मंगलवार, 20 सितंबर 2011

कवितायेँ

* - पत्रकारिता की चमक
पत्रकारिता नहीं है
देखिये क्या है
उसका कंटेंट ? #

* - तुम मुझको कहो -
तुम भ्रष्ट हो ,
मैं तुमसे कहूँ -
तुम भ्रष्ट हो ,
और हम दोनों सर झुका कर
विचार करने बैठ जाँय
देखो भ्रष्टाचार
ख़त्म होता है कि नहीं !
या फिर यूँ न करें कि
मैं ही कहूँ -
कि मैं भ्रष्ट हूँ ,
यूं ही कहो -
कि तुम भ्रष्ट हो ,
देखो , भ्रष्टाचार
समाप्त होता है कि नहीं ? #


* हम भ्रष्टाचार के
साथ नहीं ,
भ्रष्टाचार के
विरोध में भी नहीं,
भ्रष्टाचार की
राजनीति में हैं ,
हम लोग । ##
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