गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

सांसारिक कृति संस्कृति

* जिंदगी को जीने की सांसारिक कृति को संस्कृति कहते हैं | ##

* कथा / उपन्यास अंश
                    एक व्यक्ति औरतों की सभाओं में खूब भाग लेता है , जहाँ सुंदर -सुंदर लड़कियां ,औरतें होती हैं | एक दिन एक महिला मित्र / सहकर्मी से वह इसका कारण बताता है | तुम्हारे साथ रहकर मैं अपने को किल[क़त्ल ] करता हूँ ,
तुम्हारे प्रति पैदा होती , बढ़ती खिंचाव को मारता हूँ , आकर्षण से मुक्त होने का abhyaas  kar paata हूँ अपने  मन का अनावश्यक तनाव दूर करता हूँ | ##

 
* [आध्यात्मिक पंक्ति / शेर ]
                                आपका छद्म जान लेता हूँ ,
                                आपको खुदा मान लेता हूँ | ##


*[राज-विचार ]
हमारे भारतीय भूभाग पर पार्टी संगठन की कोई संकल्पना नहीं है | जातियों के आधार पर सामूहिकता का गठन अवश्य है |तो इसी स्वाभाविक संगठन को पार्टी स्वरुप क्यों न मान लिया जाय , स्वीकार कर लिया जाय ? जैसे "दलित" एक पार्टी है ,जो यथार्थ जीवन पर आधारित है | उसे कहीं से कोई पार्टी मेनिफेस्टो  नहीं बनानी ,न उधार लेनी , न आयातित करनी है | सब बना -बनाया सांस्कृतिक रूप से मौजूद है |   वह हिन्दू राष्ट्रवादी है | बल्कि उसका तो हिंदुस्तान के अलावा और कोई देश ही नहीं है | वह राज्य का अब उचित -उपयुक्त अधिकारी भी है | सदियों से दबा - दबाया हुआ | लोकतंत्र का सच्चा हक़दार | तो , दलित ,और सिर्फ दलित को अपना अमूल्य वोट हम देने के लिए तैयार क्यों न हो जाएँ ? और देश को बचाएं |
              सावधान , हिन्दू कोई जाति नहीं है | इसलिए यह कोई पार्टी नहीं है | इसलिए हिन्दू राज्य की स्थापना असंभव है [यह बात बहुत साधारण दिखती है किन्तु अति -विशिष्ट है | इसी की समझदारी न होने से , कुछेक पार्टियाँ असफल होते चले जाने के बावजूद हिन्दू राज्य स्थापित करने में उछल -कूद करते रहते हैं ,और मैदान में चोट खाते -सहलाते रहते हैं | कारण कि उनके पास स्वाभाविक कार्यकर्त्ता , सरल पार्टी अजेंडा नहीं है | हो ही नहीं सकता क्योंकि हिदू एकरस सांस्कृतिक इकाई नहीं है ] निश्चय ही इसी तर्क पर कोई बनिया राज , ठाकुर राज , ब्राह्मण राज्य का सपना देख सकता है , पर वह देश को कितना विश्वसनीय होगा उसे भाजपा के इतिहास में देखा जा सकता है | इसलिए सोच वह बनानी चाहिए ,जिसका कोई आधार हो , जिसके सफलता की कोई आशा की किरण हो | वह है दलित जाति पार्टी , जिसके ज़रिये ही भारत में हिन्दू राज्य की स्थापना हो सकती है | और लोकतंत्र , समता , सुरक्षा -संरक्षा की भी | # # # 


*                               हाइकु कवितायेँ 

१   - इस बात को
गुप्त ही रखा जाये
तो बेहतर |

२    - मेरा   दुर्भाग्य 
मेरे  साथ  चलता
अन्य   न   कोई   |
  
३  - मुसल्मा  होंगे
आख़िरी वक्त में ही  
आप  जनाब |

४   - दुःख  में  मुझे
याद  कीजिये  , सुख
में ईश्वर को |

५  - मेरी गलती
बहुत बड़ी न हो
तो क्षमा करें |

६  - कर जाता हूँ
कुछ पागलपन
बुद्धिमत्ता में |

७  - शरीर नहीं
स्वस्थ है तो दिमाग
कहाँ से होगा |

८ - घर - जेवर
हैं ईमानदारी के
स्याह - सफ़ेद |

९ - ऊब जाऊंगा
जल्दी ही , मिलकर
प्रियतम से |

१० - तुम्हारी तृष्णा
कभी ख़त्म न होगी
मृत्यु तलक |

 
* बदमाश  चिंतन 

१ -  शी---सी -- she-se  eee
Name of a magazine on women's सेक्सुअलिटी.

२ - Agnostik = अधकचरी आस्था 

३ - Advocate  = अधोगति   ###  

सोमवार, 25 अप्रैल 2011

ज़िम्मेदारी/नक्सलवाद/सर्वाइवल/आखिर

* आखिर रह जाता है
संग - साथ , परस्पर विश्वास
छूट जाता है
युवावस्था का चाँद ,
हनीमून ,सैर - सपाटा
सौन्दर्य -आकर्षण का पागलपन |
रह जाता है , दोनों के पास
अपनी  और अपनों   की जिम्मेदारी 
बच्चों की चिंता 
नाती पोतों , पोतियों का खैर मकदम \
जीवन सुन्दर ही रहता है ,पर 
भूचाल नहीं होता |
मिट जाती  है आपाधापी
पाने , और पाने, की इच्छा
देना , शेष रह जाता है
जीवन के अंतिम दिवसों में ,
मृत्यु को कुछ देकर ही
जीवन समाप्त किया जाता है |
%%%%



* हम समझते हैं
कि हम जानते हैं
तुम समझते हो कि 
तुम जानते हो ,
न हम जानते हैं 
न तुम जानते हो ,
या हम कम जानते हैं 
तुम भी 
कम जानते हो |
  ###

* जहाँ  नक्सलवाद है 
वहां समझो अत्याचार है , और 
विकास अवरुद्ध है |
जहाँ माओवाद नहीं है 
क्या वहाँ सब ठीक -ठाक 
मौज - आनंद ,
सब शुद्ध है ?
  ##
   

* विकास क्यों नहीं पहुँचा ?
जैसे हथियार पहुंचे
वैसे विकास भी तो
पहुँच सकता था ,
आदिवासियों के पास
यदि चाहते तो !
दूर  देश के माओ कैसे
पहुँच गए जंगलों में
और आदिवासी
अपना नाम बदल कर
माओवादी कैसे हो गए ?
कहीं  ऐसा तो नहीं कि
माओवादी कोई और हैं
और आदिवासी कोई और ?
####
       

*पाली जाती हैं
या दुही जाती हैं , गायें - भैसें
मारी जाती हैं -
बकरियाँ , मुर्गे ?
खूब पलते - पाले तो जाते
पलते तो हैं ये जानवर !
क्या सर्वाइवल  ऑफ़ द फिटेस्ट ?
क्या ये ही उपयुक्त  हैं जिंदा रहने के लिए ?
तो फिट का मतलब क्या यही है कि -
जो जितना मारा जा सकता हो
मार खा सकता हो ,
प्राण गवां सकता हो
मनुष्य  की क्षुधा पूर्ति के मैदान में ?
क्या हम - आप अब भी सबसे
फिट बनना  चाहेंगे
बनना चाहते  हैं
दुनिया में सबसे योग्य ?

मैं तो इसीलिये अयोग्य -
कामना रहित हूँ |
########

    
* सच पूछिये तो
काम देता है केवल
किसी एक के प्रति समर्पण ,
न कि विचारों का ढुलमुल पन|
निष्ठां की विच्छ्रंखलता |

काम देता है कामुकता का
संकेंद्रीकरण, न  कि बिखराव |
###


                         *   ज़िम्मेदारी

वर्तमान समस्याओं में
क्या हमारा ,
हमारी सोच का
कोई योगदान नहीं है ?
या हम यूँ ही
अपनी जिम्मेदारियों से
पल्ला झाड़ते रहेंगे ?
हम स्त्री आन्दोलन में हों या 
पुरुष बलात्कारियों  के सगठन  में
या किसी  भी राजनीतिक -
धर्मवादी दल में |
    ####
  

बुधवार, 20 अप्रैल 2011

कविता-अपने लिए

कविता
* नक्सलवाद है
उचित है  ,
बिल्कुल ठीक है
लेकिन बहुत दूर है
फिर हमारे किस काम का ?
हमारे लिए तो 
उनका होना - न होना बराबर  है
फिर हम उनका 
समर्थन  क्यों करें ?
दूर के ढोल 
हमें नहीं सुहाते 
हम तो यहाँ झेल रहे है 
अपराधियों - अधिकारियों की
गुंडागर्दी , अत्याचार 
माओवादी साजन करते  
वन -जंगल  की सैर 
हमको कर दरकिनार ,
कब आओगे पिया 
तुम्हारी प्रिया रही  पुकार |

       
* पढ़े वही जायेंगे
जो मशहूर होंगे 
जो पढ़े नहीं जाते 
वे आगे मशहूर होंगे |

  
* मेरा सारा लेखन
मेरे अपने लिए है ,
मैं अपने लिए सोचता ,
कविता करता हूँ |
धन्य हैं वे जो
समाज के लिए ,
राष्ट्र -राज्य के लिए
वैश्विक लेखन करते हैं ,
कर पाते हैं 
जिस कार्य के लिए 
मैं अपने को 
बिलकुल अयोग्य 
सर्वथा असमर्थ पाता हूँ |

---   [Individualism = निज वाद (न अहम् वाद , न व्यक्तिवाद ) ]
 [थोडा-थोडा आत्म वाद ] [ अपने द्वारा , अपने से , अपने लिए ]
====================================

  
*जिंदगी रहेगी तो
कविता रहेगी ,
जिंदगी चलेगी
तो कविता चलेगी ,
कविता रुकेगी
महाप्रलय के भी 
थोडा उपरान्त ही |
उसके पहले नहीं |


*कवि होना
ज़रूरी है क्या ?
नहीं |
हाँ , ज़रूरी है 
कविता करना |


* समझ नहीं पाता
समझने की 
कोशिश करता हूँ | 


* उसी  रास्ते चलो 
तो सब लोग समझते हैं 
यह मेरा पीछा कर रहा है 
या यह हमारा 
पथ -प्रदर्शक , नेता बनना चाहता है
इसलिए  अलग चलो 
न किसी के पीछे ,
न किसी के आगे
यही विशिष्ट होगा 
और सटीक -
-तुम्हारा मार्ग |

###
    

निर-अहंकार / कलंकवाद etc

* भ्रष्टाचार के खिलाफ लिखना अपने देशवासियों के खिलाफ बोलना है | क्या नहीं ?

*कलंक वाद | मैं दर्शनों के दर्शन के बारे में सोच रहा था तो यह शब्द ईजाद हुआ | मुझे लगा कि सारे ही 'वाद' दर्शन के नाम पर कलंक हैं | यही कलंकवाद है | दर्शन के नाम पर जो असली चित्र उभरता है वह होता है - सांख्य ,योग , मीमांसा आदि का | इनमे कहीं 'वाद ' का उपसर्ग नहीं लगा है | इसलिए इन्हें शुद्ध दर्शन कहने में कोई विवाद नहीं है | फिर है द्वैत - अद्वैत -विशिष्टाद्वैत जैसे | अब मेरा ख्याल है [मैं इनका विधिवत , आधिकारिक ज्ञानी नहीं हूँ ] कि जैसे ही ये दर्शन द्वैतवाद -अद्वैतवाद में बदले , इन पर कलंक का काजल चढ़ता गया | अब आगे देखिये - मनुवाद , सामंतवाद ,साम्राज्यवाद , पूंजीवाद | कौन कह सकता ही कि ये कलंक नहीं हैं ? और आगे आते हैं -साम्यवाद -समाजवाद -व्यक्तिवाद -मानव वाद इत्यादि | क्या हश्र किया इन्होने , क्या हश्र हुआ इनका ,किसे पता नहीं है ? जब तक आज़ादी के लिए , लोकतंत्र के लिए कोशिशें और लड़ाईयां थीं ,तब तक ठीक था | भविष्य में स्वतंत्रता- स्वच्छंदतावाद , और एक शब्द -लोकवाद अपने को कलंकवाद के रूप में प्रस्तुत करने के लिए सन्नद्ध -कटिबद्ध -प्रतिबद्ध हैं | और हम बिना न -नुकर  इनका भी  स्वागत करने के लिए अभिशप्त हैं  | कलंकित दर्शनों को प्रतिस्थापित करते हुए नए दर्शनों के कलंक आते जाएँ , इसी में मानव सभ्यता की गतिशीलता है | लेकिन हमें स्वीकार तो करना पड़ेगा कि हम कीचड़ और कलंक ही धो रहे हैं | युग को सृष्टि  का यह शाश्वत अभिशाप है |###

*ख्याल बदल लीजिये |अब यह समझिये की जो जातियों में बँटे नहीं हैं , वे ज्यादा खतरनाक हैं क्योंकि वे सशक्त और ताक़तवर होंगे | जो जातियों में बँटे हैं ,उनसे क्या डरना ? वे तो कमज़ोर हैं | उन्हें कभी भी पटखनी दिया जा सकता है |


* जब आप लेखन द्वारा क्रांति में या किसी बदलाव में संलग्न हों , तो पत्रकारिता के सामान्य नियमों से आपका काम नहीं चल सकता |


* ऐसे समाज का सपना | मेरे स्वप्न में ऐसा समाज है जिसमे आदमी दुष्ट न हों | समाज सरकार का मुखापेक्षी न हो और सरकार का समाज में कम से कम दखल हो |
सरकार के स्वायत्त चारो अंगों  की भांति देश की समाज नामक संस्था भी स्वतंत्र  और स्वावलंबी हो |[संक्षेप]


   * मैं माँगुर  मछली भून कर खा सकता हूँ , लेकिन झींगुर का सूप  नहीं पी सकता | [Ambiguous thought ]

* अहंकार -शमन भी कभी ऊंची चीज़ नहीं भी हो सकती है , यह मैंने जाना  | स्वार्थ के दबाव में भी आप का अहंकार नष्ट हो सकता है | लेकिन स्वार्थ तो अहंकार से भी गया -गुजरा है ! अतः अहम् को दबाते समय यह देखना होगा कि कहीं स्वार्थ तो हावी नहीं हो रहा है ?
         जैसे मालिक ,अधिकारी, या राजा की डांट पर  हम चुप रह जाते हैं , अपमान सह जाते हैं | तो यह तो निर -अहंकार होना नहीं है | ऐसा तो हमने इसलिए किया क्योंकि यदि हम विद्रोह करते तो अपना स्वार्थ  -हित -चिंतन न गँवाते ?  ##


* अहम् , यानि 'मैं' और 'मेरा ' को अध्यात्म की दृष्टि से बड़ा बुरा समझा जाता  है | लेकिन अब स्थितियां बदल गयी हैं | कह लीजिये कलयुग आ गया है | एक तरफ जैसा ऊपर लिखा कि अहंकार हर समय के लिए बुरी चीज़ नहीं रह गयी , वहीँ दूसरी तरफ अहंकार से भी बड़ी एक बुराई पैदा हो गयी है |वह है हमारी 'नेतागिरी ' | उदाहरण के लिए एक अहंकारी , अहंवादी या आत्मवादी,व्यक्तिवादी व्यक्ति तो यह भर कह कर चुप हो जायेगा कि 'मैं' समाजवादियों की सभा में नहीं जाऊँगा , या 'मुझे' गाँधीवादी के अनशन में भाग नहीं लेना है ,या 'मेरी '
अमुक कार्य में रूचि नहीं है / 'मैं' इसे उचित नहीं समझता |
       लेकिन समाजवादी -साम्यवादी नेता जानते हैं क्या कहेगा ? वह घोषणा करेगा , आह्वान फैलाएगा कि प्रगतिशील लेखकों को अथवा उसकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को  अज्ञेय कि जन्म सदी सभा में भाग  नहीं लेना चाहिए | वह यह भी कह दे कि रवींद्र नाथ ठाकुर की सभा में , जन गण मन  अधिनायक के गायन में , या स्वतंत्रता  दिवस समारोह में वन्दे मातरम नहीं कहना चाहिए तो इस पर हिंद वासियों को आश्चर्य नहीं होना चाहिए | गोया ,या तो यह तय है कि ये किसी जनता के ,जन गुट के नेता हैं या तो इन्हें इसकी निश्चय ही गफलत है | तो यह अहंकार से भी बड़ी बुराई हुयी कि नहीं ?  

     
  • *Dekhiye , yeh jo aap log kar rahe hain , pooja-paath,bhajan -keertan ,yagna-havan,teerath-baat vagairah , sab ekmusht  zindgi ko aasan karne ka rasta hai , ZINDGI NAHI HAI . Ab thoda zaroorat hai ,ZINDGI  JEENE KI . Bhale wh thoda kashkar ho , MANUSHYATA KE HIT  ME .. ##

सोमवार, 18 अप्रैल 2011

स्त्री को ही तलाक का अधिकार

* जनसत्ता ,दैनिक समाचार पत्र ,में "छिनाल" प्रकरण थमे , तो मैं किसी को "बिलार" कह दूं | कुछ दिन उस पर भी गहमा -गहमी चले | ##



*नारी प्रताड़ना के इतने अधिक आरोपों के आलोक में शायद शीघ्र ही पुरुषों को एक "कटुवा" संप्रदाय का गठन करना पड़े | वह भी मुसलमानों की तरह खतना नहीं , अपितु   सम्पूर्ण नसबंदी | न रहे बाँस न बजे बाँसरी | महिलाओं को किसी प्रकार का कष्ट न हो , न मर्दों पर किसी आरोप की जगह रह जाय   | ज़ाहिर है , ऐसे बहादुरी और हिम्मत का प्रगतिशील तबकों द्वारा ही संभव है , जो नर -नारी समता के आन्दोलन में अग्रणी हैं | नर का नारी बन जाने से ज्यादा क्रन्तिकारी काम और क्या होगा ? ##


* फिल्म जगत में कास्टिंग काउच के आरोपों की भरमार है | मेरी सलाह यह है कि पुराने ज़माने की तरह फिर से नारी पात्रों का काम करने के लिए पुरुष कलाकारों को लगाया जाय | पहले मजबूरी थी कि औरतें फिल्मों में आती नहीं थीं | अब वे आती तो खूब हैं पर ढेर सारी स्त्रियोचित परेशानियाँ भी साथ लाती हैं | उसमे से एक अश्लीलता को भी गिन लें | और कोई समस्या न भी हो तो भी यह एक कलात्मक प्रयोग होगा | जब अवतार ,या विचित्र जानवरों ,भूतों के रूप में म्मानुश्य को फिल्माया जा सकता है और animation  फ़िल्में परदे पर खूब चल सकती हैं , तो पुरुष को नारी बनाने में क्या परेशानी है ? अब तो मेकअप  का तकनीक भी बहुत आगे बढ़ गया है और हीरोईनों के नखरों पर पैसे बचा कर फिल्मों को सस्ता भी किया जा सकता है | ##


* एक उम्दा प्रगतिशील नारी विचार है कि [काम] प्रणय -प्रस्ताव का अधिकार केवल नारी को होना चाहिए | इसके पीछे भावना यह है कि तब औरत पुरुष की कामाग्नि  का शिकार नहीं होने पायेगी | इरादा बहुत नेक है ,लेकिन इसमें कुछ पेंच हैं | एक तो यही कि जिस पुरुष से स्त्री प्रणय -प्रस्ताव करे उसमे यदि कामेच्छा  न जगी तो ? अतः विचार आगे बढ़ना चाहिए कि - बलात्कार का अधिकार भी केवल स्त्री को होना चाहिए | लेकिन फिर इसमें पेंच है | यदि स्त्री विवाहिता हुयी तो ? यदि उस पुरुष का हाल एन डी तिवारी वाला होने लगे तो ? फिर कौन पुरुष स्त्री के चाहने पर भी उसे हाथ लगाएगा ? इसलिए इसमें धारा जुड़नी चाहिए कि स्वच्छंद यौन सम्बन्ध  का पूर्ण अधिकार हर विवाहित -अविवाहित  स्त्री को होना चाहिए और उस सम्बन्ध के लिए प्रयुक्त किसी भी विवाहित -अविवाहित पुरुष की इसकी  कोई ज़िम्मेदारी न होगी , न कानून द्वारा उसे दोषी माना जायगा | तब तो स्त्री -मुक्ति की कुछ बात बनेगी | अन्यथा पुरुष इतना भय भीत हुवा रहेगा कि वह स्त्रियों के सामने थर -थर काँपता रह जायगा | फिर वह 'काम' क्या करेगा ? स्त्री उपयोग किसका करेगी ?        

              इसके अतिरिक्त मैं एक गंभीर धारा कानून में जोड़ना चाहूँगा की - तलाक का अधिकार केवल स्त्री को होना चाहिए [इस्लाम के पलट] | पुरुष चाहें तो [मुस्लिम ख्वातीन की तरह]अपने लिए "खुला" का अधिकार मांग सकते हैं | स्त्री को ही तलाक का अधिकार

रविवार, 17 अप्रैल 2011

गाँधी पर किताब / अज्ञेय की जन्म शताब्दी

* गाँधी पर लिखे  गए किसी किताब पर प्रतिबन्ध लगाना गाँधी का नितांत अपमान है | गाँधी जी स्वयं ऐसा  न होने देते | राजनीति की तो कुछ मजबूरियां हो सकती हैं ,पर यह गाँधी वादियों को क्या हो गया है ? लोगों का उन पर एक पुराना आरोप अब उचित ही है याद आना कि गाँधीवाद की मौत गाँधीवादियों द्वारा होगी  | अभी एक अँगरेज़ द्वारा गाँधी जी पर लिखी एक किताब को , जिसकी अभी केवल समीक्षा आई है ,जिसका  जीवित लेखक ने स्वयं खंडन किया है ,उसे गाँधी वादी blasphemy [ईशनिंदा]की संज्ञा दे रहे हैं | भाई वाह ! मानो गाँधी न हुए भगवान हो गए | यह है इनकी बुद्धि | अरे मूर्खो ! यदि हिंदुस्तान गाँधी को चाँद या सूरज समझता है , तो वह किसी को उन पर थूकने से कैसे रोक सकता  है ? गिरने दो उसका थूक उसके ऊपर  |
       मैं इस प्रतिबंधवादी प्रवृत्ति का सख्त विरोध करता हूँ , और उलटे  किताबों का विरोध करने वालों को निकटतम विद्युत् वाहक संयोजक सूत्र धारक स्तम्भ  [electric  pole ] से उल्टा लटकाने की माँग करता हूँ |[नेहरु वाद] ##     


* अज्ञेय  की जन्म शताब्दी  
लेकिन   ठहरिये | मूर्खता किसी की बपौती नहीं है | व्यक्तिगत संपत्ति के विरोधी इसे सार्वजनिक बनाने पर तुले हुए हैं  
और इसमें वे कोई छद्म नहीं करते | इसका वे स्वयं ,पूरे समर्पण के साथ पालन करते हैं | यह वर्ष कुछ हिंदी -उर्दू -बांग्ला के मूर्धन्य कवियों का जन्म शती वर्ष है | कुछ लोग सबकी मना रहे हैं , कुछ किन्ही की मना रहे हैं ,कुछ किसी की मना रहे हैं ,तो कुछ किसी की भी नहीं मना रहे हैं |इसमें किसी को भला क्या आपत्ति हो सकती है ? लेकिन नहीं , कुछ लोग हैं जो वैज्ञानिक  सोच के नाम पर विज्ञानं के कोख की अवैध संतानें हैं ,जो इसे उचित नहीं मानती | उनका अन्वेषण है कि जिसकी  या जिनकी जन्म शताब्दी मनाने की इजाज़त वह दें,केवल उन्हीकी मनाई जाए | कोई जन संस्कृति मंच पर आसीन मठाधीश , झोला -लटक नेता या तानाशाह अधिकारी हैं [सचमुच वाम सैद्धांतिक दलों में polit bureau hote    हैं Polite bureau  नहीं ]| उन्होंने आह्वान किया है कि प्रगतिशील जन और जन sangathan [जन शब्द inke साथ और इनकी jubanon पर ज़रूर होता है , अलबत्ता ये पूर्णतः निर्जन hote हैं ] अज्ञेय कीजन्म सदी न मनाएं | यद्यपि वे न मनाएं तो अज्ञेय की [दाढ़ी के] कितने बाल गिर जायेंगे , तथापि प्रश्न यह है कि क्या किसी ने इनसे कहा था कि अज्ञेय की जन्मसदी ज़रूर मनाओ ? या किसी संगठन ने क्या कोई प्रति -आह्वान किया था कि नागार्जुन की न मनाओ ? फिर इन्हें इस की ज़रुरत क्यों आन पड़ी ?मैं कहने वाला था पर  मैंने भी ऐसा  नहीं कहा  कि  फैज़ की बरसी हिंदुस्तान में मनाना वाजिब नहीं है kyonki वह हिंदुस्तान छोड़कर पाकिस्तान चले गए थे | फिर चाहे कितने  बड़े शायर रहे हों | दुनिया के तमाम देशों के बड़े -बड़े साहित्यकारों की सदी होगी इस साल ,तो हम क्या करें ? कितनों की मनाएंगे ?  लेकिन अशिष्ट संस्कृति कर्मियों ने यह गुस्ताखी कर ही डाली ,जो उनसे सहज अपेक्षित होती है |इसीलिये मैं कहता हूँ कि ऐसे असभ्यों के लिए हिंदुस्तान में कोई जगह नहीं होनी चाहिए | हम इसे सभ्य -सु संस्कृत देश के रूप में विकसित करना चाहते हैं | कोई दर्शन जिसमे विरोधी विचारों  के लिए कोई जगह न हो , जो असहिष्णु हो ,दर्शन के नाम पर कलंक है | उसे यहाँ से जाना चाहिए | इसमें जीवन की कला और सौन्दर्य चेतना नहीं है |  अज्ञेय का कलावादी होना ही inke लिए   अज्ञेय का पाप है | तो किमाश्चर्यम कि ये कलाप्रिय  बंगाल से अगले चुनाव में निष्कासित होने के लिए संसूचित हों ! enough  is  enough | अब समय आ गया है कि इनका हर स्तर पर पुरजोर विरोध किया जाय | शांत समाज की सहनशील चुप्पी  से इनका मन बहुत बढ़ गया है और ये घातक रूप धारण करते जा रहे हैं | इन्ही की प्रिय कविता के अनुसार हमको भी "अब उठाने ही होंगे खतरे अभिव्यक्ति के"| इसमें मैं जोड़ता हूँ कि अब  उठाने होंगे प्रगतिशील न कहलाये जाने के , दकियानूस कहे जाने के खतरे "|क्योंकि  इन्होने एक भ्रम शिक्षित समाज में त्रुटितः यह फैलाया है कि हिंदुस्तान का कोई दर्शन या जीवन मार्ग संसार के लिए क्या हिंदुस्तान के लिए ही उपयोगी नहीं रह गया है | अब कोई सोच बाहर से लानी पड़ेगी | इसीलिए इन्होने  मार्क्सवाद के विशाल वट-वृक्ष को  रूस से समूल  उखाड़ लाकर भारत में रोपने का बीड़ा उठाया हुआ है |हमारा    मूल मुद्दा यह है कि यह देश किसी एक दर्शन का गुलाम नहीं हो सकता जैसा ये चाहते हैं ,और एक स्वर्णिम भविष्य का लोलीपॉप दिखा कर लोगों को बरगलाते हैं |किसान -मजदूर -कामगार के भी ये हितैषी नहीं हैं ,न आदिवासियों के | ये केवल उनका उपयोग करते हैं | शास्त्रीय  भाषा में कहें  तो इनका वाद सारी मानव पीड़ा के लिए एक sluice valve , जड़ता का safety  valve  भर है | inke  पास केवल परिकल्पना है | समाज में मानव मूल्यों की स्थापना इनका उद्देश्य नहीं | उद्देश्य है तो सत्ता प्राप्ति , येन -केन -प्रकारेण |तब सब ठीक हो जायगा | तब तक कुछ भी ठीक नहीं | इसलिए सारी संस्थाओं को ध्वस्त करते जाना इनका कार्यक्रम होता है | अब हमारा काम इनको          ध्वस्त करना होना चाहिए |inke किसी भी कविता -कहानी -नाटक -नाच गाना कार्यक्रम में कतई शिरकत  नहीं करना | कैसा भी सही आन्दोलन -धरना -प्रदर्शन करें ,नहीं भाग लेना | इनकी क्रांति नामक कृमि को विनष्ट करना | जन जीवन में भी ऐसे झूठे लोगों का बहिष्कार करना | inke छद्म का हर यथा संभव अनावरण करना | किसी द्वेष भावना से नहीं , बल्कि मानवता के विशाल  हित में | याद रखना होगा , विशेषकर हिंदुस्तान जैसे दर्शन -पुंज देश को , कि किसी भी कपडे की गाँठ में कसकर बंधा हुआ और उच्छृंखल व्यव्हार  से हमारी खोपड़ियों को तोड़ता हुआ , स्वतंत्र सोच युक्त मस्तिष्क को कुंद करता हुआ कोई भी विचार कभी मनुष्यता का हितैषी नहीं हो सकता |##       

भ्रष्टाचार के खिलाफ

*    हम  अपनी  सोच  के  प्रति  ही  सत्यनिष्ठ  नहीं  हैं , तो  भ्रष्टाचार  के  खिलाफ  क्या  प्रतिबद्ध - सन्नद्ध   होंगे  ?
Diary 16/4/11 . Anna Hajare muhim me main sachmuch unke  saath pata nahi kyon ,nahi ho paya | Jabki yeh mera vyaktigat sarvochch  shikhar abhiyan hai | wh baat  alag hai ki iske peechhe rajneetik aur technical tota  bhi  tha aur yeh bhi ki is upaay aur samiti nirmaan se kuchh haasil nahi hoga | par ydi Anna sachmuch bhi bhrashtachar ke khilaaf  sanlagn  hote to bhi aaj main  akalan karta hun ki main tab bhi unke saath na hota | kaaran talaash karta hun to paata hun ki iske peechhe  bhi  meri  ananya satyanishtha hai | Main is abhiyan me be imani ke saath  shamil nahi ho sakta jaise main mandir nahi jaata , jabki ishwar ko na maan ne wale bhi be hichak mandir ja  sakte hai | Jaate hi hain | Jitne log  mandir jaate kya ve sachmuch ,sahi arthon me  ishwar ko mante hain ? wahi haal bhrashtachr virodh  ka  hai | Anna ne use bhi ek rashtreey  pakhand/ kriya-karm me  tabdeel kar diya | Yeh aarop bas prateek ke roop me hai varna un bhole –bechare ne to kuchh kiya hi nahi | Unke peechhe karne wale to aur log hain|
To samasya yeh thi ki main apne bhai-bandhu ,nate –rishtedar , dost-ahbab ko kaise chhod sakta tha, jo bhrashtachar me sanlipt hain |Agar ve vaisa na karen to unki , unke pariwar ki zindgi nark ban jaye ,jise ve kya , main bhi na dekh paunga | Krishna ka Parth sareekha anuyayi ban na mere vash me nahi tha | 
Doosre isliye bhi main isse alag raha kyonki isme shamil tamam parichiton ke bare me mujhe achchhi tarah pata hai ki unme apne bhitar naitikta ka kitna aagrah hai , ek shoony ke aage ? Jinko jahan mauka mila unhone nimntar shreni ki naitikta ka pradarshan kiya |Dhan dohan /laaghav bhi aur iske atirikt  bhrashtachar  ke aayamon me bhi | Unhe bhrashtachar ki asli samajh hi nahi hai ,ki yeh kitni gahri hoti hai | Unke lekhe [aur hai bhi ] pay slipdwara sarvjanik roop se prapt lakh rupye prati mah bhi uchit hai ,aur bina dastkhat ke ek beeda paan bhi lena gunah hai | Mere [Gandhi aur Islam ke] ahsaas me maulik zaroorat se aage ya sabse antim vyakti se adhik ki ek paise ki amdani bhi haram hai , bhrashtachar  hai | Mujhe to apni thodi si patruk sapatti bhi katne ko daud ti hai |Iski charcha koi karta hi nahi , thoda sa communiston ke alava | Lekin wahan bhi dikhawa aur kahna , bhashan bhar dikhta hai | Sachchayi aur practical wahan se bhi door hai |Mere mann ko kahin aasha ki kiran nahi dikhi |
Isliye mujhe yeh aandolan ek rajneetik chhadm ke siva kuchh nahi  laga | Santon, sachche parivartan- kaamiyon ke to shreya yeh tha ki wh aisi sthitiyon ko samapt karen, jiske  chalte ekaayi janon , janta  ki  ikayion  ko bhrashtachar  ka sahara lena padta hai |Aisi koi chinta ya prayas is abhiyan [aandolan nahi ] me sire se anuplabdh  hai | Isliye main isme  shamil nahi hua | Abhi to main hamesh ki tarah avichlit [unabashed ]bhrashtachar ke viruddh vaktigat  naitik zid ke liye hi  uksaata hun | Apvaad swaroop hi kuchh vyakti samaj ki dhara se vilag iimandary ka palan aur samaj ke samaksh udhaharan ka pradarshan kar naitikta ka jhanda prakash stambh ke roop me uthaye rahenge | Unki yeh aahuti aage ka satyanishth samaj banane me sahayak hoga | ###

महाब्राह्मण / कसाव की सजा

* महाब्राह्मण
१६/४/११ , अभी एक नाटक देखा -महाब्राह्मण | ब्राह्मणों के भीतर भेद-भाव , छुआ-छूट | मेरा यह विचार पुख्ता हुआ कि ब्राह्मणवाद जैसी कोई समस्या वस्तुतः नहीं है | हम स्वयं विषमतावादी , भेद-भाव -मूलक , उंच -नीच , श्रेष्ठता -न्यूनता के दंभ में डूबे या उस से ग्रस्त हैं , और अपनी बुराई को नाहक किसी अदृश्य ब्राह्मण वाद  के सर पर थोप कर स्वयं छुट्टी पाना चाहते हैं | जिससे हमें कुछ करना न पड़े और कोई हमें दोषी न बनाये |
और हम पाक -दामन कहलाये जाएँ | यह प्रवृत्ति हर वर्ग , जाति ,सम्प्रदाय  , धर्म , राष्ट्र में है | फिर यह कैसे कहा जा सकता है कि केवल भारत का एक प्राचीन दुबला -पतला ब्राह्मण इतना ताक़तवर हो गया कि वह समूची दुनिया को अपनी स्थापना से नचाये हुए है ? और उसकी काट   मार्क्सवाद सरीखा सशक्त दर्शन और उसके समर्पित कार्यकर्त्ता भी नहीं कर पा रहे हैं ?


*कसाव की सजा
कसाव के लिए अभिनव  सजा का प्रस्ताव  |
मृत्यु  दंड प्राप्त कसाव का मामला हम मृत्यु दंड विरोधियों के लिए निर्णीत करना कठिन हो गया है , भारत की जन भावना को ध्यान में रखते हुए | फिर भी एक विकल्प है जिस से सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे | use  desh  के rajneetik  vidrohiyon  - mao  vadiyon के बीच जंगल में छोड़ दिया जाय | इस से दो बातें होंगी | या वह अपना कौशल mao vadiyon को सिखाएगा [नहीं सिखाएगा तो मार खायेगा ] , या फिर नयी rajneetik चेतना से लैस होकर अपनी प्रवृत्ति में परवर्तन लाएगा [नहीं लाएगा तो मारा जाएगा] | दोनों ही दशाओं में desh पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा | जैसे सत्यानास, वैसे सवा सत्यानास | तमाम आतंकवादियों में एक आतंकवादी और जुड़ जायेगा , बस | पर हमारा हिन्दुस्तान तो कसाव का कसाई बन ने के अपराध से तो बच जायेगा , जिसकी बड़ी आलोचना माओवादी और उनके मित्र मानव वादी जब -तब करते रहते हैं | अब वे जैसे खुद बचते हैं कसाव को भी बचाएं | अथवा जैसे खुद मरते हैं , वैसे कसाव को भी मारें | भारत राज्य क्यों अपने हाथ में खून लगाये ?##        

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2011

हाय ! क्या भ्रष्टाचार ?

* आज आपने
एक क्रांति में भाग लिया | 
आपके अन्दर 
क्या कुछ बदला  ? 
      ###

* कवितानुमा

           धूम धड़ाका

तमाशा ही तमाशा
दीवाली में पटाखा
होली में खेल -खेली
जय माता दी
गणपति बाप्पा मोरिया
सब उत्सव
पसंद करता है यह देश 
हर दिन कोई व्रत ,कोई त्यौहार 
सारा वर्ष बड़ा 
उत्सव धर्मी है हमारा समाज |

कभी -कभी जे पी आन्दोलन 
मंहगाई के खिलाफ जुलूस 
भ्रष्टाचार के विरोध में अनशन 
कोई अपनी ज़िम्मेदारी नहीं लेता  
सब उत्सव धर्मिता का नतीजा है |

अब उत्सव तो फिर 
सिर्फ उत्सव ही हो सकता है 
कुछ बदलता नहीं 
ईद मिलन ,होली मिलन से 
क्या भाई चारा कायम हुआ ?
          ####

* सन्दर्भ - Facebook
To Mr Satish Agrawal for his comment on Pankaj Chaturvedi status :-
            No sir,I am very serious,if you wish us to be really so. I ,spiritually ,can't be against corruption . Aap log is Bharteeya Devbhoomi ki aatma ko nahi samajhte.Jab tak Ayodhya me bhavya Ram mandir ka nirman nahi ho jata,Bharat se bhrashtachar nahi jayega.और हम बाबरी मंदिर बनने नहीं देना चाहते |
फिर भ्रष्टाचार कैसे समाप्त होगा ? Hindustan ko lok-kalankit karne wali BJP aur Narendra modi ydi Anna ke saath honge,to kya hum Anna ke saath honge? Ye topidhari Gandhivadi us samay kahan the jab Ram masjid giri thi ? Aur abhi bhi ve is mudde par kahan tashrif rakhte hain ?Unka kya stand hai? kya ve ispar jaan dene ko taiyar hain? Kya wh kam bhrashtachar tha?Aap ki nazar kahan hai ?Kya bhrashtachar sirf rupye-paise tak seemit hai?Kartavya-vimukhta , bina shram ki roti khana , kisi pad-pratishtha-puraskar keliye chhadm-aacharan karna etc kya bhrashtachar ki shreni me nahi aata?बल्कि हम तो इन्हें और बुरा समझते हैं | वह कहावत है न कि Wealth is gone,nothing is gone,health is gone something is gone,but character is gone everything is gone. तो जिन्होंने देश के चरित्र को ही धूल में मिला दिया और उनके खिलाफ अन्ना हजारे कुछ नहीं कर पाए या करना चाहे फिर वे हमारी नज़र में कहाँ ठहरते हैं?भोली -भली भीड़ तो उनके साथ इस  भ्रम में शामिल हुयी कि अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे हैं,और कुछ इस भय से कि शामिल न हों तो क्या भ्रष्टाचारी कहलायें ? [और यह अच्छा ही है कि ऐसी चीज़ से लड़ो जो कभी बिलकुल  समाप्त न होने वाली हो, | यह भली  प्रकार जानते हुए कि कितनी भी कमेटियाँ सर्वथा असफल ही होनी हैं,अतः जीते तो जीत है ,हारे तो भी जीत है | यदि भ्रष्टाचार समाप्त न हो तो अगला अनशन कार्यक्रम होना चाहिए की अन्ना को राष्ट्रपति बनाया जाय] जब कि असल में  अन्ना के बहाने कुछ महान लोग सरकार में जाने कि जुगत भिड़ा रहे थे | क्या आपको यह देखकर हँसी नहीं आनी चाहिए कि यही civil society कल  तक सरकार की इस बात के लिए आलोचना करते थे की वह महिला आरक्षण विधेयक नहीं पारित करा रही है,अब अपनी पारी आई तो पञ्च-टीम में एक भी महिला नहीं है,{जब कि न्यूनतम राखी सावंत और पूनम पाण्डेय ने अभी ही क्रिकेट मैच के दौरान अपनी देश भक्ति का पक्का सुबूत प्रस्तुत कर अपनी दावेदारी पुख्ता कर दी थी } | कितने दलित ,पिछड़े , मुसलमान  है इसे छोड़ दीजिये , अलबत्ता यह उनका ही बड़ा -बड़ा अजेंडा है ? क्या इस पर रुलाई नहीं आनी चाहिए कि अन्ना हजारे ज़रूर शामिल हैं क्योंकि वे उस गाँधी से भी महान  हैं,जिसने अपनी चेयर मैनी के लिए कोई अनशन नहीं किया | हमारा ख्याल है उन्हें इस बात के लिए आमरण  अनशन करना अवश्य वाजिब और देश हित में होता कि प्रधान मंत्री न नेहरु होंगे न जिन्ना ,बल्कि मैं हूँगा | तब न देश का बंटवारा होता ,न इतनी जानें जातीं , न कहीं भ्रष्टाचार होता |न हिंदुस्तान में न पाकिस्तान में | मेरा हक तो नहीं बनता पर एक पुराने अपनत्व के नाते चिंता जाता सकता हूँ कि पाकिस्तान में भी Mr Ten परसेंट का shasan है |बharhal  जो हुआ jitna हुआ,अच्छा हुआ | पर अब तो अन्ना के पञ्च तत्वों को देश के भ्रष्टाचार कि ज़िम्मेदारी तो लेनी होगी | वर्ना कहने को  संत  तो  मैं  भी कहाना चाहता हूँ जिसे  "कहाँ   सीकरी  सों  काम " | [उन्ना नजारे from Honesty International]
------------------------------------------------------------------------------