रविवार, 11 सितंबर 2011

कविताभ्यास

* [गीत]
"अचरज बाबू" नाम तुम्हारा
होता तो अच्छा था ,
पता नहीं किसने क्यों
ईश्वर नाम दे दिया
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* उनका हर काम
'जन' से शुरू होता है
शाम 'जन ' से सोती है
सुबह 'जन ' से होती है
वे जन के ख़ास पैरोकार हैं
बल्कि , एक मात्र
जनवाद के अलम- बरदार
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* जवानी में
शर्म आती थी
युवा सहपाठिनियों से
बात करने मे
अब युवतियाँ मुझसे
सटकर बैठ जाती हैं
कोई संकोच नहीं
होता उन्हें मुझसे
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रदीफ़ = पुकारा तुमने , मुझे लगा कि
जब चिड़िया डालों पर चहँकी
फूलों की सब क्यारी महकी
बर्फ चाँदनी में इठलाई
जगजीवन ने ली अँगड़ाई ,
सवाँरा तुमने , मुझे लगा कि - -
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* एक कुएँ से , दूजे खाई
कूद रहे हम भाई - भाई ,
इनमे से हम कोई भी हों
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
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* राजा तो बन सकते हो
बीर बहादुर बनकर
लेकिन , शोषक बनने के लिए
बुद्धि चाहिए '
तीब्र बुद्धि , दूर गामी बुद्धि
रण चातुर्य
ब्राह्मण को देखिए
दुबला - पतला , सुटकुन्नी छड़ी जैसा
दो हाँड़ का , लगता आदमी जैसा
हरा पाया कोई योद्धा उसे !
अभी तक तो नहीं
उसे कोई वाद पराजित नहीं कर सका
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* होड़ लेने में किसी से मुझको क्या डर !
बचपना मैंने अभी छोड़ा नहीं है [शेर ]
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* चलकर आगे तुमको नदी में फेंक देता /
/तुझको आगे चल नदी में फेंक देता /
तुझको लेकर वह नदी में कूद जाता /
रेल की पटरी पे तुमको फेंक देता [1]
अच्छा हुआ जो दिल तुम्हारा टूट गया /
अच्छा हुआ जो दिल निराश है तेरा [2]
#[ एक शेर बनाना है ]
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* दूर न हो जाती तो यह क्या करती
रोग को मैंने तवज्जो ही नहीं दी [शेर ]
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*[ग़ज़ल ]
मैं आऊँगी , तमने कहा कि
ख़ुशी से पागल ,यूँ मैं हुआ कि [शेर ]
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* सारी समस्याओं की
जड़ है ब्राह्मणवाद
सारी समस्याओं का
निदान है ब्राह्मणवाद
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* नाले साफ़ रहेंगे
तो नदी भी
साफ़ रहेगी
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* नया संशय
उभरने तक ,
संशय विहीन
रहता हूँ मैं
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* प्रश्न हल करना
मतलब
उत्तर मिल जाना
प्रश्न का समाप्त होना
संदेह का मिटना
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* कहीं डाल दो ,
जो भी विचार आयें
किसी शैली - विधा में
कविता - कहानी में
यह तो हाइकु है
इसी में सही
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* मेरा लड़का , अब तो
कुछ बच्चों का बाप ,
मुझसे बातें करता है
तो लगता है जैसे
तुतला कर बोल रहा हो
उसी तरह , जिस तरह
बरसों पहले वह ,जब
बोलना सीख रहा था

नहीं , डरता वह बिलकुल नहीं मुझसे ,
न वह मेरी हर बात मानता है
बल्कि पूरा दबंग और
आत्म निर्भर है वह

मुझे ही उसकी बात माननी पड़ती है ,
पर वह 'पापा ' के संबोधन के बाद ही
अपना आदेश देता है
और मुझे लगता है
तोतली वाणी में ही
ज़िद कर रहा है मेरा बेटा ।
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* तब पेंड़ इसलिए नहीं काटे जाते थे
क्योंकि यह धर्म-विरुद्ध था
पवित्र माने जाते थे पेंड़
अब पेंड़ इसलिए नहीं काटे जायेंगे
क्योंकि यह पर्यावरण विरुद्ध है
यही अंतर है
धर्म और विज्ञानं में
ईश्वरवाद - मानववाद में
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* बड़ा कवि नहीं बह पाया
क्योंकि मुझे
छोटी - छोटी चीज़ें भी सोचनी थीं
उनसे छूटता , तब न
कवि कहाने का जुगाड़ करता !

लेकिन कविता तो बनी , बनती गयी
जैसे कि यह :
क्या कविता नहीं है ?###

* भजन

प्रभू जी , दे दो एक मिसकाल

कालबैक मैं तुम्हे करूँगा ,
तुझसे जी भर बात करूँगा ;
फिर सारा आदेश तुम्हारा ,
पूर्ण करूँ तत्काल प्रभू जी - -

हाथ में पकड़े फोन मोबाइल
भिनहीं से संध्या ह्वै आइल,
कबहूँ न कबहूँ फोन प्रभू जी
करिहैं तो हर हाल प्रभू जी - - -

चार्ज बैटरी बिलकुल फुल है
बात-यंत्र यह वंडर फुल है ,
इंतज़ार करते -करते हम
अब होते बेहाल प्रभू जी - - -
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* [ गीत ]
चिंतन करना होगा हमको , बिलकुल ठोस बिन्दुओं पर
गौर करेंगे मुस्लिम पर भी , रखकर होश हिन्दुओं पर
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* मैं यहाँ क्या सोच कर बैठा ?
और किस से पूछ कर बैठा ?
कौन से वाहन से मैं यहाँ आया ?
क्यों इसी कुर्सी पर कूद कर बैठा ?
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* (गीत ) पहले संशय फिर विश्वास - - - - -

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* मौन कक्ष
चुप हो गया अब यह कमरा
बहुत बोलता था
झगड़ा करता ,
बहस , तर्क - वितर्क
करता था
चीखता - चिल्लाता था , अपने ऊपर
अपने से बातें करता था
जो किसी को पसंद नहीं आता
तो चुप हो गया
अपनी मर्ज़ी से
यह कमरा
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* सोचते हैं लोग ,
जबकि नहीं
सोचना चाहिए था -
उसे किसने बनाया ?
इसे सोचना उसे
अपने सोचने के
दायरे से बाहर
रखना चाहिए था
##
[इति ]

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