शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

उदगार - विचार

* पहले अंग्रेजों को गाली देते थे ,
अब अमरीका को कोसते नहीं थकते
हम हिन्दुस्तानी , अपना दोष
दूसरों पर मढ़ने के अभ्यस्त
अपनी गंदगी दूसरों के कपड़ों पर
पोंछने में सिद्ध हस्त ।
कौन कहता है हम गुलाम थे
हमने तो सबको अपने
पैरों तले रखा - किसकी हिम्मत
जो हमें नीचा दिखा सके
सर्वोच्च हैं , रहे हैं ,
सदैव हम । #

* कुछ लोग , अति प्रबुद्ध , प्रगतिशील राष्ट्र को नहीं मानते , राष्ट्रवाद को बुरा मानते हैं । अति या उग्र राष्ट्रवाद का मैं भी समर्थक नहीं । लेकिन राष्ट्र तो यथार्थ है ? इसलिए राष्ट्र -राज्य के अस्तित्व को अपने भौतिक जीवन के लिए सहर्ष स्वीकार करता हूँ । उनसे एक प्रश्न है कि यदि यह देश , भारत न होता तो वे अल्पसंख्यक मुसलमान कहाँ होते जिनके पक्ष में वे खड़े हैं ? और वे बहू संख्यक हिन्दू कैसे होते जिनकी साम्प्रदायिकता के विरोध में वे जान लड़ाए हुए हैं ? #

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