्र भी चढ़ाए रहता है
नए धर्म के आगमन से पुराने धर्म जाते नहीं  
सब एक दूसरे पर लदे रहते हैं - गंधाते |
मनुष्य कहाँ धारण करते हैं धर्म
ईश्वर ही मनुष्य की धारणा को ढोता फिरता है
विवशतः, क्योंकि उसका
अपना कोई जीवन नहीं है
नहीं है कोई जीवित जीव वह,
न उसके पास है कोई ताक़त
कपडे पहनने - उतारने की चाहत |
#   #   #

* कम्युनिस्ट जन निस्संदेह नास्तिक हैं, लेकिन नास्तिकता के भक्त | हम भी नास्तिक हैं | पर नास्तिकता के मंदिर के पुजारी |

 * सारे धर्म क्या तर्क के आधार पर बने हैं जो आज हमसे नास्तिकता, बुद्धिवाद का तर्क माँगा जा रहा है ? क्या इसलिए कि हमने तर्कबुद्धि को आधार बनाया है ? तो उससे क्या ? वह आधार हमारे लिए है, हम पालन करें या नहीं पालन कर पायें, जैस आप भी करते हो | हमारा आधार हमारे निकष पर होगा आपके नहीं | आपकी आस्था आपके पास, हमारी बुद्धि हमारे पास ! आपकी आस्था मेरा कल्याण नहीं कर सकती | मेरी बुद्धि आप से बहस करने के लिए नहीं है |  

* मुस्लमानों से धर्म चर्चा न करें :--  एक कार्यक्रम मेरी समझ में बड़ी शिद्दत से आता है | इस निष्कर्ष के बाद कि इस्लाम नास्तिकता के मार्ग में सबसे बड़ा बाधक है | वह यह कि मुसलमान [व्यक्ति - मनुष्य ] से तो घृणा न करें ; कर ही नहीं सकते | लेकिन उनके इस्लाम का वैचारिक बहिष्कार करें | उनसे इस्लाम की या किसी भी धर्म की चर्चा में भागीदारी न करें, न उन्हें भागीदार बनायें | जब हम उन्हें नास्तिकता के तर्क नहीं दे सकते, उनके लिए उसे सुनना भी पाप है, तो हमें भी उनके मज़हब के शुभ सन्देश सुनकर जन्नत की दरकार और तमन्ना नहीं है | इसमें सांप्रदायिक जैसा कुछ नहीं है - यह तो युद्ध है - हकीकत से दो दो हाथ !    


* जीतेगी यार , ज़रूर जीतेगी तुम्हारी पार्टी चुनाव में | बस अपने अध्यक्ष से कहो वह रोज़ एक समोसा लाल चटनी के साथ खाना शुरू कर दे | अलबत्ता, प्रधान मंत्री तो वही बनेगा जो एक समोसा हरी चटनी के साथ खायेगा |

* सेक्युलरवाद का सही अनुवाद हिंदी में नहीं है तो क्या करें ? क्या सांप्रदायिक हो जाएँ ? हिंदी में सही अनुवाद तो सेक्स का भी नहीं है |
[ जी राव साहेब , काम तो चल ही रहा है / चल ही सकता है यदि उद्देश्य उलझाना नहीं सुलझाना हो |मैं तो "बिलकुल सही " अनुवाद की बात कह तरह था जिसके अभाव का बड़ा रोना रोया जाता है | सेक्स शब्द में जितना जो कुछ अन्तर्निहित है उतना तो लिंग में नहीं है तो क्या हम सेक्स नहीं करते ? यह कहना था मेरा |]

* थोड़ी सी दूरी तो - - " Least distance of Distinct vision "
यही कारण है कि गरीबों के बारे में उच्चशिक्षित मार्क्सवादी - नक्सलवादी अधिक पीड़ित और उत्तेजित होते हैं बनिस्बत गरीबों- आदिवासियों के जो उन्हें झेल रहे होते हैं |  

 [ झूठी कहानी ]
* हम रेलवे वेटिंग रूम में थे | वह पता नहीं कौन थी | थोड़ी दूरी पर पास बैठी थी | उसे पता नहीं क्या सूझा, उसने अपना झोला मेरी गोद में पटका और भागी टॉयलेट्स की और | मुझे कुछ पूछने जांचने का मौका ही नहीं मिला | झोला बगल में रखकर मैं रखवाली करता रहा और मालकिन का इंतज़ार | काफी देर बाद आई | बोली - "मैंने स्नान भी कर लिया | बड़ी गर्मी थी | धन्यवाद "| और अपना झोला उठा ऑटो स्टैंड कि और बढ़ गयी |
#  #  #

[ झूठी कहानी ]
-- क्या तुम मुझसे शादी करोगी ? एक धनिक युवक ने मजदूर युवती से पूछा |
= शादी ? मोह गए न रूप देखकर ?
आदमी को अपनी सीमा में रहना चाहिए | क्या तुम मेरे योग्य हो ? क्या तुम दो दो जून भूखे रह सकते हो ? क्या तुम चार मील चलकर काम पर जा सकते हो ? और दिहाड़ी में अपना खर्च निपटा सकते हो ?
नहीं न ? फिर कैसे मेरा साथ निभाओगे ? तुम्हारी मेरी क्या बराबरी | शादी बराबरी में होती है |
चलो जाति धर्म न पूछें तो यह जो अंतर है, कहाँ जायगा ?
       #   #    #

* हम यह नहीं कहते कि हम बहुत अच्छे हैं और आप या वे बहुत ख़राब | बस हम नास्तिक हैं जैसे आप  हिन्दू मुसलमान सिख ईसाई हैं | न नैतिकता, प्रबुद्धता, उत्कृष्टता का दावा हमारा है न आप ही इस पर क्लेम करें तो ही अच्छा |

* मैं इस समय आपत्तिजनक स्थिति एन हूँ | टॉयलेट में हूँ | कोई आपत्ति ?

* लडकियाँ शादी के लिए पढ़ती हैं | लड़के नौकरी के लिए | कोई शिक्षित कहाँ हैं ?

* कोलकाता में मूर्तियाँ, पूजा पाठ, पूजा की सामग्रियाँ, शोर गुल बहुत है | परिणाम - फूलों का इस्तेमाल भी बहुत है !

* मेरे घर में तिरिया राज है | अतः स्पष्टतः , मेरा त्रिया [ राज्य और चरित्र ] के खिलाफ होना स्वाभाविक है |

* संतान इसलिए प्यारे होते हैं क्योंकि वे आगंतुक [ Incoming ] होते हैं | बूढ़े इसलिए उपेक्षित क्योंकि वे जाने वाले [ Outgoing ] होते हैं |

* हिंदी भाषा इतनी तो कृतघ्न नहीं है कि अपने एक महान लेखक उग्रनाथ नागरिक को समय रहते न पहचाने | मैंने भी पढ़ी हैं नागरिक जी कि कुछ रचनाएँ | बल्कि उनकी कुछ कविता वगैरह तो मैं गोष्ठियों में भी सुनाता हूँ | हैं तो अच्छी, लेकिन ये मर्देसामी इस तरह लिखते हैं कि दूर से कूड़े का ढेर दिखता है | इनके पास थोडा नज़दीक जाना पड़ेगा | पहचानने के लिए सही दृष्टि और श्रमसाध्य छंटाई माँगता है इनका वांग्मय |  

* अब क्या चाहती है ज़िन्दगी ?
सब लिखकर तो दे दिया !

* प्रचंड धूप
काम पर निकले
कांस्य स्वरुप |

* बिना पोथी की
पढ़ाई है हमारी
शिक्षित हूँ मै |

* कुछ सच है
कुछ गलत भी है
मेरी कहानी |

* चहरों पर
छायी हुई सबके
है बेचारगी |

* क्या पता कोई
क्या सोच ले कोई क्या
सोचने लगे ?

* मैंने सीखा है
ह्रदय से हँसना
मन में रोना |

* अब क्या होगा ?
जिसने पूछा, उसे
बाहर करो |
[गेट आउट ]

* प्रश्न तो उठा
जवाब नहीं मिला
तो इससे क्या ?

* मैं वहाँ रहूँ
जहाँ रहें विद्वान्,
रहे  विद्वता |

* विचारधारा
पढ़ाते समझाते
विचारहीन !

* यह नहीं है
अभी इसके आगे
होगी मंजिल !

* सिर्फ नाम से
फर्क हैं सब लोग
हिन्दू मुस्लमाँ |

* हर कोई है
इतना तो सुंदर
जितना तुम !

* ज्ञान बढ़ाओ
अशांति पानी है तो
जानते जाओ |

* मैं नालायक
मैं नहीं किसी का भी
भाग्य विधाता |

* भाव ज्ञात हो
बाज़ार में आओ तो
बाहर से क्या ?

* जीने के लिए
कहानी लिखी, फिर
कहानी जिया |

* दिखाई पड़े
तो भी नहीं देखो  
पर्देदार को !

* छंद जापानी
विषय हिंदुस्तानी
लिखूँ हाइकु |

* रहता तो हूँ
दुनिया में, वस्तुतः
नहीं रहता |

* नीति निर्वाह
निर्धनता में भी हो
तब तो बात !

* इस ढोल को
दूर से सुनियेगा
सुहावन है !

 * मेरा कहना
गलत है हजूर
माफ़ कीजिये |

* मार्क्सवाद को
पढ़ना तो पड़ेगा
अति चर्चित !

* बहुत खाया
हाजमोला भी खाया
पचा तो नहीं !

* पुरस्कार हैं
लेकिन मैं तो उन्हें
लूँगा ही नहीं |

* तलाक़ न लो
पति / पत्नी न छोडो
विच्छेद नहीं
भले कहीं भी रहो
आओ जाओ, निभाओ |

* अभिमानियो !
[ अहंकारियो ! ]
तुम्हारा हो जायगा
शीघ्र पतन |
[ अधोपतन ]


* * अगर , मान लीजिये, चीन के तर्ज़ पर भारत का कोई माओ यहाँ सांस्कृतिक क्रान्ति कर दे और ज़बरदस्ती ज़रूरी कर दे कि यहाँ का हर नागरिक अपना नाम भारतीय भाषा में रखेगा, तो क्या हो ?
यह मैं उस सन्दर्भ में कह रहा हूँ जब अभी कुछ दिन पूर्व मुस्लिम लेखकों ने बड़ी हनक के साथ कहा था और फेसबुक पर भी पोस्ट किया था कि " मुस्लिम नाम वाला " कोई व्यक्ति वन्दे मातरम् गाना स्वीकार नहीं कर सकता | सही है कि गाना और गीत गाने से राष्ट्र भक्ति में कोई इजाफा नहीं हो जाता, फिर भी हर देश का कोई प्रतीक तो होता है, जो उसकी एकता का परिचायक होता है | यह तो अच्छा है कि कल को कोई कह दे तिरंगा हमें अच्छा नहीं लगता | हम इसे सलूट नहीं करेंगे | तो कल कोई कुछ ! फिर भी यह समुदाय कहता है कि उसे हिन्दुस्तान में टेढ़ी नज़र से देखा जाता है |     [ by khilwaad ]

शुक्रवार, 7 जून 2013

नागरिक वांग्मय 6 and 7 June 2013

 * तआज्जुब है | ईश्वर के रहते कोई ईश्वर के विरोध में सोच भी कैसे सकता है ?

[ कविता ]     =   पार्क में बेंच
* कितने आँसू रोये इसने
कितने फूल खिलाये
कितने गुल भी खिलाये ,
कितने वादे सुने सुनाये
कितने वादे मुकरे इसने
कितने और निभाए ?
कोई क्या जाने ?
अब तो यह बेंच भी भूल गया
कितने जोड़े आये
कितने अकेले गए ?
कितने अकेले आये
जोड़े बनकर गए ?
इसे कुछ नहीं याद |
जड़ काठ हो गया है
पहले हरा भरा पेंड जो था |
सूख गया ,
कितनों को सुख देकर |
#  #   #

[ कविता ]   कलकत्ता में बारिश
* अरे , बारिश हो रही है,
देखो छज्जे पर
मैंने तुम्हारे लिए
अपनी आँखें
बिछा रखी थीं,
कहीं भीग तो नहीं गईं ?
#   #   #  

* तुम तो यार
ऐसा शोर किये हो [ ऐसन चिल्लात हो  ]
जैसे बुढ़वे |
अब चुप भी करो
उग्गर नागरिक !

* देश की चिंता
एक बोतल दो न ,
हम भी करें |

* धूप न बत्तास
काम पर निकलो
सब खल्लास |

* मार्कंडेय जी काटजू का माथा चौड़ा और भाल उन्नत है | वह अवश्य ही बुद्धिमान होंगे |

भाई , मैं ठहरा अन्धविश्वासी और दकियानूस भारतीय | काटजू जी के 90 % [?] वाला | मैं तो ऐसे ही अनुमान लगाऊँगा न ? लेकिन मुझे कम से इतना तो ज्ञान है ? उन्हें तो यह भी नहीं पता होगा कि जिनके गालों पर गड्ढे पड़ते हैं , या काला तिल होता है, उसका क्या अर्थ होता है ? मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि वह स्वयं और उनकी 90 % भारतीय जनता ठीक से अज्ञानी, ढंग से अन्धविश्वासी भी नहीं है | बता कर दिखाएँ फेस बुक वाले कि किन दिनों दाढ़ी - बाल नहीं बनवाना चाहिए ? सोमवार को किस दिशा में जाना वर्जित है ? तब हम जानें !    
* प्रीति जिंटा के भी गालों पर गड्ढे पड़ते हैं |

* बड़े ही बुरे विचार आते हैं मेरे पास | जैसे मैं सोच रहा था कि दमादम मस्त कलंदर, छाप तिलक सब [खुसरो], या " घंट मंट दुई कौड़ी पायेन ", या नहीं तो वही "आरा हीले छपरा हीले बलिया हीलेला" वाले गीत क्या हम पूर्ण ' विचार धारा युक्त ' प्रगतिशील कविलिख सकते हैं ?    

* [ ग़ज़ल सही करो और पूरी करो ]
चोट तुमको लग रही हो जिस किसी भी चीज़ से ,
फूल भी हो उससे मैं तुमको न मारूँ
[फूल से भी ऐसे मैं तुमको न मारूँ /
फूल भी हो तो भी मैं तुमको न मारूँ ]

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Vs Yadav
आपने हमे जो किताबें दी थीं हमने पूरी पढी ,, सुनो भारत किताब दो तीन बार पढी
आप बहुत अच्छा लिखते हैं ..
Vs Yadav
आपकी किताबो से कुछ पोस्ट लिखना चाहते हैं ,,
क्या हम लिख सकते हैं ....??
Ugra Nath
अरे क्यों नहीं ? पूरी छूट है | आपने देखा नहीं, उन पर तो मेरा कापी राइट भी नहीं है |
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* मैं समझ नहीं पा रहा, जब यह बिंदु लिखने के लिए रखा था तब क्या सोचा था | बिंदु यह है की " कहानी तो कहानीकार ही लिखेगा " | ऐसा साहित्य जगत में होता है | जो प्रतिष्ठित कथाकार है वह कुछ भी लिख दे छप जायगा, वह कहानी हो जायगी | नया लेखक कितना भी नया और उत्कृष्ट लिख ले, उसकी चप्पल घिस जायगी उसे छपाने में, नाकों चने चबाने पड़ेंगे कथाकार के रूप में पहचान बनाने में | लेकिन यही तो उसे भी झेलना पड़ा होगा जो आज प्रतिष्ठित है साहित्य के क्षेत्र में ?
[मैं शायद ब्राह्मण के बारे में सोच रहा था ]    

* [ कविता ?]
कितना समय लगा
बचपन से बुढ़ापे तक
यह सीखने में,
कि दाल भात का कौर
थाली के बीच से
कैसे उठाकर
मुँह में डाला जाए
और कोई
जूठन न गिरे ?

* बहुत पहले कभी एक कविता लिखी थी -
" मेरे होंठों पर उगे तो हैं
कैक्टस के फूल !
कौन कहता है मुझे
फूलों से प्यार नहीं ? "
कँटीली ज़िन्दगी ने नागफनी को प्रिय फूल बनाया | फिर जैसा google पर मिल गया , लगा दिया |
आपका आभार की आपने इतना ध्यान दिया |  [ Sunita Rai]

* चलिए माना , दलित अपने हित की लडाई लड़ रहे हैं | वे जीत भी जायेंगे | लेकिन फिर - - - -  ? क्या वे फिर दूसरों की भी लड़ाई भी लड़ेंगे ?

* [ कहानी ]
पत्नी लम्बी और विविध यात्रा से आई तो पति ने पूछा - ? ? ? ? - - ?
पत्नी ने कहा - बता तो दें , लेकिन तुम फिर पूछोगे कितने पानी बताशे खाए , कितने छोले भठूरे , कितनी आलू की टिकिया खाई , कितने आइसक्रीम चाट गयी , कितने बोतल लिम्का गटक गयी ? मैं कहाँ कहाँ तक बताती फिरूँगी ?  

* लगता है अब चश्मा लगाकर स्नान करने जाना पड़ेगा | आधुनिक बाथ रूम में इतने किस्म की शीशियाँ, इतने प्रकार के ट्यूब्स होते हैं कि भेद नहीं कर मिलता शैम्पू, शेव क्रीम, आफ्टर शेव, शावर जेल, टूथ पेस्ट आदि में | कहीं का चीज़ कहीं लग गया तो - - ?

* कोलकाता से तीन ख़बरें -
1 - यहाँ सड़े गले नोट नहीं चलते | कंडक्टर को सौ का नोट पकडाओ | पहले तो वह ना नुकर नहीं करेगा, [लखनऊ में उञ्चास रु का सामान लेकर पचास का नोट दो तो दुकानदार कहेगा - टूटे दीजिये] | दूसरे वह बाकी के कडकडे नोट वापस करेगा, बिना किसी लालच के | मुझे तो एक भी अच्छा नोट किसी को देते या खर्च करते खलता है |
2 - यहाँ रेजगारी कि कोई कमी नहीं है | ग्यारह रु का टिकट लेने के लिए बीस का नोट दीजिये | कोई हर्ज़ नहीं | आप को नौ रु टनाटन वापस होंगे |    
3 - यहाँ अठन्नी भी चलती है | यू पी से यह कब की गायब हो चुकी है | समृद्ध प्रदेश है न हमारा - एक रु भी अपना मूल्य खो चुका है | एकदा मुझे एक रु वापस नहीं मिले नौ रु के दो अंडे लेने और दस का नोट देने पर | ऐसा नहीं कि माँगा नहीं था | दुकानदार ने कहा - यह VIP दूकान है , एक रु कोई नहीं वापस लेता | लेकिन कोलकाता में Telegraph अखबार साढ़े तीन की था | वेंडर ने बाकायदा अठन्नी वापस की |  6/6/2013    
[ Sandeep] हाँ कुछ फर्क तो है | लखनऊ में नहीं पर यहाँ तो Public Transport से ही चलता हूँ | वह आपा धापी नहीं है | कंडक्टर नहीं पहुँच पाया तो लोग उतरते समय किराया चुकता कर देते हैं | इसके लिए कोई मारपीट तो नहीं ही, जो लखनऊ में आम है | लोग अपंगों, बुजुर्गों, महिलाओं की सीट छोड़ देते हैं | यहाँ थ्री व्हीलर के लिए भी सुसंस्कृत लाइन लगती है | Co - operative nature के लोग लगे |    

* मैं किसी को फ्रेंड रिक्वेस्ट नहीं भेजता, लेकिन यदि कोई मेरे पास भेजता है, यहाँ तक की झूठे परिचय वाली बूढ़ी लडकियां भी, तो मैं किंचित भी देर नहीं लगाता | ऐसे में उनकी यह जिद गलत ही तो है कि वह मुझे एक क्लिक नहीं भजेंगे ?

* अपनी गिरी से गिरी [ आर्थिक ] दशा की कल्पना करनी चाहिए | और उसे भूलना नहीं चाहिए |

*  किसी सम्बन्धी के घर जाएँ तो और कुछ ले जाएँ, न ले जाएँ अपना टूथ ब्रश अवश्य ले जाएँ | वरना आप सुबह सुबह दातून मांगेंगे और मेज़बान परेशानी में पड़ जायगा |

* इस ज़माने में अपनी बात का सच्चा होना ,
क्या ज़रूरी है इसमें आप का अच्छा होना ?

* उमस और गर्मी बहुत है | फिर भी मन को एक ठंडाई मिली कि मैंने एक बात अपने विरुद्ध सोची | मैं धर्म और ईश्वर का निपट विरोधी हूँ | लेकिन अभी ख्याल आया कि जब शारीरिक व्याधि के लिए = [ यूनानी, आयुर्वेदिक, अंग्रेजी, प्राकृतिक, होम्योपैथी, एक्यूप्रेशर, एक्युपंक्चर इत्यादि न जाने कितनी ] इतने प्रकार की विधियाँ हैं , तो मनुष्य के मानसिक [ आध्यात्मिक ?] इलाज के लिए तमाम ईश्वर, अनेक धर्म क्यों नहीं हो सकते ?        

* RTI पर ठीक से सोचा नहीं जा रहा है | चूँकि यह दलों के खिलाफ है इसलिए सब इसके समर्थन में हैं | लेकिन कौन क्या नहीं जानता ? कोई क्या जानना चाहेगा ? कौन, क्यों जानना चाहेगा ? & सो ऑन
Sandeep Verma
शायद सिर्फ ऐसा नहीं है ,मगर दलों की नीतिया एवं उनका कार्यान्वयन में किस तरह से पैसे लगाने वालों का हाथ है ,पता चलेगा . मोदी को कौन लोग सामने लाना चाहते है ,क्यों मोदी का नाम उछाला जा रहा है ,पता चल सकेगा . कैसे अचानक एक पूंजीपति टिकट लेकर चुनाव लड़ने आ जाता है यह सब कम होगा .
Political rivals will take recourse to it with undue effect on the polity . With no positive results . I think so . And it has been visible in experiences yet .

* सवेरे से ही
आने लग जाते हैं
वे पंक्तिबद्ध |

* शरीर ही है
कब धोखा दे जाय
किसे क्या पता ?

* नहीं करता
जापान की नक़ल
मैं हाइकु में |

* हिन्दू हैं तो क्या
किसी के गुलाम हैं ?
किसी के नहीं |

* हिन्दू तो साला
छलनी हो गया है
सूपों के आगे |

* लीडर होगा
आज नहीं तो कल
हमारा गाँव |

* गलत बात
सारे जहाँ से अच्छा
देश हमारा |

* झूठ की ताक़त ?
महानतम झूठ
ईश्वर देखो |

* कुछ नहीं तो
डिसक्लोज़  तो किया
मैंने खुद को ?

* नरक क्यों हो
किसी की भी ज़िन्दगी
औरत - मर्द ?

* कुछ नहीं है
चाहत भरी दृष्टि
के अतिरिक्त |

* तुम्हे जो देखा
क्या क्या तो कौंध आया
आँखों के आगे !

* कुछ भी करूँ
मुझसे नहीं होता
मैं फेलम्फेल |

* मेरे मन में
निश्चय ही रहता
एक राक्षस
कुछ करे न करे
चाहे सोया ही रहे |

* दिन हो रात
खगालता रहता
दिल दिमाग |

* क्या सन्दर्भ है
जो बोले जा रहे हो
उटपटांग ?
[ धाराप्रवाह ? ]

* इस स्थिति को
स्थितिप्रज्ञ कहते
जिसमें मैं हूँ |

* आवास हेतु
कितनी ज़हमत
घर बनाना ?

* होता ही होगा
ऐसा भी होता होगा
तभी तो हुआ ?

* इतना हुआ -
संबंध बना रहा
यह समझो !

* मैं तो ठहरा
अदना सा लेखक
बड़ा क्या लिखूँ ?

* करते गए
जैसा देखते गए
टी वी शो पर |

* कुछ बात है
लेकिन फिर भी तो
जो मैं जिंदा हूँ !

* रूचि नहीं है
हाइकु लेखन में
लिख भले दूँ !

* कूड़ा कबाड़
भरा है दिमाग में
वही लिखता |

* हर्ज़ ही क्या है
सपने देखने में
सबने देखे |

* कहाँ कहाँ से
ये तिनके जुटाए
घर बनाया
तब बनी कविता
तभी कोई हाइकु !

* देवता होंगे
दुनिया की सोचते
मैं तो अपनी |
गाँव की गिराँव की
खेत खलिहान की
परिवार की
नौकरी व्यापार की
यू पी सरकार की
कुछ ऊपर
भारत सरकार की  
दिल्ली दरबार की
कभी कभी तो  
हिन्दू हिन्दुस्तान की
ईश्वर महान की |

* सोचता ही हूँ
मर्द हूँ तो मर्द की
वृद्धपन की |

* "नागरिक" कहो, "नागरिक" कहाओ |  
रोटेरियन की तरह, कामरेड की तरह,
आप जो भी हो
" नागरिक " तो अवश्य ही हो |
सबको हमारा संबोधन " नागरिक " है |
यह हमारा अत्यल्प मिशन है |


* आखिर मैं
करता ही क्या ?
उन्होंने मुझे
बताया थोड़े था ,
बस एकाएक
सामने आ गए |

मंगलवार, 4 जून 2013

Nagrik Posts 5 June 2013

* [ तेरे कपड़ों पर दाग ]
इस विचार का फलक इतना बड़ा और व्यापक है कि समझ नहीं आता कहा से शुरू करूँ | थकान के कारण लिखना स्थगित कर सकता था लेकिन यह विषय ज़रूरी भी है | तो, थोडा मनोरंजक प्रारंभ देते हैं | आप भुक्त भोगी न हों तो अखबारों में पढ़ा होगा - बैंक से पैसा निकाल कर झोला साईकिल में तांगा या M / Cycle की डिक्की में रखा | एक लड़का आपसे कहता है - अंकल जी आपके पेंट पर गोबर लगा है | आप देखने के लिए नीचे झुके - लड़का झोला लेकर चम्पत हो गया | कार में ब्रीफकेस रखा - लड़का बताएगा - इंजन से मोबिल आयल गिर रहा है | ज़रूर आप मुवय्ना करेंगे - लड़का आपका सामान लेकर जा चुका होगा | ऐसा ही कुछ कुछ मुझे देश के सामाजिक सांकृतिक जीवन में घटित होना प्रतीत हो रहा है | मित्र गण विरोधी कमेन्ट करेंगें, और वैसे भी कुछ कविता के क्षेत्र में हूँ तो अतिशयोक्ति हो सकती है | लेकिन इसमें सच्चाई ज़रूर है | यदि वह "सावन के अंधे" वाला मुहावरा सही है तो यह मुहावरा भी सही होना चाहिए कि - अमावस को अंधे को सारा अन्धकार ही दिखाई देता है | भारत के [ कुछ ज्यादा] शिक्षित वर्ग को भारत के हर रीति रिवाज़ परंपरा इतिहास संस्कृति में दोष ही दोष नज़र आता है - जैसा तमाम लेखों से विदित होता है | तुमने होलिका जला ली, राम ने सीता को निकाल दिया , शम्बूक वध कर दिया , द्रोपदी को नंगा कर दिया, नचनियां कृष्ण तो भ्रष्ट था, द्रोण ने एकलव्य का अंगूठा काट लिया ? कितना नीच है रामायण महाभारत गुरु और तुम्हारे भगवान् | तुम लोग तो गाय भी खाते थे कमीनो ! अब चले हो हिन्दू संस्कृति की बात करने ? छी छी ! दलितों के साथ यह व्यवहार  ? कान में पिघला सीसा और जिह्वा की कटिंग ? तुम सारे हिन्दू तो ढंग से पैदा ही नहीं हुए | कोई मुंह से  बहार आया तो कोई पैर से पैदा हुआ -  हा हा हा हा ! नालायक तू गुलाम बनने के हिलायक हो |
     तो लीजिये अब तो हिन्दुस्तान कहीं का नहीं रहा | यहाँ एक मनोविज्ञान की बात उठा रहा हूँ, भले मेरा विषय नहीं | जो जानते हों वे इसे करेक्ट कर लें | यदि किसी बच्चे को लगातार कहा कीजिये - तुम नालायक हो आलसी , दुष्ट बदमाश और कमीने | तो वह कुछ दिन में वैसा ही हो जायगा | इसी तर्क पर मैंने हमेश विरोध किया की मुसलामानों पर शक ण करो उन्हें देशद्रोही वगैरह मत कहो, इससे उनका दूषण होगा | उलट यदि कहें - शाबाश मेरे बेटे, बहुत अच्छा बच्चा है, आगे और अच्छे नम्बर लाएगा - शाबाश ! तो यकीन मानिये वह लायक ही बनेगा, कुछ कमी भी होगी तो वह सुधार लेगा आपके प्रोत्साहन से |
    हिन्दुतान में गड़बड़ी नहीं है यह कौन कहेगा ? लेकिन यह भी दुश्मनों की चाल होती है कि आप के हर अंग में वह नुक्स निकालता फिरे | जैसे वही उपरोक्त उदहारण - अंकल जी, आप के पैर तो गोबर से सने हैं | किसी को कमजोर करने का यह भी, और बहुत बड़ा कारगर तरीका होता है | अरे तुम लोग माता पिता के पैर छूते हो ? धिक्कार है ! तभी तो तुम लोग वैज्ञानिक तरक्की नहीं कर पाए | देखो हम लोग सीधे मुँह चूमते हैं, तब दुनिया पर राज करते हैं !
इनके यहाँ कितनी भी हाईआर्की हो , क्लर्क से लेकर कलक्टर तक, सब अनुशासन बद्ध | वह इनकी प्रशासनिक व्यवस्था का कौशल है | लेकिन भारत की ऐसी कोई पुरानी अभी भी हमें गरियाने के लिए और नीचा दिखाने के लिया पर्याप्त है |                        
     हम अपने दोष पर पर्दा नहीं डाल रहे, बल्कि व्यक्तिगत मैं स्वयं प्रखर आलोचक हूँ | लेकिन आलोचना के उत्साह में यह भी नहीं नज़रअंदाज़ कर सकते, यह Rational नहीं लगता सोच के दायरे से बाहर करना, कि इससे हमारा कितना भला हो रहा है कितना नुक्सान ? किसका हित सध रहा है ?यह भी तो देखें ! इससे किसी की साजिश सफल तो नहीं हो रही है ? वह हमारे ऊपर धौंस दिखा कर हमें कमज़ोर तो नहीं कर रहा है , केवल हमारी कमियाँ दिखा कर ? खूब चटक रंग से भद्दे ढंग से पेंट कर उसे दुनिया को दिखाने में भला उसका कोई स्वार्थ सिद्ध तो नहीं हो रहा है ?  #  #
[ अब और नहीं, अब थक गया ]

* सिर्फ बड़े घरों, खुले माहौल की लडकियाँ ही प्रेम विवाह नहीं करतीं | छोटे घरों की लडकियाँ भी अपने लिए " प्रेम का प्रबंध " कर लेती हैं | देखती हैं बाप की आमदनी कम है, नशेडी है, कई भाई बहन हैं | तो विवाह कैसे होगा ? सो वह भी कुछ प्रेम का जुगाड़ बैठा लेती हैं और भाग जाती हैं | माँ रो लेती है, बाप इज्ज़त बचाने के लिए उसे मार डालने की चीख मचाता है, कुछ दिन बहिष्कार रहता है | फिर सब ठीक हो जाता है  | जा लडकियाँ इस शुभ कार्य में पिछड़ जाती हैं उन्हें अपने भाग्य पर रोना पड़ता है | बाप किसी बूढ़े / दुहेजू से ब्याह देता है, जीवन भर कलपने को हो जाता है | फिर भी लोग कहते हैं समाज में बड़ी बुराई आ गयी है | जब की बुराई तो है दस लाख रूपये खर्च करके धूम धड़ाके से ब्याह करने में | वे लडकियाँ भी मायके लौट आती हैं | सब ठीक ठाक ही नहीं होता |

*फिर तो इस पर काम शुरू कर दिया जाना चाहिए | उन्हें प्रिय संपादक में धीरे धीरे डाला कीजिये | अभी ज्यादा नहीं तो इतना अपना भी पुराना ख्याल बता सकता हूँ कि जिन्हें राजनीतिक सेवा में रूचि हो उनके प्रशिक्षण की व्यवस्था भी होनी चाहिए क्योंकि राजनय और राजनीति गंभीर और ज़िम्मेदारी का काम हैं | वोट बटोरने जैसा हंसी खेल नहीं होता वास्तविक शासन कला | उन्हें राज्य प्रमुख की गुरुता में संस्कारित होना चाहिए | उन्हें तमाम किस्म के राजनीतिक सिद्धांत, उनकी समीक्षा, विश्व राजनीति का इतिहास, वर्तमान परिप्रेक्ष्य, भारतीय सामाजिक परिदशा का अध्ययन करना चाहिए | कह सकते हैं यह सब Pol Sc में पढ़ाया जाता है | पर इसे advanced  and Practical oriented होना चाहिए | एक संस्था सोची थी - TIDE [ Training in democratic ethics ]. तब यह हर किसी नागरिक के लिए था | और हाँ , एक मजेदार बात \ योजना बता दूँ - मैं अपने गाँव में एतदर्थ मैं एक हास्टल का स्वप्नदर्शी हूँ जहाँ प्रशिक्षु गांधी जी की सलाह के अनुसार ग्राम्य जीवन को करीब से जान समझ सकें | कवि- लेखक - कलाकार - चित्रकार - शोधकर्ता - छात्र भी इस में भाग ले सकते | बहरहाल आप अपनी लिखिए | [ niranjan sharma ]

* चिन्तक वह जो अपने खिलाफ भी सोचने का माद्दा रखे |
 वही बड़ा विचारक होगा, जो सबकी ही नहीं अपनी भी बातों की काट छाँट, शल्य क्रिया कर सकेगा |

Shraddhanshu Shekhar
Sartre ne apne hi astitvawadi darshan ko khandit kar communist darshan ko apnaya, ..
Witgenstine ne apni Jagat vichardhara ko baad me khud aswikar kr diya..
Moor ne b apne common sense theory ko baad me khndit kar diya ..

* थोड़ी सी दूरी तो - -  " Least distance of Distinct vision "
कहते हैं किसी वस्तु को देखने के लिए उसे आँख से निश्चित दूरी पर रखना ही होता है | तभी उसे स्पष्ट देखा जा सकता है | विज्ञानं में उस दूरी को " Least distance of Distinct vision " कहा जाता है | उससे ज्यादा यदि वस्तु (Object ) को आँखों के करीब लायेंगे तो वह साफ़ नहीं बल्कि धुँधला दिखाई देगा | क्या इस सिद्धांत / उसूल को दलित प्रश्न पर लागू नहीं किया जा सकता ? इस समस्या को जानने के लिए इससे थोडा दूर खड़ा होना ज़रूरी है | यही कारण है कि जो इसके वस्तुतः भुक्तभोगी हैं उन्हें इससे कोई ख़ास परेशानी नहीं है | यही कारण है कि जो दलित जन इससे उबर कर दूर खड़े हैं, अफसर लेखक, अर्थात समृद्ध वर्ग में आ गए हैं उन्हें इसकी पीड़ा अधिक दिखाई देती है | वे इस पर ज्यादा लिखते पढ़ते आंदोलित होते, राजनीति करते हैं |
अतः यहाँ, स्वानुभूत वाला मुद्दा भी स्खलित हो जाता है | वे संवेदनशील कवि - लेखक दलित पीड़ा को बखूबी, बल्कि अधिक शिद्दत से महसूस कर सकते हैं, जो स्वयं इसके भुक्तभोगी नहीं , बल्कि थोड़ी दूरी पर खड़े स्पष्ट दृष्टि से अनुभव कर रहे हैं |      


* जब कोई काम न आये
तब मैं आता हूँ
तुम्हारे पास ,
कोई दवा नहीं
कोई इलाज नहीं
तुम्हारे दुःख का मेरे पास
बस मैं आता हूँ
हमदर्द बनकर
चुपचाप खड़ा हो जाता हूँ
सहानुभूति होकर |
जब कोई काम नहीं आता तुम्हारे |
#  #

[ गीतांश ]
                     अब घृणा का पात्र बनना चाहता हूँ |
बहुत झेलीं प्रेम की कसमें तुम्हारी
सह चुके सब प्यार के वादे वृहत्तर ,
- - - - -  -
और अब मैं छंद पूरा क्यों करूँ ?
अब नहीं मै सार्त्र बनना चाहता हूँ |
                    मैं घृणा का पात्र बनना चाहता हूँ |

* [ चुनौती ]
प्यार करो तो
कुछ निकट आओ
दूर न रहो !  

* [ टाँका - हाइकु ]
चुनौती यह
प्यार करते हो तो
पास भी आओ
तब तो हम जानें
वरना खाली मूली ?

* सब इंसान
इंसान की औलाद
फिर भी फर्क |

* तुम भी हमें जानो
हम भी तुम्हें जानें
मगर तुम न हमको
मगर हम न तुमको
न देखें, दिखाएँ
न जानें पहचानें |

* कभी वर्तनी बिगड़ गयी ,
तो उच्चारण में दोष कभी |
कहाँ कह सका मन की बातें
तुमसे अपनी सही सही ?

* [ कविता ]
एक चिड़िया है
जिसे पकड़ा न जा सका कभी
पकड़ा न जा सकेगा कभी
नाम है - " आदर्श " उसका |
#   #

* [ मेरा संगठन ]
" पाखंडी जीवन " = " पाजी "
= Low , mean , wicked person

* देश की जो दशा है, उसे देखते मैं तो कहूँगा अच्छा किया कम्युनिस्टों, आर एस एस, और आंबेडकर ने जो आजादी की लडाई से अलग रहे | सचमुच, यह तो कोई आज़ादी नहीं, और किसी काम की नहीं |
-----------------

1 - शहीद हुआ
मैं, तो मिली आज़ादी
मज़े नेता के ?

2 - शब्दों के साथ
खेलना अच्छा लगा
हाइकु बना |

3 - मेरी जुबान
सभी बोलने लगे
यह क्या हुआ ?

4 - हँसूगा नहीं
तो जियूँगा मैं कैसे
कोई बताये ?

5 - हाइकुकार
मुझे न कहियेगा
वे खफा होंगे
जो हाइकुकार हैं
और हैं प्रतिष्ठित |

* मुझे नचाओ
नाचना जानता हूँ
मैं सर्वदा ( सदियों ) से |

* मैं क्या, कौन हूँ
कब क्या हूँगा भला
सोचता नहीं |

* हम भी जानें
करीब तो न आओ ,
प्यार भी  करो !

* हम भी जानें
प्यार तो करो और
दूर भी रहो !

Least distance of distinct vision
थोड़ी सी दूरी तो - -

* चलो हटो जी
तुम भी बड़े वो हो
क्या करते हो !

* खंडन नहीं
अब किसी बात का
मंडन नहीं |

*  मैंने अपनी
जीवन यात्रा लिखी
हाइकु नहीं |

* मन में आता
अब मिली कि तब
वह महिला
मनोविकार आता
स्वीकार करता हूँ |

* कैसे करता
कविता न होती तो,
इतनी बातें
अपने ह्रदय की ,
ढकी छिपी खोलता !

सोमवार, 3 जून 2013

Nagrik Posts 31 May 2013

* सरलीकरण से काम नहीं चलेगा | नाम लेकर इंगित करना पड़ेगा कि कौन धर्म
कैसा है ? आप हिन्दुत्व को निम्न कोटिक बताएँ, आप ऐसा कर सकते हैं | आपको
पूरा अधिकार है | लेकिन यह मेरा अधिकार होगा यदि मैं इस्लाम को अधिक जड़
और दकियानूस बताऊँ | या इस मायने में कोई खालसा पंथ का नाम ले तो उसे
इसका हक है | लेकिन बोलना पड़ेगा नाम लेकर | सरे धर्म एक जैसे हैं कहने से
समस्या पर लीपा पोती हो जायगी |

" जय बुद्ध - जय बुद्धि "
कल शाम मैं कलकत्ता [ मैं इसे ऐसा ही कहूँगा, नाम बदलू प्रवृत्तियों के
विरुद्ध ] पहुँच गया | नाती अब चलने लगा है | उसकी कुछ बदमाशियों का आनंद
लिया फिर बहू के हाथ का स्वादिष्ट (निश्चय ही वेज ) खाकर सफ़र की थकान के
कारण रात भर बेहोश सोया | सवेरे सवेरे ही एक विचार यह आया कि जो अपना
विरोधी हो, या विरोधी होने की संभावना में हो उसे खूब शिक्षित करो | तो
उसका दिमाग खुलेगा और समझदार होकर तुम्हारा सबसे बड़ा हितैषी बनेगा |
अशिक्षित, नादान होकर तो वह तुम्हारे विरोध में नुक्सान ही अधिक करेगा |
मुझे आंबेडकर जी का ख्याल आया | उन्हें किसी रियासत के प्रमुख ने विदेश
पढ़ने भेजने की और शायद अन्य प्रकार से मदद एवं व्यवस्था की थी | और
देखिये वह हिन्दू धर्म बल्कि भारतीय सांस्कृतिक आन्दोलन के कितने बड़े
हितैषी बने | उतने कि, व्यक्तिपूजक आस्थावान यदि बुरा न मानें { तुलना
करना मेरा उद्देश्य भी नहीं है } तो दयानंद - विवेकानंद जी से भी अधिक
उन्होंने हिन्दू धर्म पर उपकार किया | आज जो दलित चेतना में आप हिन्दू
विरोधी गुंजायमान देख रहे हैं वह सब कहने भर की उपरौछी बातें हैं |
वास्तव में इससे हिंदुत्व मजबूत हो रहा है अपने अन्दर जमा काई, खरपतवार
को साफकर, जलाकर | गौर फरमाने की बात है कि किसी आचार्य, शायद शंकराचार्य
[मैं यह सब याद नहीं रखता] ने भारत के चार कोनों में चार पीठ स्थापित कर,
जहाँ चार मठ हैं और शंकराचार्य गण विराजमान हैं, हिन्दू धर्म को
दकियानूसी और अंधविश्वास के गर्त में धकेला जो कि हिन्दू धर्म के हितैषी
थे और इसकी कथित संरक्षा के लिए उन्होंने यह सब किया, नतीजा = हिन्दू
धर्म स्थायी रूप से पंगु हो गया | बल्कि जड़ता ने अपने स्थापत्य और
मठाधीशी के ज़रिये भारत को चारो और से घेर कर गहराई तक जगह बना लिया जिसे
मिटाना हम rationalist आन्दोलनो के लिए असंभव नहीं तो अत्यंत दुष्कर होगा
| जब कि आंबेडकर ने इन सब पाखंडों का विरोध कर हमारा साथ दिया और बुद्धि
विवेक की नीव जिसे चार्वाक, बुद्ध, कबीर रैदास सरीखे संतों [मैं तो इसमें
गाँधी को भी शामिल कर सकता हूँ] मजबूत किया, हमारे काम को त्वरित गति से
आगे बढ़ाया | बिल्कुल तुलनात्मक चिंतन करके देखिये तो पता चलेगा कि शंकर
ने चार मठ बनाकर हिन्दू धर्म को महान और समुचित और ग्राह्य बनाया या
आंबेडकर ने Riddles of Ramayana लिखकर ? लेकिन यह सब गहराई से सोचने और
अध्ययन करने के लिए भी तो विकसित, स्वतंत्र बुद्धि चाहिए जिसे तो इसके
पंडितों और महंथों ने कुंद कर रखा है | जिसके चलते हमें दीखता है कि
आंबेडकर हिन्दू विरोधी थे और दलित आन्दोलन हिन्दू धर्म विनाशक | जब कि
वास्तविक स्थिति इसके पलट है | विरोधी प्रतीतिमान दलित आन्दोलन की ऊपरी
पर्त पर मत जाईये, न विचलित होईये, न घबराईये |
मुझे ख़ुशी है कि इस विचार के द्वारा आज मेरा प्रातः सफल हुआ | जो विरोधी
दिखे उसे एकाएक विरोधी न मान लो, वह तुम्हारा असीम हितैषी, परम मित्र हो
सकता है | हम भजन कीर्तन के शोर में भूल जाते हैं पर गुरुओं ने तो बहुत
पहले कह रखा है :- - निंदक नियरे राखिये - -  | अस्तु , जय विवेक , जय
बुद्धि , जय गौतम , जय बुद्ध ! =  " जय बुद्ध - जय बुद्धि " |

* ईश्वर पर विश्वास मत करो तो भी वह रहेगा | उसके साथ सख्ती से पेश आओ तो
वह ठीक ढंग से काम करेगा | ढीला छोड़ोगे तो उत्पात मचाएगा |

* जब कोई कहता है -
चाँद को देखो,
मैं तुम्हें देखता हूँ |

* [कविता ? ]   [ Bada Mangal ]
* जब हनुमान मंदिर आये ही हैं
तो थोडा आगे चलकर, चौराहा पार
साईं बाबा के भी दर्शन कर लें ,
और उससे पहले ही बाईं गली में
एक छोटा सा बहुत पुराना
शिवालय है , वहाँ चलें |
गोमती किनारे शनि मंदिर
और डालीगंज मनकामेश्वर
तो चलना ही है |
और सुनती हो !
प्रभु की कृपा से
मोटर गाडी तो है ही
``````````````````````````````````````````````````````````````````````````````
चन्द्रिका देवी और
सत्ती माई का चौरा भी
हो लेते हैं |
सरकार ने छुट्टी तो कर ही दी है
ऐसा मौका बार बार
कहाँ मिलता है ?


* दिन ब दिन
बिगड़ेगी हालत
सुधर कर |

* हाल एक [same ] है
इधर का भी और
उधर का भी |

* माननी होगी
नैतिक बराबरी
फर्क कुछ भी |

* किसी से नहीं
किसी से न कहना
जो बात हुयी |
[ हाइकू आसान न होता तो क्या मैं इतना लिख पाता ?]

* धोखे से श्री राम ने दिया बालि को मार ,
अगर पुलिस होते वहाँ, कर लेते गिरफ्तार |
[ जैसा मेरे भतीजे ने मुझे गाँव में सुनाया ]

* तिथि और तारीख [ दिनांक ] में भला क्या अंतर है ? क्या नयी पीढ़ी जानती है ?
[ तिथि चन्द्रमा की दशा है - शुक्ल पक्ष का दूज - - - पूर्णमासी / कृष्ण
पक्ष का - - चतुर्थी - - अमावस्या | दिनांक / तारिख तो यही है - आज २९ मई
२०१३ | जानती आप सब हैं , मुझे छका रही हैं | मैं जल्दी में हूँ कोलकाता
जा रहा हूँ | अपना ख्याल रखना | Nidhi Parveen ]

* बधाई हो ! जलाने जलाने से ही मनुस्मृति जिंदा रहेगी | जैसे होलिका दहन
से होली का त्यौहार |

Nagrik Posts 3 June 2013

Prathak Batohi
गांधीवाद और मार्क्सवाद के समर्थको की बाते
गांधीजी और मार्क्स दोनों शिखर पुरुष रहे है, गांधीजी ने जमीनी लड़ाई लड़ी तो मार्क्स ने वैचारिक। गांधीजी के अनुयायी आज भी जमीनी लड़ाई लड़ते है तो मार्क्स के अनुयायी वैचारिक स्तर पर सक्रिय है। गांधी जी ने अंग्रेजो के खिलाफ लड़ाई लड़ी तो उन्होंने अंग्रेजी हुकुमत की सरकारी नौकरी और सरकार के सहयोग को छोड़ने के लिए असहयोग आन्दोलन छेड़ा जिसको उनके अनुयायियों ने सफल कर दिया।
मार्क्स से अनुयायी सरकार को कोसते है उसे पूंजीवादी बताते है पर मजाल है की वे सरकारी अनुदान, शोध या सरकारी नौकरी छोड़ दें। यही गांधीवादियों की ताकत है गांधी का सत्य उन्हें जोड़ता है आंतरिक बल देता है। #
* आप ने मेरे मुँह की बात छीन ली | जानता, सोचता तो मैं भी ऐसा हूँ पर बहस - विवाद की ताकत के अभाव में ऐसे प्रसंग नहीं छेड़ता | मैं इनके समर्थन में कोई किताबी विश्लेष्ण या उद्धरण भी नहीं दे सकता | पर अनुभव से इसे सत्य मानता हूँ | लेकिन थोडा अनुभव अब पलट रहा है | वामपंथी वैचारिक ही सही, थोड़ी ईमानदारी में हैं, गांधीवादी छद्म हो रहे हैं | कुछ कुछ - -
मैं गांधीवादियों से तब से नाराज़ हूँ | इन्होने बाबरी मस्जिद बचने में कोई प्रभावी काम नही किया | लाठी डंडा खायी न धरना दिया | ये हिन्दू बने रहे | दुसरे इनका जोर अधिकतर शुद्धतावादी कामों - शराब बंदी वगैरह पर ज्यादा है | ये आम आदमी कम संत ज्यादा बनते हैं |
उन्होंने गांधी को विचार की तरह नहीं, वस्त्र के रूप में लिया | संभव है मेरा आरोप इसलिए कठोर हो क्योंकि इनसे उम्मीदें ज्यादा थीं | इतना सुविधा भोग तो गांधी ने नहीं सिखाया था जितना आज़ादी और सत्ता प्राप्ति के बाद इसमें ये लिप्त हो गए ? और मुझे तो लगता है इन्ही का प्रभाव कम्युनिस्टों पर भी पड़ा | वरना वे ऐसे तो न थे ! या फिर 180 डिग्री रिबाउंड होकर हिंसक गांधीवादी हो गए | सुना नहीं आपने - विनायक सेन को गांधीवादी कहा जाता है ?  

* लिखते रहिये , याद दिलाया कीजिये , स्मरण किया कीजिये | आपके भी काम आएगा | क्या हुआ जो हमें यह पहले से मालूम था | श्रीमन, आपातकाल में यह सब जायज़ होता है अपनी जान बचाने के लिए आप को मालूम होना चाहिए | इसे लाइक और इस पर टिपण्णी करने वालों को भी विदित होगा वाल्टेयर ने ब्रिटेन में कुद्ध युवकों से घिर जाने पर क्या कहा था और उसे उचित भी ठहराया था जान बचाने के लिए | उन्होंने कहा था - क्या यह मेरे लिए कम सजा है कि मैं फ़्रांस में पैदा हुआ | और युवकों ने उनकी जान बख्श दी थी | इसलिए ऐसे शगूफों से बचिए | इससे कुछ नहीं होता सिवा स्वयं आप कि नीयत पर सवालिया निशान लगने के |     [ Nazeer Malik]

* यह ठीक है कि पंडित जी छोटी जातियों पर शेर बने फिरते हैं | लेकिन आप, जो भले दलित हैं पर पढ़े लिखे ज्ञानी समझदार हैं, ऊँचे ऊँचे ओहदों पर हैं | आप तो उसकी असली हैसियत समझते हैं, कि बस हाथी के दाँत हैं ! वह आपके सामने तो भीगी बिल्ली है ? फिर तुम उस पर दया क्यों नहीं करते ? उसकी सांस्कारिक बेचारगी, जन्मना विवशता पर आप तो रहम करो ! उससे उस कदर घृणा तो मत करो जैसा अशिक्षित दलित करते हैं | वरना तुम्हारी शिक्षा और उनकी अशिक्षा में क्या अंतर ?    

* ब्राह्मणवाद पर निष्पक्ष अध्ययन और शोध की आवश्यकता है | यह तभी हो सकेगा जब भारत जातिवाद से  मुक्त हो | या फिर मैक्समुलर के नाती पोते करें |

* Rationalist , Atheist Societies में मुसलमानों का शत प्रतिशत आरक्षण है | एक भी सीट नहीं भरती |

* [ पिसा  लाल मिर्चा ]
- औरतों को यह सलाह दी गयी है कि अपनी आबरू की रक्षा के लिए अपने साथ पिसा लाल मिर्चे का पाउडर रखें |
= कमाल है , इतने महत्वपूर्ण और कीमती सामानों की हिफाज़त का लिए इतना सस्ता औज़ार ?

* सच तो जो है सो है | वह कहीं भागा नहीं जा रहा है | उसके पीछे हम क्यों पड़े हैं ? इस "जगन्मिथ्या" के बारे में क्यों न सोचें, अपना माथा लगायें, जीवन खपायें जो छिन पल खिसकता जा रहा है, हमारे हाथ से फिसलता ? कुछ तो झूठ के बारे में गौर करें !    

* जम्बूरियत में आस्था किसे है ?

* वहाँ से उजड़े, यहाँ बसे हम ,
यहाँ से उजड़े कहाँ बसेंगे ?

* [ कविता ]
एक ही किताब है
पढ़कर बन लो विद्वान
अट्ठारह होतीं तो
हम भी देखते !

* आखिर जंगल में पड़े हैं
करें तो क्या करें
बैठे बैठे ?
तो कुछ शिकार की
योजनायें, कुछ
शिकारी अभियान
आयोजित कर लेते हैं
मनोरंजन के लिए |
कौन हैं ये ?
कितने सिद्धांतवादी
कितने रक्त, लहू, शोणित,
खून - वादी ?

* कोई शक्ति है | और आप जानते हैं कि वह भगवान् है ? हास्यास्पद !
कोई हँस देगा तो बुरा मत मानियेगा |

* हमारी राजनीति बिल्कुल स्पष्ट है | न कोई वाद न कोई विवाद | न कोई पार्टी न कोई सिद्धांत | न धार्मिक साम्प्रदायिकता न धर्म निरपेक्षता | बस विशुद्ध भारतीयता | हम केवल समाज के जन्मना सबसे निचला तबका - - दलित वर्ग [SC / ST ] को वोट देते हैं | और उसमें भी महिलाओं को वरीयता देते हैं | हम राजनीति को लेकर किसी ऊहापोह या Tension में नहीं हैं |
[ सत्ता के अब वे ही अधिकारी, सच्चे पात्र हैं | वरना काबिलों की कहाँ कमी है ? वही तो अब तक राज कर रहे हैं !--niranjan sharma ]

* जब अल्लाह का नियम लागू ही है और लागू ही होना है तो फिर मानव निर्मित Blasphemy Law की ज़रुरत क्या है ? जब इंसान के बनाये कानून मानने ही नहीं हैं तो इंसान , फिर, ईशनिंदा कानून बनाये ही क्यों, संविधान संशोधन वगैरह करने की ज़हमत क्यों उठाये | कैसी उलटबासी है - आसमानी क़ानून को लागू करने, चलाने और बचाने के लिए इंसानी निजाम चाहिए ?

* [ तू तू मैं मैं ]
लड़ना है तो बराबरी से लड़ो | बराबर की हकदारी के साथ दबंगई से लड़ो | यह क्या हिन्न हिन्न, मिन्न मिन्न, मेंऊँ मेंऊँ करते हो ? कोई कहे यह मेरा तो तुम कहो - नहीं यह मेरा है, तुम्हारा नहीं है | झगडा कायदे से ऐसे ही होता है | वे कहें तुम पैर से पैदा हुए तो तुम पलटवार करो - तुम पैर तो क्या पैर की कानी उँगली से पैदा हुए | वे बोलें हम मुख से पैदा हुए तो तुम जवाब दो - हम ब्रह्मा के मुख के अन्दर के जीभ से पैदा हुए | इसमें विज्ञान का क्या हवाला देना ? वे अवैज्ञानिक बात करें तो तुम भी अज्ञानी बन्ने का ढोंग करो | तू तू मैं मैं इसी को कहते हैं, ऐसे ही किया जाता है |
[ Sandeep] हाँ , कुछ भी धड़ल्ले से कहिये | यह क्या कि हाय हाय , देखो इन्होने मेरे लिए क्या क्या लिख रखा है ? मेरी बड़ी बेईज्ज़ती है | नहीं , तुम्हारा लिखना तुम्हारे लिए सही है | तुम पैर / गुदा से पैदा हुए | हम तो प्रकृति कि सर्वश्रेष्ठ संरचना हैं | यदि श्रेष्ठ होना ब्राह्मणत्व है तो हैं न हम ब्राह्मण ! तुम हो नीच , जिसे वेड पढ़ने , ज्ञान प्राप्त का कोई हक नहीं है | तुमने पढ़ा ही नहीं है कुछ | तुम ज्ञानी नहीं हो | तुम्हारा छुआ पानी हम नहीं पियेंगे | etc . . etc .
Band kijiye rona dhona | yh kamzoron ka kaam hai |

* जाके पैर न फटी बिवाई |
बिलकुल ठीक बात है यह | लेकिन देखा यह जाता है कि अपनी फटी बिवाई वाले उपचार के लिए किसी फटी बिवाई वाले के पास नहीं, बल्कि डाक्टर के पास जाते हैं जो आम तौर पर जूते पहने होता है | उसकी बिवाई फटी नहीं होती |          

* मैं सचमुच बड़े कोफ़्त में हूँ | अपनी असफलता, अपनी नाकामी पर | प्रिय संपादक अखबार, सेक्युलर सेंटर , नागरिक धर्म समाज नहीं चले, उसकी बात नहीं है | बिलकुल पारिवारिक असंतुष्टि है | एक भाई को पढ़ाया - M Sc .MA .LLB  . सब सोलह दूनी आठ हो गया | वह ' श्री राम चन्द्र कृपाल भजमन ' करता सारे तीरथ भ्रमण कर रहा है | बेटी ने भले Ph D किया लेकिन वह भी एक औरत ही होकर रह गयी | बेटा है तो ठीक ठाक काम पर लगा लेकिन उसके अन्दर पता नहीं कैसी हवस आ गयी है जिसके कारण टेंसन रहता है | अब बचीं बेगम पत्नी जी महारानी, कुछ मत पूछिए | मैं सबसे विलग ही सुकून पा सकता हूँ | बस यही फेसबुक, ब्लॉग पर उल्टी सीधी कविता कहानियाँ लिखकर मन को रमाये रहता हूँ |  

* समता और स्वतंत्रता के सन्दर्भ में हर किसी के बारे में बात होनी चाहिए, बहस होनी चाहिए, आन्दोलन होने चाहिए, कानून बन्ने चाहिए, संविधान संशिधं होने चाहिए | दलितों, पिछड़ों,आदिवासियों, नक्सालियों, मुसलमानों, कश्मीरियों सब के सम्बन्ध में | बांगला देश, फिलिस्तीन, इस्राईल, जमाईका, श्रीलंका के बारे में भी | लेकिन हिन्दू कि कोई बात नहीं होनी चाहिए | यह साम्प्रदायिकता हो जायगी | क्योंकि हिन्दू एक अज्ञानी अन्धविश्वासी, जाहिल, सदैव से गुलाम कौम है | इसे न आज़ादी चाहिए, न स्वतंत्रता, न इसका कोई देश | इसे नागरिक जी भी गरियाते हैं कि यह नास्तिक क्यों नहीं है, मुसलमान भी लतियाते हैं कि यह काफिर क्यों है ? इसके इसके दलित बुद्धिजीवी अपमानित करते हैं तो उच्च मार्कंडेय काटजू भी अज्ञानी बताते हैं | ज़ाहिर है, इसी योग्य है यह | लेकिन क्या सचमुच इसे ऐसा ही माँ लिया जाय ? ये सारे तमाम समता और लोकतंत्र की बातें करने वाले लोग तो मूलतः इसी की उपज हैं | इस हिन्दू कौम के बारे में विख्यात है कि यह दूसरों के लिए कोमल और दयालु है लेकिन अपने स्वयं के लिए अत्यंत कठोर और निर्मम | इसलिए यही लोग हैं जो रात दिन समता - स्वतंत्रता कि चिंता में कालेजों विश्वविद्यालयों में चटक रंग की किताबें पढ़ते पढ़ाते हैं, भाषण देते, सेमीनार करते, किताबें लिखते हैं | और फिर बोतल बोतल पानी पी पी कर हिन्दू वांग्मय  को गालियाँ फरमाते हैं | जी बिल्कुल नहीं होनी चाहिए विश्व में क्या अपने भारत में ही हिन्दू अधिकार की कोई बात, कोई समीक्षा |
लेकिन कठिनाई यह है कि इसे हिन्द महासागर में भी तो नहीं धकेल जा सकता, क्योंकि वह भी कुछ हिन्दू नाम लिए हुए है | और अरब महासागर इसे स्वीकार नहीं करेगा, बल्कि इसे डुबो नहीं पायेगा, ऐसा इतिहास ने सिद्ध कर दिया कर दिया है | हाँ , प्रशांत महासागर में यह अवश्य स्थान ग्रहण कर सकता है, शान्तिपूर्वक ! तो यही तो कर रहा है वह ? उसी स्थिति में है वह |          

* जब कोई मूर्ख पिता भी अपना वश चलते अपने पुत्रों को लड़ने नहीं देता, तो यदि वास्तव में कोई खुदा होता  - और सर्वशक्तिमान खुदा होता - तो वह अपनी संतान को कदाचित अपने नाम पर कुत्तों कि तरह न लड़ाता | यदि खुदा शक्ति और बुद्धि वाला होता तो भी वह एक ही धर्म सारे संसार के लिए बनाता - सारे संसार कि एक ही बोली एक ही संस्कृति होती - जिससे इन झगड़ों का बीज ही न पड़ता | जो खुदा  झगड़ों के बीज बोता हो, वह वास्तव में कुछ भी हो तो विषवत त्याज्य ही है |
[ राधा मोहन गोकुल जी ]
प्रचंड जी, प्रचंड टीकाकार होना अच्छी बात हैं, लेकिन इसे कोई आप का कुतर्क ही कह सकता है , Because you  speak without a second thought . यह अंश राधा मोहन गोकुल जी के लेख से उद्धृत है, उन्होंने जैसा लिखा, जो शब्द इस्तेमाल किये | शायद उनके लेखे खुदा और ईश्वर में भेद न था | लेकिन जब आपको इतनी आपत्ति हो गयी तो मुसलमानों को तो और नागवार गुज़रना चाहिए | ऐसी रुकावटों से मिशन को बाधा पहुँचती है | I am very sorry for your attitude |

* 6 लाख का मुआवजा तो मिलना ही चाहिए | खालिद मुजाहिद पर आखिर कोई मामूली नहीं, आतंक का आरोप था ! आतंक अंजाम देकर अगर आत्म घात में मरता तब तो उसे और ज्यादा भरपाई देनी पड़ती |

* दलितों पिछड़ों मुसलमानों के चक्कर में कोई किन्नरों कि बात नहीं करता | कोई NRI को धन्यवाद नहीं देता जो भारत का भार कुछ कम करने के लिए भारत से भाग गए |

* हिंसा से केवल " हक " ही नहीं,  " ना- हक " भी प्राप्त किया जा सकता है | इसीलिए इसे अमूमन लोग न्याय संगत नहीं मानते | इसमें तर्क - विचार, उचित अनुचित का नहीं लाठी का जोर होता है |

* भारत को साधारण जीवन जीने वाले सामान्य मनुष्यों की आवश्यकता है | जो जनता के बीच के हों, जनता के बीच में हों | हमें गाँधी- मार्क्स की ज़रुरत नहीं जो अति पर चले गए - अतिमानव बन गए | सभी ऐसा करें यह ज़रूरी नहीं | भले परिवर्तन धीमी गति से हो, पर वह स्थायी होगी | क्योंकि बनावटी नहीं होगी |

* वह साहित्यकार ही क्या जिसके अन्दर अहंकार न हो ?

* चिन्तक वह जो अपने खिलाफ भी सोचने का माद्दा रखे |
वही बड़ा विचारक होगा, जो सबकी ही नहीं अपनी भी बातों की काट छाँट, शल्य क्रिया कर सकेगा |

* अपनी बेटी के विवाह के लिए दस बीस रूपये घूस पात लेकर बचने वाला घूसखोर, भ्रष्ट और बेईमान | इधर ये नेता देश के नियामक ? फिर इनके पुत्र - पुत्री जोड़े भी कैसे होते हैं जो अपने लिए ऐसी धूम धड़ाके वाली शादियाँ स्वीकार कर लेते हैं ? क्या इन युवाओं से कोई उम्मीद है ? सबको कटघरे में खड़ा करना चाहिए | उन बारातियों और शादी में सम्मिलित होने वालों मेहमानों को भी | वे भी अपराधी हैं | अन्ना अरविन्द आन्दोलन का ध्यान इस सामाजिक पहलु पर बिल्कुल नहीं है | इसलिए वह असफल हो रहा है |

* राधा मोहन गोकुल जी लिखते हैं :--
जहाँ शारीरिक हानि पहुँचाने के लिए अनेक नशेबाजी और दुराचार के अड्डे होते हैं, वहाँ महुष्य को मानसिक हानि पहुँचाने और निकम्मा बनाने के लिए धार्मिक अड्डे - गिरजे, मंदिर और मस्जिदें भी हैं | यह सब काम बाकायदा शासन और शासक मंडल के हित के लिए उनके दलालों अर्थात पुरोहितों द्वारा, सरकार की छत्र छाया में बसने वाले गरीबों को लूटने वाले अमीरों की मदद से हुआ करते हैं | मूर्ख ग्रामीणों  के दिमाग में जहाँ एक बार कोई बेवकूफी घर कर गयी फिर मुश्किल से निकलती है | इन बेचारों में ज्ञान नहीं, विवेक नहीं, समझ नहीं, विद्या नहीं, खाने को अन्न और पहनने को वस्त्र तक इनके पास नहीं | जो चाहे इन्हें पंडित, मौलवी, पादरी बनकर ठग सकता है | पीढ़ियों से इन बेचारों का यही हाल है | सिखाने वाले धनिक, पुरोहित और राज कर्मचारियों में से कोई भी ईश्वर को नहीं मानता, पर हर एक ईश्वर को मानने का ढोंग रचता है | मैं पूछता हूँ कौन पंडित, मौलवी, पादरी, राजा, रईस और सेठ - साहूकार ऐसा है जो झूठ नहीं बोलता, फरेब नहीं करता और तमाम दुनिया की बदमाशियों से पाक- साफ़ है ? इस हालत में कोई चतुर मनुष्य यह कैसे मान सकता है कि लोग ईश्वर की हस्ती के कायल हैं, परमात्मा की सत्ता को स्वीकार करते हैं ? इसलिए ईश्वर कोई चीज़ नहीं, सिवा इसके कि गरीबों को झागने के लिए ठगों का एक जाल है | यह जाल जितनी जल्दी तोड़ दिया जाय उतना ही अच्छा |
Frnds , यह मेरी फितरत है, मेरा अध्यात्म, मेरा पूजा पाठ | मैं नास्तिकता का प्रचार हर विधि से करता हूँ | इसी में मानव कल्याण समझता हूँ | गलत हो सकता हूँ | लेकिन जिन्हें यह उचित लगे वे अपने ही तरीकों से सहयोग करें | जिन्हें न अच्छा लगे, वे रहने दें | लेकिन विवाद न करें | तर्क वैज्ञानिक प्रक्रिया में होता है | आस्था जैसे अविज्ञान में यह लागू नहीं होता |          

* If you people don't mind I, personally, have made up my mind to reject the concept of martyrdom for the theoretical - utopian causes of Marx or Islam or anyone. { May be I am exaggerating }, but I go to the extent of well known luminaries and icons like Bhagat Singh etc . Because the negative outcome of their sacrifice is visible . Why to give up life, except for saving lives from dangers or in cases of accidents ? Saving life is foremost philosophy. No wonder if subaltern historians denounce the 1857 struggle and rebels like Jhansi ki Rani and Maharana Pratap their fight for personal states . The thought of martyrdom entails the idea to finish others lives . As Batohi put examples, they are also, enough and more than, martyres who dedicate there lives honestly, tirelessly to serve the humanity, while saving their own lives as well .                  

* गांधी की अहिंसा को सफल बनाने के लिए अंग्रेजों जैसा राज्य भी चाहिए | भारतीय लोकतंत्र में वह सफल नहीं होते |

* प्रेम विवाह करने में मुझे एक दोष का अनुमान हो रहा है | प्रेम विवाह कर लो तो फिर कोई अन्य पुरुष या स्त्री " नज़र भर कर " देखती भी नहीं | शायद हिम्मत नहीं पड़ती | एक खूंटे से बंध कर रहना कुछ कुछ मजबूरी जैसी हो जाती है |          

* जनसँख्या में बेतहाशा वृद्धि का एक बड़ा कारण मेरे संज्ञान में आया है | बहुत सारे पति -पत्नियों के बीच गहरे अवैध सम्बन्ध हैं |    

[ कविता ]  " तो हम क्या करें ? "
देखो ईश्वर अल्लाह भगवान् गॉड ने
यह सृष्टि बनायीं, दुनिया रची,
सूरज चाँद सितारे नदियाँ और पहाड़ बनाये |

-- तो हम क्या करें ?

उसने सुंदर सुंदर घाटियाँ, मनोरम जंगलात,

पेड़ पौधे, खुशबूदार फूल उगाये |
-- तो हम क्या करें ?

उसने मनुष्य, आदमी औरतें और बच्चे दिए
बादल, हवा, पानी बख्शा |

-- तो हम क्या करें ?      

" तुम भी कुछ तो करो |"

-- तो हम यह करें कि जो सुंदर, खुशबूदार फूल
उसने उगाये, उन्हें तोड़कर
ईश्वर के चरणों में अर्पित कर बर्बाद कर दें |
और तमाम कमरे बना कर
ताज़ा हवा, सुबह की सबा आने से रोक दें |
आदमी का दम घित जाए |      [ कविता ]  " तो हम क्या करें ? "
देखो ईश्वर अल्लाह भगवान् गॉड ने
यह सृष्टि बनायीं, दुनिया रची,
सूरज चाँद सितारे नदियाँ और पहाड़ बनाये |
-- तो हम क्या करें ?
उसने सुंदर सुंदर घाटियाँ, मनोरम जंगलात,
पेड़ पौधे, खुशबूदार फूल उगाये |
-- तो हम क्या करें ?
उसने मनुष्य, आदमी औरतें और बच्चे दिए
बादल, हवा, पानी बख्शा |
-- तो हम क्या करें ?      
" तुम भी कुछ तो करो |"
-- तो हम यह करें कि जो सुंदर, खुशबूदार फूल
उसने उगाये, उन्हें तोड़कर
ईश्वर के चरणों में अर्पित कर बर्बाद कर दें |
और तमाम कमरे बना कर
ताज़ा हवा, सुबह की सबा आने से रोक दें |
आदमी का दम घुट जाए |
और शांत - प्रशांत वादियों को अजानों,
भजन कीर्तन, घंटा मजीरा की आवाजों से  
झनझना दें |
कहीं कोई शान्ति न रहने पाए
हम यह करें |
#  #  

[ कविता ]  कृपण ( कंजूस )  अथवा - तुम्हारे बिना
* धौंस मत दिखाओ मुझे
चुनौती मत दो
मेरी सहनशक्ति को ,
रह सकता हूँ भली भाँति
मैं तुम्हारे बिना, और
तुम्हारे लिए एक बूँद भी
आँसू खर्च नहीं करूँगा |
क्या समझते हो मुझे ?
देखो मैंने रेडियो, टीवी, फ्रिज
एसी, कूलर, पंखा, फोन, मोबाईल
के बगैर जीवन गुजारी या नहीं ?
ज़रा भी जेब ढीली नहीं की
मैंने इनके लिए ,      
यहाँ तक कि गैस और बिजली का
कनेक्शन भी नहीं है मेरे पास
लिया ही नहीं मैंने |
और तो और, एक रूपये की कंघी
दो रूपये का शीशा
मैं कभी शीशा नहीं देखता
बालों में कंघी नहीं करता |
अब मैं यह नहीं कहूँगा कि
तुम्हारे बिना ये सब मुझे
बिल्कुल अच्छे नहीं लगे,
भाते ही नहीं, सुहाते नहीं हैं |
बल्कि तुम यह जानो कि
यह मेरी फितरत है ,
बहुत कंजूस हूँ मैं दरअसल
मै कलकुलेटर के बिना ही
दुकान चला रहा हूँ
और ज़िन्दगी के
गुणा-भाग के लिए तो
कोई तराजू ही नहीं रखी मैंने    
फिर कोई दार्शनिक अर्थ
मत लगाना इसका
मेरी आदत ही ऐसी है
बहुत कृपण हूँ मैं, तभी तो
तुम्हारे बगैर ही ज़िन्दगी काटना
संभव हुआ मेरे लिए
और मैंने कोई आँसू अपना
खर्च नहीं होने दिया ! !
#  #


* [ गीत प्रयास ]
1 - उन्ही से उन पर राज कराओ ,
वीर कहाओ ,
पंचायती राज बनाओ
अ - राज चलाओ |

2 - मैं भी बहुत ' लोग ' होते हैं ,
हम भी एक वचन होता है |

3 - [ जीवन गीत ]
हरदम भयाक्रांत रहना भी कमजोरी है ,
मैं रहता हूँ |
- - - - - - - - --
- - - - - |

[ कविता ]
जो बहुत " पूस पूस " करता है ,
वह तो माँ होती है या चापलूस होता है |
(पूस पूस = मनुहार करना )    

* छोटे छोटे रोल ही निभाने हैं हमें | बड़ी भूमिका निभाने की स्थिति में नहीं हैं हम |


[ Haiku + Taanka ]

1 - पैसा उद्देश्य
न हो तो श्रीमान हैं
आप महान |

2 - आप के पास
डिग्री के अतिरिक्त
कुछ और क्या ?

3 - रम गए न
इस जग में तुम ?
मैंने कहा था |

4 - छोड़ा प्रयास
कोई आशा नहीं है
बदलाव की |

5 - अब ठीक है
लखनौ का मौसम
अब आ जाओ |

6 - ठीक नहीं है
मेरे स्वास्थ्य का हाल
तुम आ जाओ |

7 - इस समय
मैं पूरे फार्म में हूँ
कुछ भी लिखूँ |

8 - पैसा मिलेगा
तो नाच बुलबुल
सैय्याद धुन |

9 - असहमति
कोई हो या नहीं हो  
दर्ज कराओ |

* I am no great man
Neither I am so a little man
I am just a man .

* पता है कुछ
कितना पानी बहा
सतलुज में ?

* हम ठहरे
साधारण आदमी ( मनई )
जब कि आप - - ?

* पैसा जो हो तो
गर्मियों में मैं आम
रोजाना खाऊँ |

* मोहन होना
दास करम चंद
गांधी हो जाना
मजाक नहीं होता
आसान काम नहीं |

* आंबेडकर
होना ही कहाँ कोई
आसान काम ?

* तेरे प्रश्न का
कोई जवाब नहीं
मैं निरुत्तर |

* क्या तो खाकर
मुकाबला करोगे
कुछ पी आओ |

* बहुत अच्छा    
बहुत अच्छा गाया
और सुनाओ |

* देखता रहा
जग की कार्रवाई
आँखें फटीं सी |

* हया बचाना
बिना बेहयाई के
भारी था भाई |

* चलिए अब
संबंध तो हो गया
निभा ले जाएँ |

* सामंत न हों
तो क्या शिष्ट भी न हों
धनी न हों तो ?

* चलिए करें
सबसे प्रेम - प्यार
तो फिर घृणा ?

* भाषा सरल
न होती कोई, बोली
कोई कठिन |

* रखना होगा
सीमित प्रतिबन्ध
बस सीमित |

* पोल माफिया
कह सकते हैं क्या
नेता जनों को ?

* अभी जारी है
प्यार का सिलसिला
जारी रहेगा |

* अरे ओ सांभा
कितने आदमी थे
तीन के तीनों ?

* सारे मनुष्य
मनुष्य ही मनुष्य
कैसे मनुष्य ?

* सारे तो धर्म
मनुष्य बनाते हैं
राक्षस कौन ?

* हाथ बढ़ाना
पर उससे आगे
मत बढ़ना |

* रोज़ निर्माण
लगातार निर्माण
होता हमारा |

* बहुत झेला
कितना झेल पाता
मैं टूट गया |

* तजुर्बे होते
सफ़र के दौरान
प्रिय अप्रिय |

* पैसा मिले तो
बंदरों की तरह
नाचा करेंगे |

* औरतें बस
औरतें रह गयीं
कैसे बढ़ेंगी ?

* मैं हूँ विरल
सच कहता हूँ मैं
झूठ नहीं है ,
तुम भी तो अनूठे हो
तो मिलन कैसे हो ?

* एक किताब
पढ़कर विद्वान
अट्ठारह हो
तब पढ़ो तो जानें
हम ज्ञानी तुमको !

* होती हैं होतीं
सरकारें भी व्यक्ति,
व्यक्तिवाचक
और फिर व्यक्ति भी
होता है सर्वनाम