रविवार, 25 सितंबर 2011

नैतिक साहस

0 मुझे गलत समझा जा सकता है , पर मै एक छोटा आदमी विवशतः यह मानता हूँ कि मैं व्यक्तिगत तौर पर ही ईमानदार हो सकता हूँ , किसी अन्य को ईमानदार होने के लिए विवश नहीं कर सकता । हाँ,यह काम नैतिक संत, समर्थ शिक्षक, सक्षम अधिकारी अवश्य कर सकते हैं । जैसे मैं अपने वकील से नहीं कह सकता कि मेरी फीस को ईमानदारी से इनकम टैक्स रिटर्न मे दिखाओ । मेरे पास इतना नैतिक साहस नहीं है कि डॉक्टर से कह दूँ मेरे बच्चे को कुछ भी हो जाय मैं तुम्हे कोई पैसा नहीं दूँगा । मैं तो पोस्टमैन तक को होती-दीवाली की त्योहारी माँगने से मना नही कर सकता । इत्यादि- इत्यादि- इत्यादि । इसे दैनिक जीवन के अनुभव से समझ सकते हैं ।इसे कृपया केवल दिमाग से नहीं, उसमें अपना दिल भी जोड़कर सोचें । नैतिकता नितांत निजी मामला है , और ईमानदारी नैतिकता से संबंधित है। इसलिए ईमानदारी निजी नैतिकता है ।

* मैं उस स्थिति की कल्पना करता हूँ जब मुसलमानों की वैज्ञानिकता के प्रस्ताव को स्वीकार करके सभी पुरुषजन खतना करवाने लगें तब मुसलमानों की अलग पहचान की दृढ़ता का क्या होगा ? तब वह कोई और अंग -भंग करवाने की तो नहीं सोचेंगे ? ##
* Education means - only conditioning
इसे भले शिक्षा न कहकर दीक्षा के नाम से पुकार लें पर इस से कोई फर्क नहीं पड़ता सामान्यतः इसे शिक्षा ही कहते हैं अभी चलने दीजिये नई शिक्षा, स्वतंत्र विकास आदि की बातें अंत में वहीँ पहुंचेंगे जहाँ इस्लाम और गुरुकुल के तरीके बहुत पहले पहुँच चुके हैं वही कि बच्चे गीली मिट्टी होते हैं उन्हें समाज के अनुरूप -अनुकूल ढालना ही शिक्षा का काम है या -Children can not be made good by making them happy , but they can be made happy by making them good " बस यही 'good' बनाने का काम समाज और शिक्षा हर युग में करता रहेगा अलबत्ता अच्छे की परिभाषा समय के अनुसार बदलती रहेगी जैसे "Spare the rod and spoil the child " समाप्त हो गया पर चिंता की बात है कि खुली छूट के युग में युवा को युग के साथ ढालने की ज़िम्मेदारी भी संस्थाओं से गायब हो रही है और राजनीति द्वारा गायब करायी जा रही है और विषम स्थिति यह कि हम इसे रोक नहीं सकते तो , अब प्रस्ताव यह है कि केवल अक्षर ज्ञान , साक्षरता को ही शिक्षा मान लिया जाय और बच्चा अपने बल बूते जो जानना सीखना चाहे स्वयं सीखे उसे कुछ बनाने का छद्म न हम पालें न वे वरना हम तो चाहेंगे कि बच्चा मेरे कहे से नैतिक बने राज्य उसे मानव संसाधन में ढालना चाहेगा धर्म कुछ और चाहेंगे और इसको लेकर संस्थाओं में खींचतान चलता रहेगा ##


* हिंदुस्तान की जिस विविधता का गुणगान किया जाता है , वह हिन्दुओं के अन्दर का है जातियों -उपजातियों ,विश्वास -उप विश्वास , दर्शन -उपदर्शन ,रिवाज़ -अनु रिवाज़ के रूप में इसमें इस्लामी समाज यदि शामिल न भी किया जाय तो भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा वे इसमें शामिल भी नहीं हैं अलबत्ता इस खिचड़ी में वे भी शामिल होने का नाटक करके सहभोज का मज़ा उठा रहे हैं ##

* कैसे कह सकते हैं कि अंग्रेजी छा रही है ? लखनऊ में पहले मेफेयर और ओडियन सिनेमा घरों में केवल अंग्रेज़ी फिल्में चला करती थीं ज़ाहिर है उसे देखने , सुनने , समझने वाले काफी संख्या में लोग थे अब ये दोनों चित्रशालाएँ बंद हैं ##

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें