शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

धमाकों का असर

१ - मैं बराबर कहता रहा हूँ कि पुलिस को अपने हर क़दम का ख़ुलासा नहीं करना चाहिए । इस से प्रेस को सामग्री मिल जाती है या पीड़ित कुछ सांत्वना पा जाते हैं ,लेकिन अपराधी भी तो सचेत -सतर्क हो जाते हैं ? जाँच गुप चुप ही सफल हो सकती है । #
२ - देश की कमजोरी को खोल कर रख दिया , दुनिया को दिखा दिया अन्ना ने , आतंकवादियों ने उसका फ़ौरन लाभ उठा लिया । अकारण नहीं कि अन्ना के अजेंडे में सख्त साम्प्रदायिकता या आतंक विरोधी कोई बिल, या बिल का समर्थन नहीं है । और जो वे फांसी का तरीका सुझा रहे हैं वह भी नितांत बचकाना है । तिस पर भी गांधी कहलाये जाने की प्यास बड़ी है । ##
३ - अन्ना के आन्दोलन ने देश की एक और कमजोरी प्रकट कर दी कि पढ़ी लिखी जनता भी भीड़ से ज्यादा कुछ नहीं है । उसे यह भी नहीं मालूम कि जन लोकपाल बिल क्या है ? बस सावन का मेला देखने चले आये रामलीला मैदान में ! ###
४ - अन्ना जी ने इतने आन्दोलन अपने सर पर उठाने के लिए आमादा हैं कि उन्हें जिंदगी भर अब कुछ खाने -पीने की ज़रुरत नहीं रहेगी । ####
५ - देखिएगा , शीघ्र ही एक गीत प्रचलित होगा -"दे दिया लोकपाल बिना खड्ग बिना ढाल , रालेगना के संत तुने कर दिया कमाल ।" इसमें लोकपाल ,ढाल , कमाल का अंत्यानुप्रास गाँधी जी के लिए बहुचर्चित गीत में नहीं है :- "दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल।"#####

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