शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

सख्त लोकपाल बिल

* अभी तो खैर लोकपाल का मामला लटक गया है । लेकिन जब कभी यह आये तो सख्त लोकपाल के बारे में मैं कुछ कहना चाहता हूँ । सख्त लोकपाल वही हो सकता है जिसका कार्य क्षेत्र सीमित हो उसका काम यदि साठ लाख लोगों पर छितरा दिया गया तो वह प्रभावी काम नहीं कर पायेगा । इसलिए यदि उसे सचमुच मज़बूत बनाना है तो केवल उसे सांसदों के भ्रष्टाचार पर नज़र रखने , उनकी जांच करने और उन्हें सजा देने तक सीमित रखें । पी एम को भी एम पी के रूप में उसके अधीन रखें पर पी एम के काम पर उसका कोई दबाव न हो । एक अभूत पूर्व विचार यह है कि लोकपाल को चुनाव आयोग [संवैधानिक स्तर प्राप्त ] के अन्दर एक सेल के रूप में बना दें जो सांसदों के सम्पूर्ण आचरण , उनकी उपस्थिति ,वेतन -भत्ते पर नज़र और अंकुश रखे । [आखिर मुख्य समस्या तो उन्ही के भ्रष्टाचार को लेकर है , जिस से जनता ज्यादा नाराज़ है , और उस से छुटकारा पाना चाहती है ? अन्ना ने तो अनावश्यक इतना फैला दिया कि वह असफल होने के लिए अभिशप्त हो गयी ] । शेष संस्थाओं सी बी आई , न्याय पालिका , ए बी सी डी ग्रुप और प्रदेशों के लोकायुक्त जैसे अपना काम कर रहे हैं वैसे करें । इस प्रकार बिल के तमाम जद्दो ज़हद समाप्त हो सकते हैं और इसके बहाने फैलाये जा रहे राजनीतिक ज़हर से देश को बचाया जा सकता है
और अंत में एक ख़ास बात । हम नहीं चाहते कि लोकपाल इतना सख्त हो जाय कि वह किरण बेदी के बिल चेक करने लगे , अरविन्द केजरीवाल की सेवा पुस्तिका उलटने लगे, भूषणों की संपत्ति का ब्यौरा लेने लगे या कुमार विश्वास के पढ़ाए बच्चों के इम्तिहान की कापी जांचने लगे । यदि वह इतना अधिकार संपन्न हो जायगा ,तब हम लोगों को थोड़ी दिक्कत हो जायगी । #

गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

सफल अन्ना

* अन्ना का आन्दोलन सफल , यदि इसे सफल माना जाय तो , इसलिए हुआ क्योंकि अन्ना टीम ने व्यक्ति और समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार को छुआ तक नहीं । बल्कि उनके सदस्य व्यक्तिगत रूप से जब भ्रष्टाचार में संलिप्त होने के लिए आरोपित हुए तो स्वयं उन्होंने उसे भ्रष्टाचार नहीं माना और अन्ना ने उनका बचाव ही किया । अपनी सफलता सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने चिड़िये की आँख की तरह केवल राजनीतिक , उसमे भी केवल सरकारी भ्रष्टाचार , स्कैम ,घोटालों पर अपना ध्यान केन्द्रित रखकर आन्दोलन को संचालित किया । इसीलिये उन्हें एकाएक जन समर्थन मिला और वे सरकार पर दबाव बनाने में कामयाब हुए । यदि उन्होंने ज़रा भी अपनी भीड़ से भ्रष्टाचरण न करने की शपथ लेने की पेशकश की होती तो भीड़ का छँटना जो अब मुंबई में प्रकट हुआ , वह दिल्ली में ही शुरू हो गया होता । बल्कि जिस तरह वह आज MMRDA मैदान छोड़ कर भागे ,उस तरीके से तो वह जंतर मंतर से ही छू मंतर हो गए होते । बहरहाल अब भी अन्ना की यदि अन्ना की समझ में कुछ आ जाय तो यह उनके स्वास्थ्य के लिए बेहतर होगा । उन्हें समझना होगा कि सफलता व्यक्ति को बड़ी जल्दी पठार में फेंकती है ।

बुधवार, 28 दिसंबर 2011

अन्ना को बचाओ

* अन्ना हजारे का कहना है कि वह मृत्यु से नहीं डरते । तो उनके साथियों में इतना यो साहस होगा ही कि वे जेल का आनंद उठा सकें । अतः उन लोगों को जेल भेजकर सरकार को चाहिए कि वह अन्ना को बचाए । वर्ना यह चंडाल चौकड़ी अन्ना से भूख हड़ताल करवा - करवा कर उन्हें मार डालेगी ।

सोमवार, 26 दिसंबर 2011

अन्ना के नौजवान

अन्ना के नौजवान :
अन्ना अपने नौजवानों से जीवन में कभी घूस न लेने की शपथ नहीं दिला रहे हैं तो कोई बात नहीं । पर यदि ये भ्रष्टाचार विरोधी युवक स्वयं ही अपनी शादी में दहेज़ न लेने की और अपनी बहनों , तथा आगे चलकर बेटियों के विवाह में दहेज़ न देने की शपथ ले लें , तो अन्ना का आन्दोलन कुछ तो विश्वसनीय हो जाता । वर्ना तो फिर यही निष्कर्ष निकलता है कि बस राजनीतिक इच्छा वश ही ये जन लोकपाल बिल माँग रहे हैं, जिस प्रकार राजनीतिक कारणों के तहत ही कांग्रेस एवं अन्य दल इसे पास करना नहीं चाह रहे हैं ।

अन्ना के नौजवान

अन्ना के नौजवान :


अन्ना अपने नौजवानों से जीवन में कभी घूस लेने की शपथ नहीं दिला रहे हैं तो कोई बात नहीं

यह भारत देश तमाशा है

यहाँ तानाशाह भी अपना अभियान शुरू करने से पहले महात्मा गाँधी की मूर्ति के समक्ष शीश नवाता है । और कोई आश्चर्य नहीं , यदि कभी हिन्दुओं में कसाई कौम पनपे तो वह बकरे की गर्दन पर छुरी चलाते समय मन्त्र बोले - "जय,गाँधी जी की जय" !

अब मैं अन्ना

* अपनी गलती मैं स्वीकार करता हूँ की मैं अभी तक अन्ना के साथ नहीं था । हीन भावना से ग्रस्त था मैं कि इतने बड़े ईमानदारी के कार्यक्रम में मैं भला कैसे शामिल हो सकता हूँ ? लेकिन अन्ना के सिपहसालारों के कारनामे सामने आने के बाद मैं भी अन्ना की लाइन में आने के लिए अर्ह , योग्य हो गया हूँ । शासन पर ईमानदारी का दबाव बनाना है , स्वयं ईमानदार तो होना नहीं है । और भूषण तो बहुत बड़े हैं , अरविन्द , किरनकुमार से ज्यादा भ्रष्टाचारी तो मैं कभी नहीं रहा जो मैं अन्ना आन्दोलन में किसी से पीछे रहूँ ! मैं व्यक्तिगत रूप से तो इनसे ज्यादा ही ईमानदार रहा हूँ । अतः अगले आन्दोलन में अन्ना के पीछे चलने में मुझे कोई परेशानी नहीं होगी , यदि वह अब भी आगे चले तो । और यदि मेरी समझ में तब तक यह न आ जाय कि अन्ना का आन्दोलन तो स्वयं में एक महान राजनीतिक भ्रष्टाचार है । #

विषम समता

प्रसन्नता हुयी जानकर कि एक मुद्दे पर दोनों एकमत हैं । फारुक अब्दुल्ला और बाल ठाकरे दोनों का कहना है कि लोकपाल की कोई ज़रुरत नहीं है ।

तानाशाह

" मेरा लोकपाल बिल , या हवाई जहाज़ का बिजनेस क्लास बिल अभी , फौरन जैसा मैंने बनाया है बिल्कुल वैसा ही , बिना किसी काट -छांट के पास करो , नहीं तो जाओ " ऐसा ऐलानिया धमकी जो दे , तो समझो वह तानाशाह है । जब वह आ जायेगा तो कभी जायगा नहीं ।

रविवार, 25 दिसंबर 2011

फिर भी वामपंथी

प्रगतिशील लेखक संघ के अधिवेशन में इसके अध्यक्ष नामवर सिंह के बयान को लेकर कुछ लेखक उनकी थुक्का फजीहत कर रहे हैं लेकिन जैसा उनके चरित्र में है वे अपने गिरेबान में झाँकने का कष्ट नहीं करते।
वे यह आकलन करने में असमर्थ हैं कि नामवर सिंह फिर भी वामपंथी ही हैं अपने मौलिक स्वरुप में। और उन के चरित्र में शामिल हैं झूठ छद्म और पाखण्ड, जिसे वे अब तक ओढ़े हुए थे। ज़रा सा बोल क्या दिया कि उनका छद्म खुल गया। और इतने दिनों जो उन्होंने पहना- ओढ़ा-बिछाया, खाया-पिया वह पाप किस सिद्धांत के ऊपर डाला जायेगा?
आश्चर्य नहीं, जो आज नामवर की आलोचना कर रहे हैं कल वो भी अपने केचुल उतारें या उनका भी पर्दाफाश हो

लोकतंत्र कि ऐसीतैसी

अदम गोंडवी का १८ दिसम्बर को निधन हो गया। मुझे दुःख इसलिए है कि वह मुझसे एक साल छोटे थे और उन्हें मुझसे पहले नहीं जाना था। कविता में तो वे निश्चय ही बहुत आगे थे जिसका सबूत है अख़बारों में उनका अधिकाधिक कवरेज। और प्रगतिशील साहित्यिक सिद्धांत के अनुसार जो रचनाकार आज़ादी और लोकतंत्र की जितनी फजीहत करे, खिल्ली उड़ाए, नेताओं को गालियाँ दे सरकार को सर के बल खड़ा करे, व्यवस्था का मजाक उड़ाए वह उतना ही बड़ा शायर होता है
फ़िर भी ये लोग शायर के इलाज की ज़िम्मेदारी सरकार पर ही डालते हैं जो इनके अनुसार नाकारा है। क्या यह अनैतिक नहीं कि जिसको गालियाँ दो उसी से पैसा लो फिर उन्हीं के मुंह में डंडा भी करो । कितने बीमारों के इलाज के लिए उनके खेत बिक जाते हैं क्या इन जनवादियों को पता है?
ऊपर से इनकी
स्थापना ये है कि कवि भी उन्ही को मानो जिन्हें ये कवि की मान्यता दें . इनकी नजर में नागार्जुन, मुक्तिबोध तो कवि हैं मगर निर्मल वर्मा और अज्ञेय साहित्य के क्षेत्र में अस्वीकृत होने चाहिए।
ओर कहना न होगा, समाज को लताड़ने वाला, उसके अंधकार पक्ष को उधेड़ना, नारेबाजी करना, बिना मानसिक परिवर्तन के बगावत, विप्लव के लिए उकसाना बहुत आसान भी तो होता है, कठिन साहित्य होता है मानव के मन में प्रवेश करना ।

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

लोकपाल के प्रश्न

* अन्ना के समर्थक कृपया यह बतायें कि सरकार अब क्या करे ? उसने तो एक बिल संसद में पेश कर दिया । उस पर मतैक्य नहीं हो रहा है , और सदन में वह पारित नहीं हो पा रहा है तो सरकार क्या करे ? क्या मार्शल लगा कर सारे सदस्यों से वह ज़बरदस्ती करा ले ? क्या वह ऐसा कर सकती है ? या वह फौज लगाकर राष्ट्रपति से , वह जहाँ कहीं भी हों उनसे , दस्तखत करा ले ? अन्ना टीम तब भी खुश होगी क्या ?
* अब आरक्षण के प्रश्न पर सोचा जाये । यह तो तय है कि धार्मिक आधार पर आरक्षण असंवैधानिक है । भाजपा तमाम गलत बयानी करती है , पर उसका यह कहना सत्य प्रतीत होता है कि यदि इसकी तामील की गयी तो देश में गृह युद्ध की आशंका है । आखिर सहनशीलता की भी एक सीमा होती है । पाकिस्तान -बंगलादेश के बंटवारे को सहने के बाद अब देश के पास इतनी सहन शक्ति शायद नहीं बची है कि वह एक और बंटवारे की भूमिका को स्वीकार करे । अतः ऐसे आरक्षण की मांग देश हित में मुसलमानों को छोड़ देना चाहिए । यह हमारा राजनीतिक प्रस्ताव है । अब दार्शनिक बहस यह है कि मुस्लिम कोई जाति है या धर्म । अधिकांश मान्यता है कि यह धर्म है । फिर तो जैसा ऊपर बताया गया इनके लिए आरक्षण संभव नहीं है । आरक्षण हिन्दू धर्म के भीतर की त्रासदी है , जिसके तहत सवर्ण हिन्दू अपनी जातिगत विसंगति का फल भुगतने के लिए तैयार है , ख़ुशी से या नाखुशी से । पर इसने किसी धर्म पर कोई अत्याचार नहीं ढाया है, जिसकी सजा वह भुगते । फिर भी यदि कोई इसमें आरक्षण की जिद में है तो उसे हिन्दू धर्म की जातिगत व्यवस्था में आना होगा । दर्जी , जुलाहा , धुनिया बनकर तो वह आरक्षण का बन सकता है , पर उसके साथ मुसलमान जोड़कर वह आरक्षण ना ही माँगे तो अच्छा है ।
* और एक अंतिम ,अप्रिय प्रश्न । इन मूलभूत प्रश्नों से आखिर अन्ना टीम क्यों नहीं जूझती , जिसका देश हित में स्थायी महत्व है ? और हम क्या बुरा करते हैं जो उसके इसी छद्म को पहचान कर उनके साथ नहीं जुड़ते ?

अन्ना का उभार

अन्ना हजारे ने कहा है कि यदि उनसे पूछा जाता तो वे मैदान के आवंटन के लिए कोर्ट न जाने देते | मतलब साफ़ है कि अन्ना अलग हैं और उनकी टीम अलग है | टीम कई काम उनके अनुकूल नहीं करती , जिस प्रकार उनके स्वयं के काम लोकतंत्र के अनुकूल नहीं होते |अब ज़ाहिर है किराये के लिए सात लाख रूपये चंदा लेना उनके बाएं हाथ का खेल है | वह भी नम्बर एक का | काफी मेहनतकश ईमानदार जनता उनके साथ है |
दूसरी बात यह गौर करने की है कि उनके आन्दोलन का दबाव सिर्फ कांग्रेस पर ही क्यों होता है ? अन्य दल भी तो संसद के सदस्य हैं जिनकी ज़िम्मेदारी है बिल को पास करना , और वे उसमे अड़ंगे लगा रहे हैं | तो उन पर क्या अन्ना का दबाव नहीं होना चाहिए ? फिर कांग्रेस ही क्यों दबे जो कि अपना कर्तव्य संविधान के दायरे में निभा भी रही है ?
तीसरी बात , अन्ना उन आपत्तियों का जवाब क्यों नहीं देते जो संसद में उठाये जा रहे है ? दलित ,महिला , पिछड़ों के आरक्षण पर उनका कोई पक्ष नहीं है | अल्पसंख्यकों के आरक्षण पर अन्ना चुप हैं | क्यों ? क्या यह अर्थ न लगाया जाये कि वे अपनी ज़िम्मेदारी निभा नहीं रहे हैं और बस किसी अज्ञात जिद वश रट लगाये जा रहे हैं - लोकपाल बिल पास करो , लोकपाल बिल पास करो |
* [हाइकु ]
आया उभार
अन्ना - अरविन्द का
उतर गया |
#

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2011

आओ म्हारे देश

*
[कविता ]
आओ दोस्तों आओ
आओ दुश्मनों आओ
दोस्त बनकर दुश्मनी निभाओ
दुश्मन होकर दोस्ती निभाओ
भारत आओ ,
आओ आर्यों आओ
आओ यवनों आओ
आओ अंग्रेजो आओ
भारत का दरवाज़ा पूरा खुला है
आओ आतंकवादी आओ
मार्क्स - माओवादी आओ
आओ अन्ना हजारे आओ
हिंदुस्तान तुम्हारा
स्वागत करने के लिए
तैयार खड़ा है
आओ कोई भी आओ
सब लोग आओ । #

रविवार, 18 दिसंबर 2011

बदमाश chintan

१ - हे प्रभो आनंद दाता ज्ञान हमको दीजिये ,
एक कुइंटल धान हमसे हर फसल में लीजिये । #
२ - बंधू जी जिस काम में लागे ,
काम तो पीछे , बंधू आगे । #

सुबह आयेगी

[गायन ]
वह सुबह कभी तो आयेगी ।
जब मच्छर सब मर जायेंगे ,
सब बीमारी हट जायेंगे ।

शनिवार, 17 दिसंबर 2011

बदमाश चिंतन

१- (उवाच ) = हमारी डाक्टर साहिबा अभी आउटडोर के मरीजों को देख रही हैं । हम तो इनडोर में भर्ती हैं न ! # २ - (कविता )= अभी तो पास नहीं आ रहे हो , कोई बात नहीं , जब डायरेक्टर कहेगा तब तो चिपकोगी ? # 3 - (dharm patrika ) = यदि कोई धर्म की एक पत्रिका निकालना चाहें तो उसे इसे मासिक आवर्त्तता के साथ निकालनी चाहिए और पत्रिका का नाम रखना चाहिए - "मासिक धर्म " । #

४ - (कथा भूमि) = प्रवचनकरता ने भाषण शुरू ही kiya था - "मनुष्य को अपनी काम भावना से मुक्त होना चाहिए ।"
मैं उठकर बाहर चला आया । #

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

अयोध्या समाधान

१ - (समाधान) - मित्रों से बातचीत करने पर यह लग रहा है कि अयोध्या में जो सरकारी ज़मीन है उस पर मैटरनिटी होम बनवाने की माँग राष्ट्रव्यापी बनायीं जा सकती है । विवादित स्थल का निर्णय अदालत के पास है , वह करे । लेकिन यह तो तय है कि पूरी समस्या का समाधान हमारे पास है जिसे हम सरकार के माध्यम से लागू कराना चाहेंगे । वह काम तो कोर्ट नहीं कर सकती , और हिन्दू -मुस्लिम संगठन भी नहीं करेंगे । ऐसी दशा में सरकार को कौशल्या मातृत्व केंद्र बनाने की पहल करनी ही चाहिए जिससे समस्या को स्थायी समाधान की दिशा मिल सके । #
२ - (कविता) - मस्जिद तो बन ही नहीं सकती
तो अयोध्या में
राम जन्म भूमि मंदिर भी
नहीं ही बननी चाहिए ,
यह मुसलमान नहीं
हिन्दू की चाह है ,
कट्टर ,सत्य ,आधुनिक ,
प्रगतिशील , वैज्ञानिक
हिन्दू की चाह है । #
३ - (उवाच )- आप हिन्दू हैं । और साम्प्रदायिक नहीं हैं । इसका मतलब यह नहीं कि आप साम्प्रदायिक नहीं हैं । आप बड़े आराम से मुस्लिम साम्प्रदायिक हो सकते हैं । #
४ - जैसे जातियां हैं तो उनमे जातिवाद का होना स्वाभाविक है । उसी प्रकार सम्प्रदाय हैं , तो साम्प्रदायिकता भी होगी ही । अब देखना यह है कि जिन दो सम्प्रदायों में अधिक तनाव है , उनमे से कौन अन्य सम्प्रदायों को सहने , अपनाने में कुशल रहा है और कौन हमेशा तना - अकड़ा रहा है ? इसके लिए उनके इतिहास -भूगोल में जाना होगा और उनकी वर्तमान मानसिकता का भी आकलन करना होगा । तिस पर भी किसी निर्णय पर निश्चयात्मक हो पाना कठिन ही है । #

बुधवार, 14 दिसंबर 2011

Delivery

* देखा जा रहा है कि आजकल ज़्यादातर प्रसव नार्मल नहीं होते । तो क्या , पैदा होने वाले बच्चे तो नार्मल , सामान्य ही होते हैं !